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Children's Day 2024: बच्चों में अब बचपन कितना बाकी है

Children's Day 2024: बच्चे ही क्यों हम खुद मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी वाली आभासी दुनिया में इतना खो गए हैं कि हम वास्तविक जीवन को अनदेखा उसका आनंद खोते जा रहे हैं और हमारा वास्तविक जीवन का अनुभव सीमित होता जा रहा है।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 10 Nov 2024 8:00 AM IST (Updated on: 10 Nov 2024 8:01 AM IST)
Childrens Day 2024 News Hindi
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Children's Day 2024 News Hindi 

Children's Day 2024: 14 नवंबर, बाल दिवस हमारे देश में बहुत उत्साह से मनाया जाता है । पर अब प्रश्न यह उठता है कि इन बच्चों में अब बचपन कितना बाकी रह गया है। बच्चे बचपन के जीवन को जीने से अब पहले ही युवा होने के लिए तैयार हो जाते हैं। 16 साल से कम उम्र के बच्चे अब बड़ों के समान जानकारियां भी रखते है और उनसे अद्यतन भी रहते हैं। यह सूचना प्रौद्योगिकी का युग है और रोज-रोज आने वाली नयी-नयी जानकारियों को समझना- जानना भी आवश्यक है। सिर्फ शिक्षा ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में फैशन से लेकर उद्योग तक, शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर क्षेत्र में क्या नया हो रहा है उसकी जानकारी आज नई पीढ़ी को रखना आवश्यक हो चला है क्योंकि शिक्षा के सर्टिफिकेट के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में आपका यह ज्ञान, आपकी यह जानकारी जीवन के दूसरे अनेक मोर्चों पर आपको सफलता दिला सकती है।

लेकिन प्रश्न फिर भी यथावत बना हुआ है कि बच्चों में बचपन अब कितना बाकी रह गया है। बचपन जो कि जीवन की शुरुआती पाठशाला होती है जिसमें लिखी इबारत उस बच्चे के आगामी जीवन का निर्धारण करती है, इसलिए इस अवस्था को बहुत ही सावधानी पूर्वक गढ़ना- बुनना चाहिए। पर अब हमारी दुनिया बदलती जा रही है। बच्चे ही क्यों हम खुद मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी वाली आभासी दुनिया में इतना खो गए हैं कि हम वास्तविक जीवन को अनदेखा उसका आनंद खोते जा रहे हैं और हमारा वास्तविक जीवन का अनुभव सीमित होता जा रहा है।


हमारा सामाजिक दायरा और उनसे संवाद कौशल खत्म होता जा रहा है। अब न तो खुले मैदान रह गए हैं और न ही दोस्तों के साथ का खेलना। पहले अभिभावकों की डांट हमारे लिए सीख हुआ करती थी पर अब बच्चे हैं कि 'हम सब जानते हैं, हमें मत सिखाएं' वाली मुद्रा में पलट कर जवाब देते हैं।

सोशल मीडिया को हम इसके लिए बहुत अधिक जिम्मेदार मानते हैं। इसी को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल करने पर बैन लगाने का फ़ैसला किया है। थनी अल्बनीस की सरकार इस बारे में एक क़ानून इसी महीने ऑस्ट्रेलिया की संसद में पेश करने जा रही है। नए क़ानून का ऐलान करते हुए ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस ने कहा कि बच्चों पर सोशल मीडिया का बहुत बुरा असर पड़ रहा है और उन्होंने बहुत से माता-पिताओं, अभिभावकों, विशेषज्ञों और बच्चों से बात करने के बाद ये फैसला किया है।


इस नए कानून के तहत, सोशल मीडिया को 16 साल तक के बच्चों के लिए बैन लागू करने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की होगी। 16 साल तक के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन करने वाला ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश होगा।‌ पर भारत में यह सोचना कितना संभव है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया जाए। लेकिन अब भारत में भी सोशल मीडिया के लिए कानूनी आयु सीमा हमारी तेजी से भागती दुनिया में एक आवश्यकता बन चुकी है। पर क्या कानून बनाने से कुछ हासिल होगा? आवश्यकता है कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण बनाया जाए।

किशोर होते ये बच्चे इस उम्र में शारीरिक और मानसिक बदलावों से जूझते हैं। पहले भी कहां माता-पिता इन बातों को के बारे में बच्चों से बात करते थे। आज नई तकनीकों ,सोशल मीडिया ने उन्हें यह जानकारी तो दी है कि ये समस्याएं क्या हैं पर उनसे कैसे निपटा जाए , इस जानकारी का अभाव है। समस्याओं से अधिक उनके लिए अब दुविधाएं बढ़ गई हैं। सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम, ट्विटर का ग्लैमर उनको अधपकी की जानकारियां दे रहा है। उनके अधपके दिमाग को घातक जानकारियां तो मिल रही हैं पर उससे कैसे अपने मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा की सुरक्षा की जाए, यह कोई नहीं बताता। अधिक कठोर अनुशासन बच्चों को अपने ही उम्र के बच्चों से काट देता है और ढील छोड़ने का अर्थ है उनको खोना।


आज के समय में बच्चों से सोशल नेटवर्किंग छीन लेने का अर्थ तो उनमें कुंठा पैदा कर देना है। इसलिए कोशिशें आवश्यक हैं , आमने-सामने बैठकर बातचीत द्वारा, घर से बाहर घूमने जैसे काम आवश्यक हैं । बॉडी लैंग्वेज का बहुत बड़ा रोल होता है किसी भी संबंध को बचाए- बनाए रखने के लिए और अब, जब भाषा की बाध्यता खत्म होती जा रही है तो उसे वापस लाना ही होगा। अधिक जोर जबरदस्ती से हम अपने बच्चों से अपना मन माफिक काम तो करा सकते हैं पर अपने लिए भावनाएं पैदा नहीं कर सकते। इससे बच्चे कुछ समय बाद अपने माता-पिता या अभिभावकों से कटने लग जाते हैं।

और जब बाप का जूता बेटे के आने लग जाए और बेटी मासिक धर्म से होने लग जाए तो बच्चों के दोस्त बन जाना ही ठीक होता है। उनसे दोस्ती इसलिए मत करिए कि आप उनसे उनके सोशल मीडिया, उनकी प्राइवेसी को जान सकें बल्कि इसलिए करिए कि वे स्वत: ही आप पर विश्वास करके आपको अपने मन की सारी बातें बता सकें। इस उम्र में बच्चों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है और अगर इस ऊर्जा को सही तरह से काम नहीं लिया गया तो यह कुछ नया सृजन करने की जगह यह उनकी जिंदगी को भस्मीभूत करने का काम करेगी।

( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।)



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