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Double standards: जमाना तो है डबल स्टैंडर्ड और हाईजैकिंग का

Double standards: बड़े ही रसीले से लगने वाले हैं ये शब्द 'दोहरे मानदंड 'और 'डाका डालना'। पर कोई डाका क्यूं डालना चाहता है? कोई डाकू तो नहीं । रुकिए इस शब्द को कुछ ठीक करके इसे स्टैंडर्ड वाला बनाया जाए, अन्य शब्दों में इसे हाईजैकिंग भी कहा जा सकता है।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 27 Nov 2024 8:22 AM IST
Double standards: जमाना तो है डबल स्टैंडर्ड और हाईजैकिंग का
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Double face (photo: social media)

Double standards: लोग जिंदगी भर केक काटते रहें और एक समय में आकर 'केक नहीं काटना है' का नारा बुलंद करते हैं। लोग बड़े-बड़े कार्यक्रमों में अपने समय में रिबन संस्कृति को अपना कर रिबन काटते हैं । पर जब खुद के रिबन काटने के अवसर सीमित होते जाते हैं तो वह रिबन काटने वाली संस्कृति पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं। लोग अपने या अपने परिजनों के शादी-विवाह और अन्य तरह के कार्यक्रमों पर दिल खोलकर खर्चा करते हैं । लेकिन जब दूसरों की बारी आती है, तब कहते हैं कि दिखावा नहीं करना चाहिए , फिजूलखर्ची का डंका पीटने लगते हैं। लोग अपनी उम्र में खूब घूमते हैं ,खूब पैसा खर्च करते हैं ,अपने माता-पिता को या परिवार के अन्य सदस्यों को उतना संरक्षण भी नहीं देते हैं और अपने समय के हिसाब से एक आधुनिक और आरामदेह जिंदगी जीते हैं । लेकिन जब दूसरों के ऊपर यह बात आती है तो वह उसे स्वीकार नहीं कर पाते हैं और कहते हैं कि वह तो अपने माता-पिता की बात ही नहीं मानता है या वह सिर्फ उन्हें विपरीत ही दिखाई दे रहा होता है ।

लोग जब तक खुद अलग-अलग तरह के कार्यक्रम में जाते हैं तब तक सभी कार्यक्रम अच्छे होते हैं । लेकिन जब उनका जाना कम हो जाता है या बंद हो जाता है तब उनके लिए वे ही कार्यक्रम समय को फिजूल में ही खर्च करने वाले हो जाते हैं। लोग बाहरी लोगों की तकलीफ़ पर उनके साथ बहुत ही सांत्वना दिखाते हैं, उनके दर्द में बहुत अंदर तक शामिल होता हुआ अपने आप को दिखाते हैं। लेकिन असल में वे लोग अलग ही मुखौटा पहने हुए होते हैं और अपने सामने ऐसा कुछ घटित होने पर उससे मुंह फेर लेते हैं। दरअसल, यह हमारी मुखौटा संस्कृति , यह हमारे दोहरे मानदंड अब हमारे चरित्र का एक बड़ा हिस्सा बन चुके हैं ।

बड़े ही रसीले से लगने वाले हैं ये शब्द 'दोहरे मानदंड 'और 'डाका डालना'। पर कोई डाका क्यूं डालना चाहता है? कोई डाकू तो नहीं । रुकिए इस शब्द को कुछ ठीक करके इसे स्टैंडर्ड वाला बनाया जाए, अन्य शब्दों में इसे हाईजैकिंग भी कहा जा सकता है। दरअसल, दोहरे मानदंड अपनाने वाला व्यक्ति हाईजैकिंग में भी उस्ताद हो जाता है। दोहरा मानदंड तब होता है जब दो या दो से अधिक चीजों, व्यक्तियों या समूहों के साथ अलग-अलग तरह का व्यवहार किया जाता है। जबकि उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। जैसे दो समान कर्मचारियों को एक ही काम करने पर अलग-अलग तरह के व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है । जैसे कि एक को डांटा- फटकारा जा सकता है तो दूसरे को उसके लिए बधाई दी जा सकती है, भले ही ऐसा करने का कोई उपयुक्त कारण न हो। यह दोहरे मानदंड वाली प्रवृति कहीं भी हो सकती है। हमारे परिवारों में और समाज में तो यह दोहरा मानदंड वाली प्रवृत्ति बहुत ही खुले आम है। इतनी अधिक बुरी तरह से यह हमारे कण-कण में ,रग-रग में फैली हुई है कि हमें यह पता ही नहीं चलता है कि हम दोहरा मानदंड भी अपना रहे होते हैं। एक के लिए एक तरह का व्यवहार और दूसरे के लिए दूसरी तरह का व्यवहार ही किसी भी व्यक्ति के दोहरे मानदंड वाले होने की पुष्टि कर देता है।

