Gandhi Aur Lohiya: महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया और समाजवाद

Mahatma Gandhi Aur Ram Manohar: गाँधी और राममनोहर लोहिया के सम्बन्ध, वैचारिक साम्य व साझा विरासत पर नए सिरे से उनकी सामयिक प्रासंगिता की कसौटी पर सघन चर्चा नितान्त आवश्यक है।

Deepak Mishra
Published on: 30 Jan 2025 6:34 PM IST
Mahatma Gandhi Aur Ram Manohar Lohia
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Mahatma Gandhi Aur Ram Manohar Lohia

Mahatma Gandhi Aur Ram Manohar: आज मोहन दास करम चंद गांधी उपाख्य राष्ट्रपिता, बापू, महात्मा, की शहादत दिवस है । आज ही के दिन 1948 में आजादी की लड़ाई को रामराज्य के स्वप्न से जोड़ कर लड़ने वाले गांधी की हत्या संकीर्ण और कट्टर सोच वाले गोडसे ने किया था । गांधी ने उदारता और संकीर्णता की बहस चलाई थी, जो आज और अधिक प्रासंगिक एवं जरूरी प्रतीत होती है ।

गाँधी और राममनोहर लोहिया के सम्बन्ध, वैचारिक साम्य व साझा विरासत पर नए सिरे से उनकी सामयिक प्रासंगिता की कसौटी पर सघन चर्चा नितान्त आवश्यक है। गाँधी व लोहिया ने देश के लोक मानस को सर्वाधिक प्रभावित व झंकृत किया। भारत के बाहर सत्याग्रह कर गिफ्तारी देने वाले ये दोनों नेता रहे हैं। रंग-भेद के खिलाफ बापू ने अफ्रीका तो लोहिया ने अमेरिका में सत्याग्रह किया था। देश की आजादी के वक्त लगभग सभी बड़े राष्ट्रीय नेता दिल्ली में सरकार के गठन की कवायदों में शामिल थे जबकि महात्मा गांधी बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगे की आग बुझाने में लगे थे। उनका साथ केवल डॉ लोहिया गण-सेना बनाकर दे रहे थे। बयालिस की क्रांति के नायक लोहिया जगमोहन बोस सरीखे साथियों के साथ मिलकर गाँधी के कार्यक्रम को मूर्तरूप दे रहे थे। कट्टरपंथियों ने लोहिया के सिर पर 10 हजार रुपए का ईनाम तक रख दिया था । कई बार लोहिया पर जानलेवा हमले हुए। उन्हें पुराने साथी सतीन मित्र को खोना पड़ा, फिर भी लोहिया गाँधी जी के साथ साये की तरह रहे। गाँधी के कहने पर ही लोहिया ने 14 अगस्त,1947 को कोलकाता स्थित श्रद्धानंद पार्क में बड़ी सभा की और पूरी रात हिन्दू-मुस्लिम एकता का परचम लेकर जुलूस निकाला। साम्प्रदायिक शक्तियाँ अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सकी।

गाँधी लोहिया को बहुत मानते थे। लोहिया ने गोवा मुक्ति संग्राम का सूत्रपात 18 जून, 1946 को किया। पंजिम में गिरफ्तार हुए। पूरा गोमान्तक युद्ध-क्षेत्र में बदल गया। गोवा-गवर्नर को झुकना पड़ा। लोहिया के गोवा अभियान को गाँधी जी ने 26 जून, 1946 के ‘हरिजन’में लेख लिखकर पूरा समर्थन व आशीर्वाद दिया। गाँधी व लोहिया, दोनों सही अथों में राजनीति की वीथिका में विचरण करने वाले संत थे। दोनों अपरिग्रही व त्यागी थे। दोनों की कृषि-नीति समान थी। यही कारण है कि महात्मा गाँधी ने पंडित नेहरु पर दबाव बनाकर लोहिया को ‘अन्न समिति’ का सदस्य घनश्याम दास बिड़ला, पुरुषोत्तम ठाकुर दास, अर्थशास्त्री व केन्द्रीय मंत्री वी. के.आर. वी. राव के साथ बनवाया। बाद में लोहिया ने बिड़ला से मतभेद के कारण समिति से इस्तीफा दे दिया। लोहिया गाँधी की भाँति अन्न नियंत्रण के विरुद्ध थे। लोहिया ने गाँधी की तरह राजनीति की धुरी होने के बावजूद कभी सरकारी पद नहीं लिया। नेहरु लोहिया को राष्ट्रीय सरकार में विदेश मंत्रालय का दायित्व देना चाहते थे। सभी जानते हैं कि गुलाम भारत में लोहिया ने ही 1936 में प्रथम बार परराष्ट्र (विदेश) विभाग खोला और नेहरु के आग्रह पर परराष्ट्र विभाग के मंत्री का पद संभाला था। भारत की विदेश नीति पर लोहिया की स्पष्ट झलक आज भी परिलक्षित है।

