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Afghanistan Women: 'एक बेहतर दिन आएगा '

Afghanistan Women: अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं और उन पर सार्वजनिक जीवन में कई पाबंदियां लगाई हैं, जिनमें सार्वजनिक स्थलों पर बोलने, गाने और चेहरा दिखाने पर प्रतिबंध शामिल है।

Anshu Sarda Anvi
Published on: 1 Sept 2024 4:49 PM IST
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Afghanistan Women: भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान , जो कि फिलहाल अत्यंत दयनीय स्थिति से गुजर रहा है, की अफ़गानी संस्कृति में फ़ारसी और अरबी में लिखी कविताओं का सम्मान किया जाता था। लैंडे जो कि एक मौखिक और गुमनाम गीत होता है जो कि ज़्यादातर अनपढ़ लोगों द्वारा और उनके लिए बनाया जाता है, जिसे अक्सर हाथ के ड्रम की धुन पर ज़ोर से गाया जाता है, जिसे अन्य प्रकार के संगीत के साथ तालिबान ने 1996 से 2001 तक प्रतिबंधित कर दिया था और अभी भी प्रतिबंधित है। अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं और उन पर सार्वजनिक जीवन में कई पाबंदियां लगाई हैं, जिनमें सार्वजनिक स्थलों पर बोलने, गाने और चेहरा दिखाने पर प्रतिबंध शामिल है। इन दमनकारी कानूनों के विरोध में अब अफगान महिलाएं अपनी आवाज़ उठा रही हैं।


अफगानिस्तान की सबसे प्रसिद्ध मध्ययुगीन महिला कवियत्री राबिया बल्खी की दु:खद प्रेम कविताओं से लेकर आज की गुमनाम रूप से लिखने वाली महिला कवित्रियों तक के सफर का अपना एक इतिहास रहा है। हालांकि वहां राबिया के जीवन और कविताओं पर अधिक शोध कार्य नहीं हुए हैं और अफगानिस्तान का इतिहास तो वैसे भी महिला कवियत्रियों के लिए अधिक सहयोगी कभी भी नहीं रहा है। बहुत कम महिलाएं साहित्य के क्षेत्र में वहां अपना नाम जमा सकीं है और अब प्रतिबंधों के बाद महिलाओं ने एक ऑनलाइन मुहिम शुरू की है, जिसके तहत महिलाएं गाना गाकर, उसका वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर तालिबान को चुनौती दे रही हैं।


इस मुहिम में शामिल एक महिला का अपना चेहरा ढक कर गाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में महिला अपने महिला होने के अपराध में घर के अंदर कैद है और उस स्थिति के दर्द को उसमें गाकर बता रही है। एक अन्य महिला गाते हुए अपने अस्तित्व पर लगे प्रश्न चिन्ह को चुनौती दे रही हैं । सैकड़ों अफगान महिलाएं, जो अफगानिस्तान से बाहर रहती हैं, गाना गाकर तालिबान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रही हैं। वे गाना गाकर अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों का विरोध कर रही हैं और बता रही हैं कि समाज के निर्माण में महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है। वे अपने संघर्ष को और अपनी आवाज को उठाने से पीछे नहीं हट रही हैं।


एक महिला के रूप में वहां लिखना एक बड़े खतरे को बुलावा देने जैसा है। अफगानिस्तान में महिला लेखिकाएं अपनी पहचान उजागर नहीं कर सकती थीं और अब तो और भी नहीं और न ही इस बारे में बात कर सकती हैं। वहां पर उनकी आवाज भी घर से बाहर नहीं सुनाई देनी चाहिए इस तरह का का फरमान महिलाओं के लिए जारी किया जा चुका है। रोमांटिक कविताएं लिखना है तो और भी बड़ा जुल्म है उस देश में। क्योंकि महिलाओं को प्रेम व्यक्त करने से रोकना और प्रताड़ित करना भी वहां का नियम है। प्रेम या रोमांटिसिजम का अर्थ एक प्रकार से व्यभिचार और असम्मानजनक कृत्य से लगाया जाता है। किसी भी देश का साहित्य उस देश के भूत, भविष्य और वर्तमान का लेखा-जोखा होता है। इसमें लोकगीतों, कविताओं ,नाटकों कहानियों आदि के माध्यम से मनुष्य अपनी संवेदनाओं को , अपने जीवन की उथल-पुथल को, उदासियों को, नकारात्मकता, सकारात्मक, खुशी सभी को व्यक्त करने की कोशिश करता है। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को यह अधिकार नहीं है। वहां महिलाएं अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी पहचान, अपने अधिकारों की बात करती हैं। वह अपनी कविताओं के माध्यम से महिलाओं के मुद्दों को उठाती हैं और उन कविताओं में स्वयं को ढूंढती भी हैं ।


ब्रिटिश उपनिवेश से भले ही वह देश एक सदी पहले आजाद हो गया था लेकिन देश की महिलाएं आज भी अपनी आजादी के लिए मूक संघर्ष कर रही हैं। 1996 से 2001 के तालिबानी शासन के दौरान महिलाओं को सामाजिक, सार्वजनिक दैनिक जीवन से पूरी तरह से काट दिया गया था लेकिन तालिबान के पतन के बाद उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में वापसी की। पर अगस्त 2021 में फिर से तालिबान द्वारा सत्ता पर काबिज होने के बाद से वहां कविताओं और कला पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। वे लोक कविताएं कहतीं थी जो कि उनको वह पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी दादी और नानी और माताओं से मिली थीं और वह उसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपने दिलों में मौजूद रखकर आगे बढ़ा रही थीं। बहुत सी अफगानी महिलाओं के लिए कविताएं रचना एक तरह से विरोध करने का सबसे सशक्त माध्यम दिखाई देता है क्योंकि वे पराधीनता की प्रकृति पर लिख रही होती हैं। उस पराधीनता पर, जिसे महिलाओं के अतिरिक्त कोई और भी कैसे अनुभव कर सकता है। अब अफगानी महिलाओं की दृष्टि से दुनिया को देखने का समय आ चुका है, उनके दर्द को पढ़ने का समय आ चुका है। 3 दशकों से चल रहे युद्ध से आहत अफगानी महिलाएं अब बुर्के में गा - गाकर अपने वीडियो डालकर स्वयं को अभिव्यक्त कर रही हैं। अब जरूरी है कि दुनिया उन्हें और उनकी आवाज को सुने और समझे।



Shalini singh

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