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रिश्ते-नाते, प्यार और संसार के बारे में देवेन्द्रराज की कविता 'सपना'
देवेन्द्रराज सुथार
आदमी
जब अपने सपनों को
तिलांजलि देकर
किसी औरत के लिए
बुनता है
एक नया सपना
तब वह बन जाता है पति
और जब पति
पत्नी के ख्वाबों की
दुनिया छोड़
देखने लगता है
अपनी संतान के लिए
एक नया सपना
तब वह पति
बन जाता है पिता
इस तरह एक आदमी
सांसरिक बंधनों के व्यूह में
ता-उम्र ढोता है
सपनों का भार
समझो तो ये भार है
रिश्ते-नाते, प्यार और संसार।
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