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तिरंगे का अपमानः क्या रियायत की उम्मीद अब भी की जानी चाहिए
चोट किसी को भी लगे, नुक़सान हमारे देश का ही होगा। देशहित के लिए कृषि-विरोधी क़ानून वापस लो! हास्यास्पद है। देश के राष्ट्रीय पर्व के मौके पर इस शर्मनाक घटना की राहुल गांधी को कम से कम अब तो निंदा करनी ही चाहिए थी। यह मौन कांग्रेस की अलगाववाद को बढ़ावा देने की नीतियों को दर्शाता है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: गणतंत्र दिवस पर जब पूरा देश दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड का आनंद ले रहा था उस समय कार्यक्रम स्थल से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर जिस शर्मनाक घटनाक्रम की शुरुआत हुई जिस तरह से लालकिले पर तिरंगे का अपमान हुआ उस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का यह गोलमोल बयान हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है। चोट किसी को भी लगे, नुक़सान हमारे देश का ही होगा। देशहित के लिए कृषि-विरोधी क़ानून वापस लो! हास्यास्पद है। देश के राष्ट्रीय पर्व के मौके पर इस शर्मनाक घटना की राहुल गांधी को कम से कम अब तो निंदा करनी ही चाहिए थी। यह मौन कांग्रेस की अलगाववाद को बढ़ावा देने की नीतियों को दर्शाता है।
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सराहनीय रहा दिल्ली पुलिस का सब्र
किसानों के मामले में दिल्ली पुलिस का सब्र और धैर्य सराहनीय रहा। यदि वह किसानों की ट्रैक्टर रैली के शुरुआती उत्पात पर शुरू में कठोर कार्रवाई करती तो उसकी ही किरकिरी होती है। सारे विपक्षी दल एक सुर में सरकार को किसान विरोधी साबित करने में जुट जाते। किसानों के उत्पीड़न की घटनाओं को बढ़ा चढ़ाकर बयानबाजी की जाती लेकिन लालकिले पर जो हुआ उसने तो सारी सीमाओं को पार कर लिया।
बिना किसी बाधा के सम्पन्न हुए गणतंत्र दिवस कार्यक्रम
गनीमत यह रही कि गणतंत्र दिवस कार्यक्रम बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो गए। लेकिन इसके तत्काल बाद गृहमंत्री अमित शाह को कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक हुई हालात की गंभीरता को समझा गया। अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों को हिंसाग्रस्त इलाकों में उतारा गया।
कुछ इलाकों में इंटरनेट सप्लाई बंद करनी पड़ी। लेकिन हालात का तकाजा यही है कि अब केंद्र सरकार और उसका गृह मंत्रालय बिना किसी मुरव्वत के किसान आंदोलन के नाम पर हिंसा भड़काने वालों सख्त और ऐसी कार्रवाई करे कि भविष्य में तिरंगे का अपमान करने की बात सोचकर भी ऐसे तत्व कांप उठें।
यह अविश्वसनीय सी बात लगती है कि देश का दिल और धड़कन कही जाने वाली दिल्ली उपद्रवियों का आसान शिकार बन रही है। चाहे वह सीएए के विरोध के दौरान दिल्ली में भड़का दंगा हो या अब किसान आंदोलन समर्थित ट्रैक्टर रैली के दौरान आंदोलन की कमान अलगाववादियों के हाथ में चला जाना हो। खुफिया एजेंसियों की इसे विफलता कहा जाएगा, अगर वह हालात की गंभीरता को आंकने में असफल रहे। लेकिन अगर खुफिया एजेंसियों ने आगाह किया था तो यह दिल्ली पुलिस की भारी चूक है। जिसमें बिना उचित तैयारी के एक बड़ी भीड़ के हवाले दिल्ली को कर दिया गया।
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अब एक ही उपाय है चिह्नित किये गए उपद्रवियों को हर हाल में तलाश कर राष्ट्रद्रोह के अपराध के तहत सजा दी जाए। ताकि भविष्य में कोई कानून व्यवस्था, संविधान, तिरंगे और राष्ट्रीय धरोहरों का अपमान करने का साहस न कर सके। अब किसान आंदोलन उनकी मांगों पर बात करना बेमानी हो गया है। सवाल है राष्ट्र के गौरव, अस्मिता और सम्मान का। जिसे बरकरार रखना हर भारतीय की जिम्मेदारी है।
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