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ये वसीयतें लिखने का समय है
ये वसीयतें लिखने का समय है। तब, जबकि महामारी जंगल की आग, और सैलाब की तरह, बढ़ती आ रही है बेलगाम
फोटो— श्मशान घाट (साभार— सोशल मीडिया)
ये वसीयतें लिखने का समय है।
तब
जबकि महामारी जंगल की आग
और सैलाब की तरह
बढ़ती आ रही है बेलगाम
तब
जबकि डॉक्टर्स भी तय नहीं कर पा रहे
दवाओं का आखिरी नुस्खा
पुरानी दवाओं को बेकार बताकर आ जाती है नई कोई
तब
जबकि घर से लेकर अस्पताल तक
कहीं भी, कभी भी मर जा रहे है आदमी के आदमी
बिना ऑक्सीजन, बिना टेस्ट, बिना दाखिले के
तब
जबकि धधक रहे है सारे श्मशान
किसी ज्वालामुखी की आंच सरीखे
लापता पंडितों की जगह डोमराज बोल रहे-
ओम नमः सुआय
तब
जबकि एक एक घर से हफ्ते में
निकल रही तीन तीन लाशें
कोई सास, कोई बहू और कोई जवान पोता
तब
जबकि गांवों के पास बहते नाले
पर 11 दिन में भस्म हो गए 15 गांव वाले
और नदियों पर बेजान तैर रहे हैं कौन कौन से लोग
तब
जबकि कोई नहीं बता पा रहा कि
की फलां ठीक होते होते कैसे चल बसे
और ढिका वेंटिलेटर पर चढ़कर उतर आए कैसे
तब
जबकि तंत्र के मुकाबले कमजोर और बेबस गण
रोज़ बना रहा है मदद का नया काफिला
लोग बचा रहे है उन्हें, जिन्हें कभी देखा भी नहीं
तब
जबकि सरकारें दुरुस्त कर रही हैं आंकड़े
अखबारी आर्केस्ट्रा की मदद से मौसम बदल रही है
अदालतों के सवालों पर खिसियाती, कुढ़ती हुई
तब
जब यह तय करने का कोई तर्क नहीं मालूम
कि पहले तुम मरोगे या मैं या कुछ और
छोटी बड़ी लाशें उठाने के लिए बच जाएंगे हम दोनों
तब
कुछ तो कर लो यार, मेरे भाई
हम अपने बीमार रिश्तेदारों
दोस्तों के यहां तो जाते नहीं
कोई मदद, कोई राहत भी नहीं पहुंचाते
मारे डर के बंद रहते है घर के दड़बे में
पर अब कुछ कर ले भाई
अम्मा-बाबू जी के पांव पकड़ कर रो ले
बीवी को उसकी साध भर प्यार कर ले
बेटे,बेटियों के खाते खुलवा कर जमा करा कुछ पैसे
भाई बहनों से कह दे कि उनको यतीम न होने देंगे
बताना कि उसे पीसीएस बनाना चाहता था,
देखना चपरासी न बने, कुछ और भले बनवा देना
इस कांपते समय में कॉपी में लिख डाल सारे हिसाब
किससे कर्ज लिया, दिया तो किसे दिया
जमीन के कागजात, बीमा पॉलिसी, लॉकर की चाभी
ये सब सहेज ले, सौंप दे उन्हें,
जिन्हें तेरे बाद ये सब खोजने में गर्क न होना पड़े
जो कह सकें कि मेरा बाप बहुत अच्छा आदमी था
मरने से पहले भी और मरने के बाद भी
फिक्र करता रहा हमारी
इतना सुनकर तुम्हे डोमराज का वह ओम नमः सुआय भी युधिष्ठिर के स्वर्गारोहण के प्रयाण का गीत लगेगा।
तो उठो
चलो
खोजो कोई साफ सुथरा कागज़
कोई न रुकने वाली कलम
लिख डालो अपनी वसीयतें
जिसे लिखने में आज तक हिचकते थे तुम।
लिख लो समय रहते
सुना नहीं तुमने
तीसरी लहर अब आने को ही है।
ओम नमः सुआय
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