घातक हैं दोहरे मानदंड का इस्तेमाल

‘ डबल स्टैंडर्ड' शब्द का इस्तेमाल शुरुआत में द्विधातुवाद की अवधारणा को संदर्भित करने के लिए किया गया था , जो कि दो धातुओं (आमतौर पर सोना और चांदी) का मौद्रिक इकाइयों के रूप में एक दूसरे के लिए एक निश्चित अनुपात में उपयोग है। बाद में लोगों ने इस शब्द का दूसरे अर्थों में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। जैसे नैतिक शब्द। दोहरे मानदंड अपनाने वाला व्यक्ति एक तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित होता है जो दूसरे लोगों के दृष्टिकोण से चीज देखने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं करता है। जब किसी नकारात्मक काम के मूल्यांकन करने की बात आती है, तो लोग उस काम का खुद के लिए कम कठोर मूल्यांकन करते हैं । क्योंकि वे अपने किए के बारे में बुरा महसूस नहीं करना चाहते हैं, एक तरह का अहंकारी पूर्वाग्रह होता है उनके अंदर। दोहरे मानदंडों‌ का जानबूझकर या अनजाने में इस्तेमाल दोनों ही प्रवृतियों में घातक भी हो सकता है।

प्रसिद्ध साहित्यिक उदाहरण जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 'एनिमल फ़ार्म ' में जानवरों का एक समूह उस खेत को अपने नियंत्रण में लेने का फ़ैसला करता है जहाँ वे रहते हैं, ताकि वे मनुष्यों द्वारा उन पर शासन किए जाने के बजाय खुद पर शासन कर सकें। जानवरों द्वारा पालन किए जाने वाले मुख्य नियमों में से एक यह भी है कि 'सभी जानवर समान हैं'। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, सूअर अन्य जानवरों पर शक्ति प्राप्त करते हैं और खुद को कई तरह से तरजीह देते हुए उन सभी नियमों को रद्द कर देते हैं, जिन पर जानवरों ने शुरू में सहमति व्यक्त की थी। एक नियम के स्थान पर, जो दोहरे मानदंडों की अवधारणा का उदाहरण है: 'सभी जानवर समान हैं, लेकिन कुछ जानवर दूसरों की तुलना में अधिक समान हैं'।

तो यह वाकई होता है कि व्यक्ति खुद दोहरे मानदंडों में जी रहा होता है लेकिन उसे न तो देख पता है, न ही स्वीकार कर पाता है और इसके कारण वह अन्य लोगों को अपनी तरह से चला रहा होता है।


हाईजैकिंग का डबल स्टैंडर्ड से हैं सीधा रिश्ता

इसी तरह से एक शब्द होता है 'हाइजैकिंग'। पूरी महफ़िल सजी हो या समूह अपनी तरह से बातें कर रहा हो और उसमें एक व्यक्ति ऐसा हो जो सब की बातों पर अपनी बातों का वजन देकर बाकियों को चुप रहने पर या बगले झांकने पर विवश कर सकता है, तो उसने कोई बड़ा काम नहीं किया है। बल्कि उसने उस पूरे वार्तालाप को हाईजैक कर लिया है जहां पर वह अब अपनी मर्जी से ही दूसरों को चला रहा होता है। हाईजैकिंग करने वाला व्यक्ति भी हमेशा डबल स्टैंडर्ड वाला ही होता है क्योंकि वह अपने लिए कुछ और दूसरों के लिए कुछ और तरह की उम्मीद रखता है। जोर-जोर से बोलकर किन्हीं बातों को बाधित करना और उस पर अपना कब्जा जमा लेना एक हाईजैकर की बड़ी अच्छी पहचान होती है। एक अच्छा हाईजैकर दूसरों के करे हुए काम पर भी अपना ठप्पा लगाकर उस काम को हाईजैक करके अपने नाम कर लेता है। साहित्य जगत हो या फिल्मी जगत या और भी अन्य क्षेत्र जहां पर खुलेआम हाईजैकिंग हो रही होती है, ताल ठोंक कर और उस हाईजैकिंग का अच्छा खासा सम्मान भी हाईजैकर पा लेता है।

तो आगे से हमेशा यह ध्यान रखिए कि आपकी प्रसिद्धि को, आपकी सफलता को आपके करे हुए काम पर कोई दूसरा हाईजैकिंग न करें और किसी दूसरे को आपके लिए दोहरे मानदंड अपनाने से भी रोकिए। क्योंकि दोहरे मानदंड अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा खुद का और खुद के पसंदीदा लोगों के लिए ही भला चाहता है। उसको किसी अन्य की भावनाओं से या उनके प्रति कोई संवेदना नहीं होती है। और हाईजैकिंग करने वाला भी बड़ी ही ऊंची आवाज में अपने आप को रखकर और अपने पैर को ऊपर रखकर ही दूसरों को दबा लेता है और पूरे समूह को , पूरे कार्यक्रम को हाईजैक कर लेता है। तो सतर्क रहें हमेशा हर जगह।


( लेखिका प्रख्यात स्तंभकार हैं ।)



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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