पास फेल का खेल

Dr. Yogesh mishr
Published on: 16 Jun 2008 5:03 PM IST
दिनांक: 16.6.2००8
‘‘तू इधर-उधर की ना बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लूटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’’ माध्यमिक शिक्षा परिषद के सभापति रह चुके डा. लक्ष्मी प्रसाद पांडेय बोर्ड परीक्षा के बारे में अपनी राय जाहिर करते समय इस शेर को दोहराते हैं। परिषद के इस साल के परीक्षा परिणामों और कारनामों पर गौर किया जाए तो यह शेर एक दम मुफीद और मौजू लगता है। एशिया की सबसे बड़ी परीक्षा संस्था अपनी कार्यप्रणाली की खामियों केचलते आरोपों के कठघरे में हैं। 2००8 के हाईस्कूल परीक्षा परिणाम की घोषणा के साथ ही बोर्ड की विसंगतियां व खामियां फिर चर्चा का केंद्र बन गईं। मेरिट लिस्ट में गड़बड़ी से बोर्ड की किरकिरी हुई है। परीक्षाफल घोषित होते ही राज्य के बड़बोले शिक्षामंत्री रंगनाथ मिश्र ने पत्रकारों के समक्ष कहा था, ’’ मेरिट सूची में आने वाले छात्रों की कापियां नेट के जरिए सार्वजनिक की जाएंगी। ताकि परीक्षाफल की पारदर्शिता पर किसी को संदेह न रहे।’’ यह मांग शिक्षक संघ कई सालों से करता आ रहा है। पर इस बार भी बोर्ड में तह तक घुसे शिक्षा माफियाओं के चलते मंत्री की यह घोषणा हवा हवाई साबित हुई। वह भी तब जब सूची के तीसरे व इक्कीसवें स्थान वाले परीक्षार्थी के फार्म भरने और नकल के अनियमितता के प्रकरण ने बोर्ड के तमाम दावों की कलई खेल कर रख दी है। मेरिट सूची में तीसरे स्थान पार आने वाली छात्रा रीता सिंह के बारांबकी जिले में दो जगह से फार्म भरने की शिकायत पाई गई है। पर रीता सिंह ने परीक्षा वहां से दी जिस स्कूल के प्रबंधक उसके पिता शिवराम सिंह और प्राचार्य भाई हैं। यही नहीं, इसी विद्यालय की जिस लडक़ी ने मेरिट सूची में 15वां स्थान पाया है, वह प्रधानाचार्य के छोटे भाई की साली है, जो विद्यालय के उप प्रबंधक भी हैं। क्या यह सिर्फ संयोग है? परीक्षा परिणाम आते ही रीता की कापी किसी और द्वारा लिखने की शिकायत हुई थी। शिकायतकर्ता का कहना था कि बोर्ड की कापी के हस्तलेख और रीता की मूल राइटिंग का मिलान किया जाए? जांच करायी जाय कि विद्यालय के किस शिक्षक ने यह कॉपी लिखी है? लेकिन बोर्ड अधिकारियों ने इसका संज्ञान लेना जरूरी नहीं समझा। उन्होंने दो विद्यालयों से परीक्षा फार्म भरने के आरोप में जल्दी से रीता सिंह और 21 वां स्थान पाने वाली मथुरा की करूणा का परीक्षाफल निरस्त कर उन्हें मेरिट सूची से बाहर कर दिया। रीता सिंह के पिता शिवराम सिंह का कहना है, ‘‘बच्चों की राइटिंग बदलती रहती है। विरोधी उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं। ’’ जबकि बोर्ड की सचिव प्रभा त्रिपाठी कहती हैं, ‘‘रीता सिंह और करूणा प्रकरण खत्म हो गया है।’’ पिछले साल भी हाईस्कूल की मेरिट सूची में आने वाली एक लडक़ी को लेकर भी यह मामला प्रकाश में आया था कि उसकी कापियां किसी और ने लिखी हैं। विधान परिषद के तत्कालीन सदस्य स्वर्गीय पंचानन राय ने बोर्ड के सभापति से लडक़ी की हैंड राइटिंग का मिलान करने की लिखित मांग की थी। उनकी मांग पर जांच का आदेश भी हुआ। बाद में इस प्रकरण की जांच की दिशा ही बदल दी गई। जांच अधिकारियों को जांच का बिंदु यह दिया गया कि कहीं लडक़ी को जरूरत से ज्यादा नंबर तो नहीं दिए गए हैं। सवाल यह है कि विवादित प्रकरणों में हैंड राइटिंग मिलाने को क्यों नहीं तैयार होते हैं अधिकारी? विधान परिषद में शिक्षक दल के नेता ओमप्रकाश शर्मा कहते हैं, ‘‘यूपी बोर्ड की मेरिट सूची कभी मेधावी छात्रों को अलग पहचान देने का प्लेटफार्म हुआ करती थी। लेकिन अब निजी स्कूलों का धंधा बढ़ाने का जरिया बन गई है।’’निजी स्कूल के प्रबंधक इस बात को बेहिचक स्वीकारते हंै, ‘‘मेरिट सूची में एक छात्र के आने से कम से नामांकन में कम दस प्रतिशत बढ़ो_x009e_ारी मिलती है।’’

यही नहीं, विभागीय सूत्रों पर भरोसा करें तो.‘‘ हजारों छात्रों ने पहचान बदल कर परीक्षा दी।’’ कई परीक्षार्थियों ने बोर्ड की लापरवाही की फायदा उठा कर फार्म भरने वाले छात्र के स्थान पर ओवरराइटिंग करके दूसरे छात्रों की परीक्षा दिला दी।’’ सूत्रों की माने तों,‘‘ मेरठ क्षेत्रीय कार्यालय से जुड़े 54234 एवं वाराणसी कार्यालय से 4576० ने बिना पंजीकरण संख्या के परीक्षा दी।’’ बोर्ड की लापरवाही के चलते इनमें से कुछ परीक्षार्थियों को जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय ने ऐन वक्त पर अनुक्रमांक थमाए। हांलांकि सचिव प्रभा त्रिापाठी ने इससे इनकार करते हुए कहा,‘‘ कुछ ऐसी गड़बडियां संज्ञान में आई हैं वह कंम्यूटर की तकनीकी खामी की वजह से हुई हैं। इन्हें शिकायत सेल के मार्फत निपटाया जा रहा है।’’ पर नकल माफियाओं पर नकेल कस कर पारदर्शी परीक्षा के लिए अपनी पीठ थपथपाने वाले बोर्ड के अधिकारियों के पास इस बात का जवाब क्यों नहीं है कि कंप्यूटर की गलती के चलते 1.5 लाख लडक़ों का सुनहरा भविष्य निराशा की अंधेरी कोठरी में कैद हो गया, तो इसके लिए जम्मेदार कौन है? बोर्ड की गलती के चलते बाराबंकी की छात्रा सुनिधि ने फेल होने के सदमें के चलते अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। जबकि उसके अभिभावकों ने चेक कराया तो पता चला कि कंम्प्यूटर की गलती के चलते उसे फेल घोषित किया गया था। नेशनल इंटर कालेज, लखनऊ के इतिहास विषय पढ़ाने वाले शिक्षक मनोज कुमार मिश्र से हिंदी की कांपियां जचंवाई गई। तो बख्शी का तालाब इंटर कालेज में इंटर के रसायन विज्ञान के शिक्षक केबी मि_x009e_ाल को भौतिक विज्ञान की कापियां जांचने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। इसी कालेज में जीव विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक सत्य स्वरूप अग्रिहोत्री के साथ भी ऐसा ही हुआ। नकल की चुगली मूल्यांकन के लिए आयी कापियां कर रही हैं। कई उ_x009e_ार पुस्तिकों में उ_x009e_ार और गलतियां एक जैसी हैं। तो कहीं एक ही रोल नंबर की एक ही विषय की दो कापियों ने परीक्षकों को चकरा दिया है। मूल्यांकन केंद्र जीआईसी, आगरा एवं एमजी जैन इंटर कालेज ही नहीं साकते कालेज पर हाईस्कूल के हिंदी की दो कापियों पर एक ही अनुक्रमांक पड़ा था। कई उ_x009e_ारों की गलतियां एक सरीखी हैं। एक ही सेंटर की छह कांपियां तो एक ही