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सरकारी अस्पतालों में दवाईयों की कमी, हाईकोर्ट ने UP सरकार से मांगा जवाब
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकारी अस्पतालों में दवाईयों की कमी के मुद्दे पर दाखिल जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब- तलब किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को 2 जुलाई तक जवाब देने का आदेश दिया है। यह आदेश जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने राजीव ओबेराय की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया।
याची की ओर से कुछ कुछ दस्तावेजों को पेश करते हुए दावा किया गया है कि प्रदेश के विभिन्न अस्पतालों में आवश्यक दवाएं उपलब्ध ही नहीं हैं। इस पर मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने जवाब देने के लिए कुछ समय दिए जाने का अनुरोध किया। जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया व 2 जुलाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया।
कुष्ठ रोगियों से भेदभाव वाले कानूनों को खत्म करने की मांग
हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के समक्ष एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए, कुष्ठ रोगियों से भेदभाव करने वाले कानूनों को समाप्त करने की मांग की गई है। याचिका पर कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सभी प्रतिवादियों को छह सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।
यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अब्दुल मोईन की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता अम्बरीश राय की याचिका पर पारित किया। याची की ओर से कहा गया है, कि आज कुष्ठ रोग का पूरी तरह से इलाज उपलब्ध है। मल्टी ड्रग थेरेपी के पहले डोज से ही यह बीमारी संक्रामक नहीं रह जाती। याची का कहना है कि इसके बावजूद पर्सनल लॉज केंद्र व राज्य के विभिन्न कानूनों में कुष्ठ रोगियों से भेदभाव की व्यवस्था है। याचिका में इसे रोगियों के मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए, ऐसे कानूनों को खत्म किए जाने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा- 13 (1) (iv) में पति अथवा पत्नी का कुष्ठ रोग से पीड़ित होना, तलाक पाने का आधार है। जबकि मुस्लिम विवाह का विघटन अधिनियम की धारा- 2 (vi) के तहत भी पत्नी पति के कुष्ठ रोग से ग्रसित होने के आधार पर तलाक प्राप्त कर सकती है। इसी प्रकार विशेष विवाह अधिनियम की धारा- 27 (1)(g) के तहत भी पति अथवा पत्नी अपने साथी के कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के आधार पर तलाक ले सकते हैं। याचिका में हिंदू उत्तराधिकार व मेंटिनेंस अधिनियम, यूपी को-ऑपरेटिव सोसायटी (45वां संशोधन) नियम 2006 व बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी अधिनियम के कुछ कानूनों को भेदभाव पूर्ण बताते हुए, ऐसे सभी कानूनों को खत्म किए जाने की मांग की गई है जो कुष्ठ रोगियों से भेदभाव करते हों।
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