कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

Dr. Yogesh mishr
Published on: 29 Sept 2014 12:09 PM IST
वर्ष 1893 के सिंतबर महीने में ही भारत के एक नरेंद्र ने अमरीका से उस भारत की आध्यात्मिक शक्ति का परिचय कराया था, जिसे तब तक पश्चिमी देश असभ्य से लेकर संपेरों का देश ही मानते थे। ये नरेंद्र थे गुलाम भारत के एक ओजस्वी संन्यासी यानी स्वामी विवेकानंद। इस नरेंद्र ने अमरीका के शिकागो में भारत की विश्वगुरु की छवि को स्थापित किया था। करीब सवा सौ साल बाद एक और नरेंद्र ने विश्वगुरु की इस छवि वाले देश में विश्व का नेतृत्व करने की की क्षमता है, इस बात का अहसास फिर से कराया है। ये नरेंद्र हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी। नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेंबली में हिंदी में दिये अपने भाषण में देश की कुछ ऐसी ही झलक पेश की।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में सबसे पहले अपने देश की मंशा देश की अवधारणा से लोगों का परिचय कराया। ठीक उसी तरह से जैसे शिकागों के धार्मिक सम्मेलन में भाइयों और बहनों कहकर कुछ मिनट तक अनवरत तालियों से गुंजायमान कराने वाले स्वामी विवेकानंद ने अमरिका को हतप्रभ किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति, सुरक्षा अमन और भाइचारे सरीखी सोच को फिर से कायम करने बात की, जैसा कि करीब सवा सौ साल पहले और न्यूयार्क से 711 मील दूर शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने की थी।

भारतीय प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज में अपने भाषणों में कई बातें की। उन बातों के कई संकेत थे। मोदी ने भारत को संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक ऐसे राष्ट्र के तौर पर पेश किया जिसकी चिंताएं सिर्फ अपनी सीमाओं और अपने विकास तक सीमित नहीं हैं। एक ऐसे राष्ट्र के तौर पर पेश किया, जिसकी चिंता पूरे विश्व की हैं। एक ऐसे राष्ट्र के तौर पर जो वैश्विक शक्तियों के सामने सिर्फ याचक की भूमिका में नहीं है। बल्कि एक ऐसे राष्ट्र के तौर पर जो आत्मनिर्भर, ज्ञानबोध और जिम्मेदारी की भावना से ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के आचार-विचार से ओत प्रोत है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि उन्हें यह पता है कि भारत के एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों से विश्व की क्या अपेक्षाएं है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लोगों को इस बात का अहसास है कि उसके संसाधन अपने उपयोग के बाद अगर पिछडे राष्ट्रों के इस्तेमाल में आते हैं, तो बुराई क्या है। मोदी ने भारत की विकासशील राष्ट्र कि छवि को विकसित तो नहीं पर सीमित परिपे्रक्ष्य में उनके समानांतर तो खडा कर दिया। यानी एक तरह से अगर जीव विज्ञान की भाषा में बात करें तो भारत की छवि को परजीवी के बजाय विश्व के लिए सहजीवी के तौर पर पेश किया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में साफ था कि भारत एक विश्वशक्ति के तौर पर कम से एशियाई सुपरपावर के तौर पर उभर सकता है। मोदी ने पश्चिम एशिया, ट्यूनेशिया, अफ्रीका का जिक्र कर यह साफ कर दिया कि उसकी चिंताएं सिर्फ उन देशों तक ही सीमित नहीं जहां उसकी सीमायें छूती हैं। मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर भी अपने भाषण में कई तरह से विश्व की कई शक्तियों पर हमला किया। एक तरफ तो आतंकवाद के वर्गीकरण का विरोध कर उन्होंने पश्चिम एशिया के उन देशों को संदेश दिया, जिसमें वो अमरीकी हमले को आतंकवाद मानते हैं, वहीं आतंकवाद के राजनैतिक इस्तेमाल पर भी जबरदस्त कुठाराघात किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आतंकवाद को अच्छे और बुरे में वर्गीकृत किये जाने पर हमला कर दुनिया के उन तमाम देशों को ना केवल आइना दिखाया जो स्वहितपोषी होकर आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं, बल्कि उन्होंने इस मुद्दे का विश्वपटल से जबरदस्त कूटनैतिक इस्तेमाल कर लिया। ऐसा करके मोदी ने गाजा पट्टी पर इस्त्राइली आतंकवाद का भी बिना नाम लेकर जिक्र किया जिससे अगर वो पश्चिम एशियाई देशों से पींग बढाना चाहें तो उन्हें कोई कूटनैतिक दिक्कत न हो।

नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान का नाम अपने भाषण में कहीं नहीं लेकर एक जबरदस्त कूटनीतिक समझदारी का परिचय दिया। वह यह कि इस जहां में दर्द और भी हैं। पाकिस्तान इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि भारत का प्रधानमंत्री देश की वैश्विक हैसियत जताने के समय अपने कुछ मिनट उस समस्या को दे जिसे वो सिर्फ द्विपक्षीय मानता है। नाम ना लेकर मोदी ने साफ कर दिया वह विश्व को भारत के वैश्विक नजरिये से परिचित कराने गये थे ना कि अपने झगडे निपटाने में मदद की आस लेकर। यह संदेश देश के नागरिकों को लिए भी था कि अपनी समस्या सुलझाने में पूरी तरह वह और उनकी सरकार सक्षम है। उसे विश्व की मध्यस्थता की जरुरत नहीं। यह स्थिति पाकिस्तान और वहां की सरकारी सोच से ठीक उलट है, जहां हर वैश्विक मंच पर पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता की गुहार लगाता रहता है। जो लोग नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव के दौरान सुने और देखे होंगे, उन लोगों को इससे निराशा हाथ लगी हो पर वैश्विक पटल पर नरेंद्र मोदी ने जिस तरह आतंकवाद के मार्फत पाकिस्तान और उसके सरपरस्त देशों के सामने चिंता की लंबी लकीर खींचते हुए बताया कि भारत माहौल बनने के बाद बातचीत के लिये तैयार हंै, इसकी शुरुआत अपने शपथ ग्रहण से ही कर दी है। यह स्थिति भारत को मजबूत देश के तौर पर स्थापित करती है। भारत के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को यही नसीहत भी दी कि यह मंच द्विपक्षीय मामलों के लिये नहीं है।

नरेंद्र मोदी ने विश्व के सामने देश की नयी सरकार और भारत की ऐसी छवि रखी जिससे यह साफ है कि भारत अपने पडोसियों से संबंध अच्छे बनाकर रखने वाला देश है। मोदी ने अपने भाषण में चीन का नाम ना लेकर भारत को एक ऐसे देश के तौर पर पेश किया है, जो अपनी समस्या खुद निपटाने में सक्षम है। मोदी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के फोरम को वैश्विक ही रहने दिया। इस फोरम पर भारत की समस्याएं और पाकिस्तान चीन को लेकर उमड़ती-घुमड़ती आशंकाओं का स्यापा नहीं पीटा। मोदी ने अपने भाषण में चीन का नाम तो नहीं लिया, पर एशिया प्रशांत के समुद्र में अपनी चिंता को उन्होंने वैश्विक अंदाज में पेश किया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में आपसी टकराव बढ़ा है। एक समय में जो समुद्र हमें जोड़ता था, वहीं समुद्र आज वापसी टकराव की वजह बन गया। मोदी का यह ‘स्टैंड’ एक शक्तिशाली राष्ट्र की पहचान कराता है।

