Freedom of Speech in India: जब आवाज़ दबाई जाती है, वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बढ़ते हमले

Freedom of Speech in India: अभिव्यक्ति की आज़ादी (Freedom of Expression) लोकतंत्र की वह नींव है जिस पर सोच, सवाल और सुधार टिके होते हैं।

Ankit Awasthi
Published on: 19 April 2025 6:33 PM IST
Freedom of Speech in India
X

Freedom of Speech in India (Photo - Social Media)

Freedom of Speech in India: अभिव्यक्ति का अधिकार क्यों ज़रूरी है?

"अगर आप बोल नहीं सकते, तो आप सोच भी नहीं सकते।" — जॉर्ज ऑरवेल

अभिव्यक्ति की आज़ादी (Freedom of Expression) लोकतंत्र की वह नींव है जिस पर सोच, सवाल और सुधार टिके होते हैं। यह सिर्फ पत्रकारों, लेखकों या एक्टिविस्ट्स का अधिकार नहीं, बल्कि हर आम नागरिक का मूलभूत हक़ है। जब कोई किसान अपनी मांग रखता है, कोई छात्र सवाल पूछता है, या कोई महिला अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती है — ये सभी अभिव्यक्ति की आज़ादी के उदाहरण हैं।


लेकिन आज के दौर में यह आज़ादी कई देशों में धीरे-धीरे सिकुड़ रही है। कहीं सरकारें असहमति को कुचल रही हैं, तो कहीं धार्मिक और सामाजिक असहिष्णुता के कारण लोग डर में जी रहे हैं। जब बोलने की आज़ादी पर हमले होते हैं, तो लोकतंत्र का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है।

इतिहास की गवाही: आज़ादी की लड़ाई से आज तक

"स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं अगर उसमें गलती करने की आज़ादी शामिल न हो।" — महात्मा गांधी

भारत में यह अधिकार केवल संवैधानिक शब्द नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा रहा है। बाल गंगाधर तिलक ने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ कहकर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। गांधी जी ने ‘Young India’, Harijan’ और ‘Navjivan’ जैसे अख़बारों से समाज सुधार और सत्ता विरोध की आवाज़ बुलंद की। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान का हिस्सा बनाकर भारतीय नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी।

आज भी यह अधिकार हमें संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत प्राप्त है। लेकिन क्या यह ज़मीन पर उतनी ही सुरक्षित है?

वैश्विक संदर्भ: जब बोलना अपराध हो जाए

"अगर आप बोलने की आज़ादी पर यकीन रखते हैं, तो उसे उनके लिए भी मानना होगा जिनसे आप सहमत नहीं हैं।" — नोम चॉम्स्की

चीन, रूस, और सऊदी अरब जैसे देशों में अभिव्यक्ति की आज़ादी भारी प्रतिबंधों के अधीन है। असहमति जताने वाले पत्रकारों, लेखकों या कार्यकर्ताओं को जेल, यातना या ग़ायब होने जैसी सज़ाएं मिलती हैं। अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में भी धार्मिक या राजनीतिक विचारों से टकराव होने पर सोशल बहिष्कार और हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं।


जूलियन असांजे जैसे लोग, जिन्होंने सत्ता की पोल खोली, आज भी गंभीर कानूनी लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं। यह संकेत है कि सच बोलना अब भी एक "जोखिम" बना हुआ है।

भारत की जमीनी हकीकत

"हमारी आज़ादी खतरे में नहीं है जब लोग बोलते हैं; वह खतरे में तब होती है जब लोग चुप हो जाते हैं।" — अरुंधति रॉय

भारत में भी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले बढ़े हैं:

कश्मीर में पत्रकार फहाद शाह और साजिद गुल को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया।

कई छात्रों और एक्टिविस्ट्स पर आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल हुआ।

