TRENDING TAGS :
कोरोना काल- जो बने बेसहाराओं का सहारा
कोरोना वायरस से पैदा हुए हालातों के चलते दो तरह के लोग सामने आए हैं। पहले, वे जो संक्रमण को रोकने के लिए जारी लॉकडाउन को तोडने में पीछे नहीं रहे। यह करके उन्होंने बताना चाह कि वे सरकार से ऊपर हैं । दूसरे, जो इस कठिन काल में बेबस लोगों की मदद को आगे आए।
आर.के. सिन्हा
कोरोना वायरस से पैदा हुए हालातों के चलते दो तरह के लोग सामने आए हैं। पहले, वे जो संक्रमण को रोकने के लिए जारी लॉकडाउन को तोडने में पीछे नहीं रहे। यह करके उन्होंने बताना चाह कि वे सरकार से ऊपर हैं । दूसरे, जो इस कठिन काल में बेबस लोगों की मदद को आगे आए।
अब तो लॉकडाउन कमोबेश खत्म हो गया है। विगत 1 जून से सरकार ने कंटेनमेंट जोन को छोड़कर बाकी जगहों पर मॉल और रेस्टोरेंट को भी खोलने की हरी झंडी दिखा दी है। अब 8 जून से मॉल और रेस्टोरेंट भी खुल सकेंगे। पर यह कहना कहना प्रासंगिक होगा कि जहां देश के एक बड़े वर्ग ने लॉकडाउन का पूरी ईमानदारी के साथ पालन किया, वहीं एक छोटा समूह इसका बेशर्मी से उल्लंघन करने से पीछे नहीं हटा। हालांकि सरकार ने लॉकडाउन के दौर में जरूरी सामान की दूकानों को खोलने की व्यवस्था तक करवा दी थी ताकि लोगों को राशन, दवाई आदि लेने में दिक्कत ना आए। लेकिन कुछ लोग किसी भी हालत में सरकारी दिशा-निर्देशों को मानने के लिए तैयार ही नही थे। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना वायरस का संक्रमण दिन पर दिन देश में फैलता ही चला गया। लोग अकारण घरों से निकलने और मौज-मस्ती की वजह ढूंढने से रूके नहीं।
देश के करनाल, गाजियाबाद, बेगूसराय जैसे शहरों में दुकानें खोली जाती रहीं। जब इन दुकानों पर पुलिस ने छापे मारे तो इन दुकानों के मालिक इन्हें खोलने के बहाने बताने लगे। ऐसे धूर्त लोगों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हुए हैं, लेकिन ये नहीं सुधरे। यह मानना होगा कि लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए देशभर की पुलिस ने बेहतरीन काम किया। पर उनकी मेहनत पर पानी डालने वाले भी सामने आते रहे। इन्हें स्थिति की गंभीरता का अहसास ही नहीं हुआ। हालांकि पुलिस ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालो पर विभिन्न धाराओं में केस भी दर्ज किए। अगर सजा की बात करें तो लॉकडाउन के दौरान पुलिस को अनेक और असीमित अधिकार प्राप्त हैं और दोषी होने पर उन्हें उम्रकैद तक सजा हो सकती है। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी मुझे बता रहे थे कि लॉकडाउन के शुरूआती दौर में बहुत से लोग अपनी कारों में बैठकर राजधानी का माहौल देखने के लिए भी मात्र हवा-पानी लेने के लिये निकलते रहे। कईयों को पुलिस ने पकड़कर पूछा। जाहिर है, उनके पास पुलिस के सवालों के जवाब नहीं थे। जब पुलिस ने उन पर एक्शन लेना शुरू किया तो वे पैरों में पड़ने लिये । हालांकि इस बार पुलिस ने अपनी तरफ से किसी तरह की कोई राहत या रियायत नहीं दी।
वैसे कुछ ज्ञानी लोग कह रहे हैं कि अगर सरकार ने लॉकडाउन के स्थान पर सिर्फ धारा 144 ही लगा दी होती, तो भी ठीक ही रहता। वे अपने तर्क में यह भी कहते हैं कि जनता को कोरोना के खतरों से जागरूक करने के लिए कुछ कार्यक्रम ही काफी थे। अब इन महान आत्माओं को कौन बताए कि अगर लॉकडाउन न किया गया होता तो देश मे कोरोना संक्रमित रोगियों का आंकड़ा लाखों में होता। पर इन्हें यह बात कहां समझ आने वाली है। हालांकि यह सच है कि कोरोना के कारण सामान्य जीवन पंगु हो गया है। हरेक इंसान की परेशानियां बढ़ीं और बिगड़ीं हैं। लाखों नौकरियां जा रही हैं। मजदूरों के साथ तो बेहद क्रूर और शर्मनाक अमानवीय व्यवहार किये जाते रहे हैं।
