दांव के दांव पर कांग्रेस-बसपा की सियासत

Dr. Yogesh mishr
Published on: 11 Feb 2008 5:52 PM IST
दिनांक: 11.2.2००8
ठीक एक साल पहले जब संप्रग सुप्रीमो सोनिया गांधी बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन पर बधाई देने उनके दिल्ली स्थित मकान पर आ धमकी थीं, तब देश की सियासत में एक नये समीकरण की सुगबुगाहट राजनीतिक विशेषज्ञों को दिख रही थी। ताज कॉरिडोर मामले में फंसी मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देने के राज्यपाल टीवी राजेस्वर के आदेश के बाद यह निहितार्थ जुटाया गया था कि जरूरत पड़ी तो मायावती केंद्र के किसी गठजोड़ में कांग्रेस के काम आयेंगी पर साल भर के भीतर कांग्रेस को पता चल गया कि उनका पाला उस चतुर राजनेता से पड़ा है जो हमेशा अपने ‘स्टैंड’ को लाभ के मद्देनजर संशोधित करता रहता है। यही वजह है कि एक साल के भीतर मायावती सरकार के कांग्रेस और राजभवन से लगभग वैसे ही रिश्ते बन गए जैसे मुलायम सरकार में थे।

राजनीतिक समीक्षक नीरज राठौर इसे मायावती की एक रणनीति का हिस्सा बताते हैं, ‘‘बसपा ने विधानसभा चुनाव में सपा से सीधी लड़ाई जताई। कांग्रेस और भाजपा नेपथ्य में चले गये। मायावती स्पष्टï बहुमत पा गयीं। अब वे इसलिए कांग्रेस को निशाने पर ले रही हैं ताकि देश भर में कांग्रेस की वह सबसे बड़ी दुश्मन नजर आएं जिससे नया धु्रवीकरण उनके बैनर तले हो।’’ इस बात में दम है तभी तो कांग्रेस ने बीते एक साल में कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जो मायावती को नागवार गुजरता। लेकिन मायावती ने कांग्रेस में सेंध लगाने के लिए करनैलगंज के विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया को सदन के अंदर बसपा की सवारी करायी। सदन छोड़ते हुए स_x009e_ाारूढ़ दल की तरफ खड़े लल्ला भैया ने कहा, ‘‘कांग्रेस राज्य का भला नहीं चाहती। विकास के मुद्दे पर कांग्रेस सौतेला रुख अख्तियार किये बैठी है। विकास मायावती से ही संभव है।’’ हालांकि इसके जवाब में प्रमोद तिवारी बोले, ‘‘यह नाटक है। बाहुबली और माफिया स_x009e_ाारूढ़ दल की छांव पाने के लिए इस सदन में पहले भी पाला बदल चुके हैं।’’ दिलचस्प यह है कि कई गंभीर आरोपों की जद वाले इस बाहुबली नेता को राहुल गांधी की कृपा केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री अखिलेश दास की सिफारिश पर हासिल हुई थी। कभी अखिलेश दास के सिपहसालार रहे नौकरशाह ने ही लल्ला भैया में बसपा प्रेम जगाया है।

मायावती पहले ही यह कहकर कटुता को चरम पर पहुंचा चुकी हैं, ‘‘यदि मेरी हत्या होती है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस पर होगी। कांग्रेस उप्र के कुख्यात माफिया को दिल्ली में पनाह दे रही है। इलाहाबाद से सांसद अतीक अहमद कई वर्षों से मेरी हत्या की साजिश में लगे हैं।’’ पलटवार करते हुए कांग्रेसी बोले, ‘‘अगर मायावती के पास कोई सबूत है तो सामने लाएं वर्ना अनर्गल प्रलाप बंद करें।’’ एटमी करार का सवाल हो या राम सेतु, केंद्र सरकार के शपथ-पत्र का मुद्दा मायावती ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने में तनिक भी चूक नहीं की। राज्य में पसर रहा आतंकवाद भी इसी आपसी जंग का हिस्सा बनकर रह गया है। रामपुर में हुए आतंकी हमले के बाद मायावती इसका ठीकरा केंद्र के सिर फोड़ते हुए बोलींं, ‘‘हमारी सीमाएं सुरक्षित नही हैं।’’ पलटवार में कांग्रेसी प्रवक्ता जयंती नटराजन ने कहा, ‘‘रामपुर हमले की जिम्मेदारी केंद्र पर डालकर अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकतीं। उप्र सरकार केंद्र पर जवाबदेही टालने के जिस खेल में जुटी है उससे आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी संयुक्त प्रयास का भला नहीं होने वाला।’’ मायावती महंगाई के मुद्दे पर भी कांग्रेस को समय-समय पर घेरती हुई दिखती हैं।