हांलांकि नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के फोरम को और भी व्यापक बनाने की वकालत करते हुए ‘जी फार आल’ का एक नया फार्मूला दिया। यानि संयुक्त राष्ट्र संघ ही ऐसी वैश्विक शक्ति हो, जिसके अधीन सब कुछ हो। इसके रहते अगर ‘जी-4’, ‘जी-20’, ‘जी-8’ जैसे संगठन बनते हैं, तो उनके हित हर बार अपने ग्रुप तक ही सीमित होंगे, विश्व तक नही। नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वैश्विक स्तर पर चैधराहट करते हुए कुछ विशेष देशों के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ को लेकर सवाल उठाया, उससे यह साफ हो गया कि मोदी के लिये पाकिस्तान और चीन से पैदा की जा रही समस्याएं इसलिये उतनी अहमियत नहीं रखती क्योंकि इन समस्याओं को खाद पानी देने वाली संस्था उनके निशाने पर रहीं। गौरतलब है कि मोदी ने बिना कुछ कहे इस तरफ इशारा किया कि किस तरह से देशों का यह सर्वोच्च संगठन अमरीकी दबाव मंे काम कर रहा है। चाहे वो वर्ष 2008 के ईरान पर तीसरे दौर के कडे प्रतिबंध का मामला हो या फिर इस्राइल की तरफ से सिर्फ इसलिये आंख मूदने का सवाल, क्योंकि विश्व का चैधरी अमरीका उसका सरपरस्त है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर सवाल उठाकर जता दिया कि भारत का लक्ष्य क्या है। संयुक्त राष्ट्रसंघ को बीसवीं सदी का संगठन बताकर मोदी ने इसके ‘रिर्फाम्स’ की बात की। यानी मोदी जिस तरह अपने देश में विभाग से लेकर योजनायें और कामकाज के तरीके को नये ढंग से परिभाषित कर रहे हैं, उन्होंने यह काम संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचा दिया। मोदी ने जिन सुधारों की मांग की है उसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भी पुनर्गठन भी शामिल है यानी मोदी ने परिषद में स्थाई सीट की भारतीय दावेदारी को एक बार फिर स्थापित कर दिया। नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को ‘जी देशों’ की संकल्पना से आगे बढ़ने का लक्ष्य दिया। साथ ही यह भी कहा कि जब दुनिया भर में लोकतंत्र की बयार बह रही हो, तब इस वैश्विक संस्था को भी लोकतंत्र

स्थापित करने की दिशा मे तेजी से कदम बढाने होंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए ‘कम्प्रेहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ के एजेंडे को याद दिलाते हुए एक तरफ जहां यह बताया कि ये संस्था कागजी होकर रह गयी है, वहीं आतंकवाद पर एक साथ मिलकर काम करने की जरुरत पर बल दिया।

पानी, बिजली और स्वास्थ्य सरीखी बुनियादी सुविधाओं से लगातार वंचित रही आबादी के एक बडे भाग का मोदी ने प्रतिनिधित्व करते हुए यह जताया कि जिन समस्याओं को लेकर विकसित देशों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं, वे उतनी अनिवार्य नहीं हैं। विकसित देशों और वैश्विक संस्थाओं को इन बुनियादी सुविधायों के लिए पहले काम करना चाहिए। आम भारतीय की धारणा भले ही यह रही हो कि मोदी विश्व मंच पर पडोसी पाकिस्तान की करतूत का खुलासा करते हुए दो टूक जवाब देंगे क्योंकि मोदी के एक दिन पहले दिये गये भाषण में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ

ने बहुत कुछ कहा था पर नरेंद्र मोदी ने अपनी यह यात्रा इसलिये सितंबर में की थी, क्योंकि तपस्वी नरेंद्र की यात्रा की कड़ी में कुछ और जोड़ सकें। उसकी पुनरावृत्ति की दिशा में कुछ कदम आगे बढा सकंे। मोदी ने योग से विश्व शांति तक का मार्ग दिखाकर भारतीय आध्यात्म को भी विश्व स्तर पर एक बार फिर स्थापित किया। नरेंद्र से नरेंद्र तक की यात्रा में नरेंद्र मोदी ने वैश्विक समस्याओं और चिताओं का जिक्र करते हुए यह जताया कि भारत अभी भी विश्व को नेतृत्व देने की क्षमता रखता है, क्योंकि उसके आचार-विचार, संकल्प-लक्ष्य, परंपराएं-परिवेश के मूल मे अब भी ‘वसुधैव कुटंबकम्’ ही बसता है। उसकी पूजा-अर्चना में आज भी विष्व के कल्याण की चिंता निहित है।
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