किताबों, फिल्मों और वेब सीरीज़ पर 'धार्मिक भावनाओं' के नाम पर प्रतिबंध लगे।

सोशल मीडिया पोस्ट्स के कारण आम नागरिकों पर एफआईआर दर्ज हुईं।

इन घटनाओं से साफ है कि असहमति को अब सहन करना मुश्किल होता जा रहा है।

भारत में आज़ादी पर ताज़ा हमले: केस स्टडी

"अगर आप बोलने की आज़ादी में विश्वास करते हैं, तो आपको उसे उनके लिए भी स्वीकार करना होगा जिनसे आप असहमत हैं।" — नोम चॉम्स्की

कुणाल कामरा का मामला (2020–2021):

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने अर्नब गोस्वामी और सुप्रीम कोर्ट की कार्यशैली पर टिप्पणी की थी। इसके बाद उनके खिलाफ अवमानना (contempt of court) का मामला दर्ज हुआ।


हालांकि उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी और कहा, "मैं एक कॉमेडियन हूं, कोर्ट से डर के नहीं, संविधान में भरोसे के साथ बोलता हूं।"

मुनव्वर फारूकी की गिरफ्तारी (2021):

कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को इंदौर में एक शो से पहले ही "धार्मिक भावनाएं आहत करने" के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में पाया गया कि उन्होंने वो चुटकुले मंच पर बोले ही नहीं थे।


इसके बावजूद उन्हें 37 दिन जेल में रहना पड़ा।

ऋषि बग्री, ध्रुव राठी, और आकाश बनर्जी जैसे यूट्यूबर:

इन कंटेंट क्रिएटर्स ने सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर तथ्यात्मक बातें रखीं। कभी-कभी उनके वीडियो को demonetize किया गया, रिपोर्ट किया गया या ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा।

आकाश बनर्जी ने कहा था, “अगर सरकार की आलोचना करना देशद्रोह है, तो सबसे बड़ा देशभक्त वही होगा जो सवाल पूछता है।”

Alt News के पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर:

झूठी खबरों और हेट स्पीच को उजागर करने वाले ज़ुबैर को पुराने ट्वीट्स के आधार पर गिरफ़्तार किया गया। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस गिरफ़्तारी की आलोचना हुई।

क्यों ज़रूरी है आम जनता के लिए यह आज़ादी?

अभिव्यक्ति की आज़ादी केवल "बुद्धिजीवियों" की नहीं है:

जब किसान अपनी मांगों के लिए बोलता है,

जब महिलाएं अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं,

जब छात्र-नौजवान शिक्षा और रोजगार की बात करते हैं,

तो ये सब इसी आज़ादी का हिस्सा हैं।

"अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं होगी, तो कोई सच नहीं बोलेगा, और अगर कोई सच नहीं बोलेगा, तो बदलाव कभी नहीं आएगा।"

अगर यह अधिकार छिन गया, तो आम नागरिक बस "श्रोता" बनकर रह जाएगा — "वक्ता" नहीं।

क्या होने चाहिए कानूनी सुधार?

IPC 124A (देशद्रोह कानून) को समाप्त या सीमित किया जाए।

सोशल मीडिया की निगरानी के लिए स्वतंत्र और पारदर्शी समिति का गठन हो।

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए Media Freedom Law लाया जाए।

UAPA जैसे सख्त कानूनों के इस्तेमाल पर न्यायिक निगरानी अनिवार्य हो।

अब चुप रहना खतरनाक है

"जो समाज अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता, वो धीरे-धीरे अपनी पहचान भी खो देता है।"

2025 का भारत सिर्फ डिजिटल नहीं, बल्कि विचारशील, बहस और आलोचना को सहने वाला भारत होना चाहिए। आज़ादी सिर्फ वोट देने की नहीं, बल्कि बोलने की भी होनी चाहिए। हमें एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ लोग बोलने से डरें नहीं — क्योंकि इतिहास वही लिखते हैं, जो बोलने का साहस रखते हैं।

Admin 2

Admin 2

Next Story