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शायद हम जिंदगी रफू करके जीने के आदी हो गए हैं, कब बदलेगा परिदृश्य?
Ashutosh Tripathi
लखनऊ: अरे वो देखो कोई पुल के नीचे पड़ा है, लगता है कुछ ज्यादा ही दारू पी होगी ......ने रात में। अबे नहीं यार ये तो मर चुका है, भिखारी लगता है। चलो बे हमसे क्या आगे चाय पीते हैं, ये तो रोज का है। लावारिस जिंदगी का यह कड़ुआ सच लखनऊ की सड़कों पर आए-दिन देखा जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि जिनको देखना चाहिए उनकी आंखों पर चढ़ा चश्मा सिर्फ वही देखता है जो चुभन न पैदा करता हो।
ऐसा ही एक वाक्या संकल्प वाटिका पुल के नीचे देखने को मिला। भीख मांगकर जिंदगी के हर पायदान को सड़क पर जीने को मजबूर इस युवक का साथ जब जिंदगी ने छोड़ा तो शायद इसे इस बात का अंदाजा न रहा होगा कि सड़कों पर जो दुत्कार इसे जीवन भर झेलनी पड़ी है वो मरने के बाद भी इसका पीछा नही छोड़ेगी। मौके पर मौजूद कई फोटो जर्नलिस्ट ने इसकी जानकारी लखनऊ पुलिस को दी, लेकिन लाश घंटों सड़क पर पड़ी रही, कोई नही आया।
इस बीच पुलिस और प्रशासन की कई गाड़ियां वहां से गुजरीं, लेकिन किसी ने भी शीशे के बाहर झांकने तक की जहमत नही उठाई। देखते-देखते कई घंटे गुजर गए और बीच कुछ पुलिस वाले आये शव को देखा और उसे एक गाड़ी में लादकर चले गए। वो तो चले गए लेकिन मेरे मन में कई सवाल पीछे छोड़ गए।
हम हर पल मरते हैं कहीं कोई शिकन नहीं पड़ती। क्या कभी कोई ऐसा दिन आएगा जब हम बराबरी के हक की बात टेलिविजन डिबेट्स से निकलकर जमीनी सच्चाई पर कर पाएंगे। पता नहीं, लेकिन शायद सदियां गुजर जाएं। इसीलिए अब डर लगने लगा है। इस सिस्टम से, इस प्रशासन और कहीं न कहीं इन न सुलझने वालों सवालों से भी। सवाल और भी हैं लेकिन पूछूंगा नहीं, क्योंकि शायद हम जिंदगी रफू करके जीने के आदी हो गए हैं।
नीचे की स्लाइड्स में देखें तस्वीरें
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