लोहिया का समाजवाद यूरोप का अंधानुकरण नहीं था। उन्होंने भारतीय मनीषा को मथ कर समाजवाद का नवनीत निकाला था। वे ‘राम-कृष्ण-शिव’ पर व्याख्या देते थे। ‘रामायण मेला’ लगवाते थे। जब बापू ने ‘रामराज्य’ की अवधारणा दी तो लोहिया ने इसे और अधिक परिमार्जित व समावेशी बनाते हेतु ‘सीता राम राज्य’ की बात कही। गाँधी की तरह लोहिया भी नर-नारी समानता के पक्षधर थे।

हमारी नई पीढ़ी लोहिया के समाजवादी दर्शन व समाजवाद के प्रति लोहिया के अवदान से अवगत है किन्तु महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित, व्याख्यायित व अंगीकृत समाजवाद से भली-भाँति परिचित नहीं है। गाँधी-साहित्य के अध्ययन व विवेचन के बाद मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं कि महात्मा गाँधी भारतीय समाजवाद के प्रतिबद्ध वाहक थे। यही कारण है कि लोहिया की गाँधी में अगाध श्रद्धा थी। थोड़ी चर्चा बापू के समाजवाद की कर ली जाय। गाँधी ने 2 जनवरी, 1937 के अंक में लिखा है कि सच्चा समाजवाद हमें अपने पूर्वजों से मिला है जिन्होंने सिखाया है ‘‘सबै भूमि गोपाल की।’’ गाँधी ने ईशोपनिषद की प्रथम सूक्ति-

‘‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किद्यच’’ जगतां जगत्,

तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्,’’

में समाजवाद की स्पष्ट झलक देखी और त्यागमयी जीवन शैली को अपनाया। महात्मा गाँधी समाजवाद को जगत कल्याण का माध्यम मानते थे। बापू के अनुसार समाजवाद में सत्य और अंहिसा का अवतरण होना चाहिए। बापू ने हरिजन के 13 जुलाई, 1947 के अंक में लिखा है, ‘‘मेरा समाजवाद अंतिम व्यक्ति तक का हित करने के लिए है। समाजवाद अपने प्रथम आचरणकर्ता के साथ शुरू हो जाता है। मेरा समाजवाद स्फटिक की तरह स्वच्छ है। अतः इसे पाने के साधन भी स्फटिक की तरह होने चाहिए।’’ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में अग्रगण्य व उत्तर प्रदेश द्वितीय मुख्यमंत्री आचार्य सम्पूर्णानन्द द्वारा लिखित पुस्तक की टिप्पणी लिखते हुए बापू ने स्वयं को समाजवादी कहा था। लोहिया ने महात्मा गाँधी के समाजवादी दर्शन को सैद्धान्तिक आधार देते हुए राजनीतिक व सामाजिक कार्यक्रमों में रूपान्तरित किया। लोहिया अपने को ‘कुजात गाँधीवादी’ कहते थे। उन्होंने बापू की सोच के अनुरूप ही ‘विशेष अवसर के सिद्धान्त’ ‘दाम बाँधो’ ‘हिमालय बचाओ’ ‘सप्तक्रांति’ ‘विकेन्द्रीकरण’ जैसी अवधारणायें दी। गुजराती होते हुए भी बापू ने ‘हिन्दी’ व भारतीय लोक भाषाओं के पक्ष में ‘लोकभाषा बनाम सामंती भाषा’ बहस चलाया। जिस प्रकार गाँधी ने ‘यंग इण्डिया’ व ‘हरिजन’ जैसे पत्र निकाल कर पत्रकारिता को नया आयाम दिया, उसी तर्ज पर लोहिया ने ‘मैनकाइंड’ व ‘जन’ निकाले। देश गाँधी-लोहिया का नाम मंत्र की भाँति लेता तो है किन्तु उनके द्वारा सुझाए रास्ते पर चल नहीं रहा। यदि देश चला होता तो आर्थिक विषमता की खाई में नहीं पड़ा होता। देश के ऊपर 771 अरब डॉलर का कर्ज नहीं होता और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर 145 देशों से पीछे खड़ा होने के लिए अभिशप्त नहीं होता। देश व राष्ट्रहित में हमें गाँधी व लोहिया को न केवल जानना अपितु अपनाना होगा। दोनों की साझा विरासत हमारी गौरवमयी थाती है, जिसे बचाना व बढ़ाना हमारा कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है। दुर्भाग्य व दुःखद है कि दुनिया के विकसित देश व बुद्धिजीवी गाँधी-लोहिया को अपनाते जा रहे हैं और हम उन्हें छोड़ते जा रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ समाजवादी चिंतक हैं।)

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