FATHER'S DAY: प्रोफेसर बिटिया की पापा के लिए बेटों के नाम पाती

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Published on: 18 Jun 2016 8:47 PM IST
FATHERS DAY: प्रोफेसर बिटिया की पापा के लिए बेटों के नाम पाती
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suman SUMAN KUNDI

कुछ साल पहले की ही तो बात है जन्म हुआ था मेरा एक बेटी के रूप में। जन्म तो मां ने दिया था जो देवी का रूप है, लेकिन सबसे पहले जिसने गोद में उठाया था वो है मेरे पिता। आज मैं अपने पिता को ही नहीं दुनिया में हर पिता को पिता दिवस यानी फादर्स डे की बधाई देती हूं।

पिता एक ऐसा शब्द है जिसके बिना हम किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिसकी तुलना हम किसी और रिश्ते से नहीं कर सकते। पिता दिवस की शुरूआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिए मातृ दिवस के पूरक के रूप में हुई थी।

अगर ग्रंथों में देखें तो मां-बाप और गुरू तीनों को ही देवता माना गया है। पिता के कई नाम है बाप, बाबा, पापा, डैडी। चाहें कोई भी देश हो, संस्कृति हो, माता-पिता का रिश्ता हमेशा ही बड़ा माना गया है। भारत में तो माता-पिता को ईश्वर माना गया है।

कहां से शुरू करूं यह समझना बहुत ही मुश्किल है। मां तो जन्म देती है यह सच है पर चलना हमें पिता सिखाते हैं, हर कदम पर वही संभालते हैं। अपनी बाहों के झूले में झुलाते हैं। मां के अश्क तो हम सदा देख लेते हैं पर जो दिल ही दिल में रोते हैं वही तो पापा हैं। मां-पापा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बच्चे के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में मां के योगदान के साथ ही पिता का योगदान बराबर का होता है।

यह सच है कि मां से ज्यादा प्यार पापा नहीं दिखाते मगर वो भी अपने बच्चों की हर छोटी से छोटी खुशी के लिए उसी प्रकार जी-जान लड़ा देते हैं जैसे की मां, बस वो अपने स्नेह, प्रेम का उस प्रकार प्रदर्शन नहीं कर पाते।पिता हमारे जीवन की बगिया के बागबान होते हैं। हमारे कष्ट पर बहुत दुखी होते हैं, पर कभी अश्कों को दिखाते नहीं। हर डगर पर साथ होते हैं। हर इच्छाएं पूरी करते हैं और साया बनके साथ चलते हैं लेकिन आज के समाज को समझना बहुत ही मुश्किल है।

उस बागबान को आज जब किसी घर या ओल्डएज होम में अकेला देखती हूं तो रूह कांप उठती है। कुछ ही दिनों पहले की बात है अपने लखनऊ शहर में ही देखा था मैंने बूढ़े बाप को या कहूं पिता को, जिनके बच्चे आज दौलत मंद तो हैं लेकिन भूल गए कि जब स्कूल की फीस के पैसे देने का समय था तो कौन देता था, क्या उन्हें पता चलता भी था कि फीस जमा भी हो गई। कहां से आते थे वह पैसे तन्ख्वाह मिली भी होती थी की नहीं।

आज वही हाथ अकेले हैं जो किसी को गोद में झुलाते थे। ऐसे कई पिता हैं इस शहर में। जिन्हें बच्चे अकेले छोड़ जाते हैं। मैंने ऐसी भी कई लाशें देखी हैं जो जमीन पर पड़ी रोती है और उनसे दूर खड़े बेटे मुंह पर रूमाल लगाए बस देखते रहते हैं। जल्दी से घर जाने की राह। आंसू बेटे को नहीं बाप की रूह को आते है। कांप गई थी उस पल मैं, मेरे पिता जैसे ही तो वो भी पिता थे। जो मेरे पिता ने किया था और कर रहे हैं वही तो उसने भी किया होगा।

आज गाड़ी, बंगला, दौलत सब तो है बेटे के पास पर वो भूल गया उसकी उंगली पकड़कर जिसने हमें चलना सिखाया था, और हां सच पहली बार गोद में उसने ही तो उठाया था, पर आखरी बार हम उस हाथ को पकड़ भी न सके।

हम पिता दिवस तो मना रहे हैं बधाई भी दे रहे हैं पर क्या हम उन्हें प्रेम और विश्वास दे रहे हैं। आज सब से मेरी प्रार्थना है उनके स्पर्श को याद करो वो पहला दिन याद करो जब उन हाथों ने हमें उठाया होगा। पूरी जिंदगी हमें संभाला होगा। अपना सब कुछ प्यार में लुटाया होगा। मत करो उसे अकेला। आज उन्हें लाड़ करो, उनका सहारा बनो।

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