जो ख़ड़े हुए बेबसों के लिए
हालांकि इस मुश्किल दौर में देश का सक्षम समाज आगे आया है। उसने बेबस-असहाय लोगों की भरपूर मदद की । मध्य प्रदेश के शहर ग्वालियर में समाज सेवी और लेखक डाॅ. राकेश पाठक और उनके साथी पैदल ही अपने घरों की तरफ जा रहे प्रवासी मजदूरों के लिए लजीज भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं। इन श्रमिकों को मिल रहे हैं स्वादिष्ट मालपुए, आलू की तरीदार सब्ज़ी, एक सूखी सब्ज़ी, देसी घी की पूड़ियाँ और मट्ठा। बाद में शुद्ध-साफ़ घड़े की सौंधी महक वाला ठंडा ठंडा पानी भी । पियो तो पीते ही चले जाओ।
दिल्ली में कई समाजसेवी संस्थाएं गरीबों के लिए छत से लेकर भोजन की व्यवस्था कर रही है। आर्य समाज की तरफ से पूर्वी दिल्ली के यमुना स्पोर्ट्स काम्पलेक्स में बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के हजारों मंजदूरों को भोजन के पैकेट बांटे जा रहे हैं। इन्हें मास्क भी दिये जा रहे हैं। गुरुद्वारों द्वारा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा तो पूरे देश में ही सेवा कार्य लगातार चल रहे हैं।
मजदूरों को साथ मिलता किसानों का
सबसे सुखद यह है कि कई इलाकों में निजी स्तर पर किसान और किसान संगठन भी प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। अब बात उत्तर प्रदेश के शहर बिजनौर की करते हैं। यहाँ के किसान नेताओं ने तय किया है कि अगर उनके गांव के सामने कोई मजदूर पैदल जाता दिखाई दे तो उसे किसी पेड़ की छांव में अथवा किसी खाली स्कूल में रोक कर जलपान अवश्य ही कराया जाएगा। जैसे कावड़ यात्रियों को भंडारे लगाकर हाथ जोड़-जोड़ कर किसान खाना खिलाते हैं उसी भाव से इन मजदूरों को भी भोजन परोसा जा रहा है। बिजनौर के गांव खिरना में काफी संख्या में मजदूरों को किसानों का सहारा मिला। किसानों ने उनके खाने पीने, स्नान ध्यान से लेकर आराम तक का इंतजाम किया। दरअसल देश के कई इलाकों में किसान प्रवासी मजदूरों के लिए ढाल की तरह बने खड़े हैं। हाल में राजस्थान के एक गांव में मजदूरो ने एक स्कूल का जीर्णोद्वार कर चमका दिया क्योंकि वहां के किसान परिवारों ने उनको मेहमान की तरह ऐसी खातिरदारी की थी कि और इतना बेहतर खाने पीने का इंतजाम किया, कि उनको लगा कि अगर बिना कुछ किए धरे जाएंगे तो उनकी अंतरात्मा कोसेगी।
बेशक मौजूदा संकट का मुकाबला सरकार तब ही कर सकती है जब उसे सामाजिक संगठनों का भरपूर साथ मिले। समाज के अन्दर से ही मददग़ारों की फौज़ खड़ी हो गई। कोई इन श्रमिकों के लिए फलों का इंतज़ाम करता तो कोई दवाओं का,कोई चरण पादुकाएं ले आता तो कोई मास्क और सेनिटाइज़र। ये सारे उदाहरण इस बात की गवाही हैं कि भारतीय समाज अब भी संवेदनशील और मानवीय है। वह दूसरों के कष्टों में खड़ा होता है। “सर्वेभवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया” उसके रग-रग में रचा-बसा है । हालांकि कोरोना का खतरा हर इंसान पर आ गया है, फिऱ भी हजारो लोग उन्हें सहारा दे रहे हैं, जो बिलकुल सड़क पर हैं। यही भारतीयता की पहचान है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!