कांग्रेस यूपी में तलाश रही अपना अस्तित्व, राहुल भी पहुंचे दलितों के मंदिर

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Published on: 23 Sept 2016 7:08 PM IST
कांग्रेस यूपी में तलाश रही अपना अस्तित्व, राहुल भी पहुंचे दलितों के मंदिर
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vinod kapoor Vinod Kapur

लखनऊ: कांग्रेस उपाध्यक्ष अपनी खाट पंचायत से लेकर किसान यात्रा के दौरान 23 सितम्बर को यूपी की राजधानी लखनऊ पहुंचे। अब शहर में खाट पंचायत तो कर नहीं सकते थे इसलिए रोड शो किया। रोड शो में उन्हें चर्च याद आया, नदवां याद आया और संत रैदास भी याद आए और वो पहुंच गए दलितों के मंदिर, चर्च और मुस्लिमों की सबसे बड़ी संस्था नदवां।

अयोध्या कांड के बाद मुसलमान हुए विमुख

आजादी के बाद से लगातार चुनाव में दलित, मुसलमान और ब्राह्मण कांग्रेस के ठोस वोट बैंक रहे हैं, लेकिन अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद खासकर यूपी से मुसलमान कांग्रेस से विमुख हुआ तो 1984 में बहुजन समाज पार्टी के उदय के बाद दलित भी उसकी हाथ से चले गए। मुसलमान और दलित गए तो फिर कांग्रेस में वापस नहीं लौटे। अब अगले साल होने वाला चुनाव यूपी में कांग्रेस के अस्तित्व का सवाल है। पिछले 27 साल से कांग्रेस यूपी में बेहाल है और उसका दायरा धीरे धीरे सिकुड़ता जा रहा है।

कांग्रेस वोट बैंक पर ही कर रही फोकस

राहुल ने अपनी यात्रा 6 सितंबर से पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया से शुरु की और अपने परंपरागत वोट बैंक पर ही फोकस कर रही है। इसीलिए उसने 10 साल तक दिल्ली की सीएम रही शीला दीक्षित को सीएम पद के लिए प्रोजेक्ट किया है ताकि ब्राहमण वोट उसके खाते में वापस आ जाएं। यूपी में दलित वोट किसी भी पार्टी के लिए खास होता है। दलितों के 27 प्रतिशत वोट पर सभी दलों की नजर रहती है। इस वोट बैंक के कारण ही मायावती ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।

हां ये और बात है की उस वक्त मायावती को ब्राहम्णों के वोट भी अच्छी खासी संख्या में मिले थे। यूपी में हुए 2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ब्राहम्ण वोट बसपा से दरक गया। नतीजा 2012 के चुनाव में सपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने सहयोगी अपनादल के साथ 73 सीटें ले गईं।

दलितों को रिझानेका काम बीजेपी ने किया शुरू

अब विधानसभा चुनाव को लेकर दलित वोट एकबार फिर सभी दलों के निशाने पर है और सभी पार्टी इसे रिझाने में लगी हैं। इसकी शुरुआत बीजेपी ने की। नरेंद्र मोदी पीएम बनने के बाद पहली बार पिछले 22 जनवरी को राजधानी आए भी तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविधालय के दीक्षांत समारोह में।

उन्होंने पहली बार हैदराबाद के छात्र रोहित बेमुला की आत्महत्या का मामला उठाते हुए कहा कि देश ने एक लाल खोया है। उन्होंने दलितों को ई रिक्शा भी बांटा। मोदी बाबा साहब की जयंती पर उनके मध्यप्रदेश के उनके गृह स्थान महू भी गए और उन्हें अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला के बराबर का नेता करार दिया।

बीजेपी ने शुरू की धम्म यात्रा

पीएम मोदी यहीं नहीं रूके। वो अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के रैदास मंदिर गए और प्रसाद ग्रहण किया। दलित वोट के लिए ही बीजेपी ने बौध धर्म अनुयायियों के लिए धम्म यात्रा शुरु की। आगरा में धम्म यात्रा का स्वागत बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने किया। आगरा पूरे देश में दलितों की राजधानी कही जाती है। बाबा साहब ने भी दलितों को जगाने की शुरुआत आगरा से ही की थी। मायावती ने भी आगरा में पिछले महीने रैली कर अपनी ताकत का अहसास कराया था।

मायावती ने साधा था बीजेपी और कांग्रेस पर निशाना

मायावती अपनी रैली में बीजेपी और कांग्रेस के दलित प्रेम को नाटक बताती हैं। उनका कहना है कि दोनों दल सिर्फ दलितों को वोट बैंक के रुप तकं इस्तेमाल करते हैं। कांग्रेस ने केंद्र में अपने पचास साल से ज्यादा के कार्यकाल में कभी भी दलितों के बारे में नहीं सोचा। अब दलितों को रिझाने का पूरा प्रयास कांग्रेस कर रही है। राहुल इसमें बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं। सवाल ये कि दलितों के मंदिर में जाकर दर्शन करने से क्या दलित फिर से कांग्रेस के पास आ जाएंगे।

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