व्यक्ति द्वारा लिखी हुइ मिलीं। परीक्षक फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि कौन सी कॉपी को परीक्षार्थी की वास्तविक कॉपी मानकर मूल्यांकन करें। फिलहाल ऐसे मामले आगरा व मेरठ के मूल्यांकन केंद्रों में पकड़ में आए हैं। मेरठ के सनातन धर्म कालेज पर हरदोई का कापियां आई थी। शिक्षा शास्त्र विषय के अनुक्रमांक ०5०7565 के स्थान पर काटकर ०5०7561 कर दिया गया है। साथ ही ०5०7561 के स्थान पर ०5०7565 कर दिया गया। मूल्यांकन के लिए लखनऊ से बलिया भेजी गई गणित की उ_x009e_ार पुस्तिकाएं बीच रास्ते से गायब हो विबागीय मंत्री के पास पहुंच गईं। अफसरों को कानो कान तक इसकी खबर नहीं हुई। अनुक्रमांक 1००3311 हाई स्कूल का छात्र सूर्यकांत ने हाईस्कूल की परीक्षा तो विज्ञान वर्ग से दी थी लेकिन उसका परिणाम कला वर्ग से घोषित हुआ? अलीगढ़ के श्री चंद्रपाल सिंह इंटर औंधाखेड़ा में ऐसा क्या है दो-तीन नहीं बल्कि छह विद्यालयों के परीक्षा केंद्र बनवाने में वहां के डीआईओएस ने रुचि दिखाई ? राजधानी लखनऊ में सख्ती के लिए विख्यात केकेसी, केकेवी, अमीनाबाद इंटर कालेज, अग्रसेन विद्यालय, डीएवी कालेज, भारतीय बालिका विद्यालय को उनकी क्षमता से कहीं कम छात्रों का परीक्षा केंद्र क्यों बनाया गया? जबकि वि_x009e_ाविहिन स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाने में खासी तरजीह दी गई? वह भी तब जब प्रदेश में माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना के लिए 14 अक्टूबर 1986 से शुरू हुए वि_x009e_ाविहीन मान्यता ने परिषद की पवित्रतता को और तार तार किया है। अकेले लखनऊ में 2०2 ऐसे विद्यालय हैं जो मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। इस श्रेणी के प्रदेश में दस हजार से अधिक विद्यालय खुल चुके हैं। माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र ने स्वीकार भी कर लिया है, ‘‘जिला विद्यालय निरीक्षक और संयुक्त निदेशक विश्वास की कसौटी पर खरे नहीं उतरे।’’ प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा के स्तरोन्नयन के लिए जारी तमाम प्रयासों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि इसका पूरा बुनियादी ढांचा ही तदर्थवाद का शिकार है। इंटरमीडिएट कालेजों के 6० फीसदी प्रधानाचार्य तदर्थ हैं और उनके विनियमितीकरण के मामले शासन की ‘हां’ के बाद भी लंबित हैं। नतीजतन पढ़ाई नहीं हो पा रही है। जिसका नतीजा परीक्षा परिणाम में दिखा। इस साल इंटर की परीक्षा में करीब सवा चार लाख बच्चे अंग्रेजी में फेल हुए। इस विषय की परीक्षा में करीब 11 लाख बच्चे बैठे जिनमें केवल 6 लाख 75 हजार बच्चे ही पास हुए। 45 फीसदी लडक़े और 29 फीसदी लड़कियां अंग्रेजी में फेल हुए। हाईस्कूल परीक्षा में गणित विषय ने तमाम परीक्षार्थियों की गणित बिगाड़ दी। गणित में 34.68 परीक्षार्थी ही सफल हो सके। कुल 11,98,353 परीक्षार्थी सम्मिलित हुए और 4,15,676 परीक्षार्थी सफल हुए। यह शिक्षा के स्तर को बयान करने के लिए पर्याप्त है।

-योगेश मिश्र

(साथ में इलाहाबाद से रतन दीक्षित)
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