इस लड़ाई की शुरूआत वैसे तो बिजली और 8० हजार करोड़ के पैकेज की मांग से हुई। मायावती ने तोहमत मढ़ी, ‘‘कांग्रेस राज्य का विकास नहीं चाहती है। इसलिए बुंदेलखंड और पूर्वांचल के विकास के लिए मांगी गयी धनराशि नहीं दी गयी।’’ हालांकि कांग्रेस संसदीय दल के नेता प्रमोद तिवारी कहते हैं, ‘‘हमने प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री दोनों से बात की है। मायावती का कोई पैकेज का प्रस्ताव वहां प्राप्त नहीं हुआ। वे पैकेज नहीं, पैकेट मांग रही हैं।’’ कांग्रेसियों ने ०1 अप्रैल 2००7 से ०6 फरवरी 2००8 के बीच राज्य को मिले विभिन्न योजनाओं में तकरीबन 3००० करोड़ रूपये का हिसाब-किताब मांगना शुरू कर दिया है।’’ उप्र के प्रभारी दिग्विजय सिंह कहने लगे हैं, ‘‘मायावती केंद्र से 8० हजार करोड़ रूपए की मांग कर रही हैं। उन्हें कोई भी नई मांग रखने के पहले पुरानी मिली राशि के खर्च का _x008e_यौरा देना चाहिए। वर्ष 2००7 में केंद्र ने राज्य को 5००० करोड़ रूपए दिये। मुख्यमंत्री जनता को बताएं कि इस राशि को किस मद में खर्च किया गया है।’’ राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत परियोजना के लिए केंद्र से जारी होने वाली 1००० करोड़ रूपये की धनराशि में दोहरे मापदंड अपनाने के आरोप पर कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने कहा, ‘‘ग्रामीण विद्युतीकरण को लेकर गलत बयानबाजी की जा रही है। केंद्र से 1००० मेगावाट अतिरिक्त बिजली की तत्काल मांग की गई है। अभी तक आवंटन नहीं किया गया है। मांग बढऩे के कारण प्रदेश में लगभग 15०० मेगावाट बिजली की कमी बनी हुई है। कार्यदायी एजेन्सियों का 55० करोड़ रूपये से ज्यादा बकाया हो गया है। अप्रैल ०7 से अब तक किसी भी बिजली कंपनी को ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए एक पैसा भी नहीं दिया गया है।’’ केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे जवाब में बोले, ‘‘उप्र बिजली के क्षेत्र में सबसे अनुशासनहीन राज्य है। यह हमेशा राष्टï्रीय ग्रिड से अपने कोटे से अधिक बिजली लेता है। नतीजतन, कई बार ग्रिड बंद होने की नौबत आयी।’’ तो 24००० मेगावाट की अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजनाओं की स्थापना में भी उप्र की अनदेखी और इनकी स्थापना में उप्र का नाम न होना भी प्रदेश सरकार को नागवार गुजर रहा है। देश की 17 फीसदी आबादी उप्र में है लेकिन इसके हिस्से में सिर्फ 7.29 प्रतिशत बिजली आती है।

