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जब डेढ़ साल कृषि कानून स्थगन के लिए तैयार सरकार तो क्यों नहीं करती एलान
एक बात किसी की समझ में नहीं आ रही है कि हरफनमौला नरेंद्र मोदी इस बार किसानों के जाल में फंस कैसे गए कि उनको बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा।
रामकृष्ण वाजपेयी
अब से ठीक दो साल पहले राजस्थान के चुरू में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से मशहूर गीतकार प्रसून जोशी का गीत गाया था, 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा'। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव अभियान का थीम सांग भी इस गीत को बनाया था। लेकिन छह साल में परिदृश्य इतना बदल गया है कि आज किसान इस गीत को गा रहे हैं।
किसान कानूनों पर सरकार की मंशा क्या
फेसबुक पर किसान विरोधी मोदी नाम से एक पैरोडी चल रही है "मैं देश नहीं बिकने दूंगा, एक भी पीएसयू नहीं दिखने दूंगा", "सब बेच दूंगा अपने आकाओं को, कुछ भी नहीं टिकने दूंगा।" इसके अलावा आप नेता संजय सिंह भी कहते हैं तब पीएम मोदी का नारा था कि देश नहीं बिकने दूंगा। मगर अब पूंजीपतियों के प्रेम में नारा बदल गया है। आप सांसद ने कहा- प्रधानमंत्री का नारा है कि मैं देश नहीं बचने दूंगा।
आप नेता संजय सिंह ने पीएम मोदी और सरकार पर साधा निशाना
श्री सिंह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो भी शेयर किया है। वीडियो में उन्होंने कहा- पीएम मोदी ने एक बार कहा था कि ये देश नहीं बिकने दूंगा। मैं देश नहीं मिटने दूंगा। मगर अब पीएम का नारा बदलकर हो गया है ‘ये देश नहीं बचने दूंगा…ये खेत-खलिहान नहीं बचने दूंगा, किसान नहीं बचने दूंगा… नौजवान नहीं बचने दूंगा, ये देश नहीं बचने दूंगा… ये देश नहीं बचने दूंगा, व्यापार नहीं बचने दूंगा…कर्मचारी नहीं बचने दूंगा, बैंक नहीं बचने दूंगा…एलआईसी नहीं बचने दूंगा, ये देश नहीं बचने दूंगा…ये देश नहीं बचने दूंगा, ये सेल नहीं बचने दूंगा…ये रेल नहीं बचने दूंगा, बीपीसीएल नहीं बचने दूंगा…एयरपोर्ट नहीं बचने दूंगा, ये देश नहीं बचने दूंगा…ये देश नहीं बचने दूंगा।’
किसानों का मूड समझने में मोदी से हुई गलती
एक बात किसी की समझ में नहीं आ रही है कि हरफनमौला नरेंद्र मोदी इस बार किसानों के जाल में फंस कैसे गए कि उनको बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा। किसानों का मूड समझने में मोदी से गलती कैसे हो गई। इसमें भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं की गलती रही या अकाली दल की जो शुरू में साथ रहने के बाद विरोध तेज होता देख कट लिया।
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किसान नेताओं के साथ 22 जनवरी को 11 वें दौर की वार्ता में केंद्र सरकार की ओर से कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित रखने का प्रस्ताव आया था जिसे किसानों ने ठुकरा दिया था। तब से डेडलॉक की स्थिति बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था हम एक काल की दूरी पर हैं।
किस नंबर पर प्रधानमंत्री से एक काल की दूरी
किसानों ने कहा था कि हम भी एक काल की दूरी पर हैं। किसान नेताओं ने तो चुटकी भी ली थी कि वह कौन सा नंबर है जिस पर प्रधानमंत्री एक काल की दूरी पर हैं। खैर इसके बाद से किसान अपने आंदोलन में जुट गए । पहले ट्रैक्टर रैली, फिर सड़क जाम, इसके बाद रेल रोको और महापंचायतों की श्रृंखलाएं। भाजपा नेताओं के गांव में घुसने पर विरोध का एलान जिसमें संजीव वालियान के साथ झड़प भी हुई। लेकिन केंद्र सरकार से वार्ता का मामला जस का तस खटाई में पड़ा है।
किसानों का प्रदर्शन इतने बड़े स्तर तक कैसे पहुंचा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा से ऐसी क्या गलती हुई कि किसानों का प्रदर्शन इतने बड़े स्तर तक पहुंच गया। क्योंकि अब तक जितने भी आंदोलन हुए वह कोई भी इतने बड़े स्तर समर्थन नहीं जुटा पाया। गुजरात में पटेल समुदाय ने आरक्षण को लेकर आंदोलन किया जो बेनतीजा रहा। दिल्ली के शाहीन बाग में मुस्लिम महिलाओं ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन किया जो बेनतीजा समाप्त हुआ। इसको अलावा मोदी के पहले और दूसरे टर्म में कोई इतना बड़ा आंदोलन नहीं हुआ जितना आज किसान आंदोलन है। क्या किसान आंदोलन भी बेनतीजा समाप्त होगा। ये एक बड़ा सवाल है।
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कृषि कानूनों के डेढ़ साल के स्थगन का एलान क्यों नहीं कर रही सरकार
इसके अलावा सवाल यह भी है कि मोदी सरकार यदि डेढ़ साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करने को तैयार है तो स्थगित करती क्यों नहीं है। किसानों से इस पर बातचीत का इंतजार क्यों कर रही है। यदि ये काम हो जाए तो फिलहाल तो किसान आंदोलन से छुटकारा पाया ही जा सकता है। तब तक सरकार और भाजपा भी नये सिरे से कृषि कानूनों पर सहमति तैयार करने में जुट सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं/ ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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