राहुल गांधी जब कुपोषण के शिकार जौनपुर के बच्चे मुकेश को दिल्ली में दवा कराने ले गये तब भी मायावती पलटवार करने से नहीं चूकीं। उन्होंने कहा, ‘‘विरोधी दलों के पास सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं बचा है। साजिश करके भ्रामक समाचार फैलाए जा रहे हैं। प्रदेश के किसी गांव में भुखमरी नहीं है।’’ राज्य में जूता उद्योग को मूल्य वर्धित कर (वैट) से छूट देने के बावत राहुल गांधी द्वारा मायावती को लिखे गये खत पर भी दोनो दलों के बीच खासी सियासत हुई। राहुल ने खत में लिखा था, ‘‘नॉन लेदर मोल्डेड (मशीन से तैयार) जूतों पर 12.5 प्रतिशत और हाथ से बनाए नॉन लेदर शूज पर 4 फीसदी कर लगाया जाए या 4०० रूपये तक के नॉन लेदर शूज को वैट के दायरे से बाहर रखा जाए या हाथ से बनाए गए सभी जूतों को वैट से मुक्त किया जाए जैसा कि हाथ से बनाई गई बनारसी साडिय़ों और लखनऊ के चिकन उत्पादों को कर मुक्त कर दिया गया। अगर जूता उद्योग पर लगाए गए वैट में सुधार नहीं किया गया तो आगरा सहित पूरे प्रदेश में यह कुटीर उद्योग दम तोड़ देगा।’’ हालांकि इस सियासत में राहुल गांधी की गलती साफ झलकी क्योंकि उस समय राज्य में वैट लागू ही नहीं था। मुख्यमंत्री आवास के समीप कालिदास मार्ग चौराहे पर राजीव गांधी की प्रतिमा लगाने को लेकर शुरू हुई जद्दोजहद भी सियासत की भेंट चढ़ गयी। हालांकि मेयर डा. दिनेश शर्मा के मुताबिक, ‘‘हम नगर विकास मंत्री व मुख्य सचिव को दो बार रिमाइंडर दे चुके हैं। कोई जवाब नहीं आया।’’ हालांकि बसपा से लड़ रही कांग्रेस के एजेंडे में अब यह नहीं दिख रहा है। छह मामलों की सीबीआई जांच लिखकर मायावती ने जहां राज्य में अपने दुश्मनों को निपटाने में केंद्र को शरीक करने की चालें चलीं, वहीं कांग्रेस की तारीफ वाली पत्रिका में अपना संदेश देने के चलते दो आईएएस अफसरों पर गिरी निलंबन की गाज और पश्चिमी उप्र के कांग्रेसी विधायक पंकज मलिक को डीडीओ से मारपीट के मामले में दलित एक्ट तक फंसाने वाले कारनामे भी एक दूसरे पर तंज के सबब हैं। यह बात दीगर है कि कांग्रेस ने बहुत चतुराई से सीबीआई जांच के मार्फत अपने दुश्मनों को निपटाने की मायावती की चालों की जांच सीबीआई को न सौंप चूलें हिला दी हैं।

कांग्रेस की सारी उम्मीदें अब राष्टï्रीय रोजगार गारंटी योजना पर ही टिकी हैं। नतीजतन, मायावती ने इस योजना की भी खिल्ली उड़ाते हुए झांसी में कहा, ‘‘लोगों को भीख नहीं चाहिये। केंद्र में बसपा की सरकार बनी तो इस योजना को रद्द कर साल भर रोजगार दिया जाएगा।’’ उन्होंने परोक्ष रूप से कहा, ‘‘वह सोनिया गांधी से बड़ी नेता हैं। शोषित समाज से पहली प्रधानमंत्री बनना पसंद करेंगी।’’ बसपा मुखिया ने आत्मकथा शैली में लिखी अपनी पुस्तक में सोनिया का नाम लिए बिना कहा है, ‘‘राजनीतिक विरासत संभालना अलग बात है और एक क्रांतिकारी मिशन के तहत सामाजिक बदलाव का नेतृत्व करना एक अलग चीज है।’’ मतलब साफ है कि बसपा प्रमुख की नजरें अपनी पार्टी की जीत से ज्यादा कांग्रेस को घेरने पर हैं। वे एक तरफ दक्षिण में दस्तक दे रही हैं तो दूसरी तरफ उ_x009e_ार में कांगे्रस की जड़ों पर म_ïा डाल रही हैं। मायावती के राजनीतिक अश्वमेघ का घोड़ा 13 राज्यों से गुजर चुका है। कांगे्रस के एक वरिष्ठï नेता के मुताबिक, ‘‘उप्र में कांग्रेस को बसपा हजम कर चुकी है। अगर ठीक से निपटा नहीं गया यह हालत कई राज्यों में होगी।’’ लेकिन जिस तरह राज्य में मायावती की ओर से पैसा दो और कांग्रेस की ओर से हिसाब दो अभियान जारी है। उससे साफ है कि कभी सपा, भाजपा और कांग्रेस की जड़ों से खाद-पानी ले अपनी हैसियत में कई गुना इजाफा करने वाली बसपा देश की राजनीति में नये समीकरण गढऩे की कोशिश कर रही है।

-योगेश मिश्र
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