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Shameful Incidents: चिकित्सा क्षेत्र को शर्मसार करती हैं ये घटनाएं

Medical Field Shameful Incidents: हाल ही में हुई दो घटनाओं ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अस्पताल और डॉक्टर क्या कर रहे हैं?

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 20 April 2025 11:48 AM IST
चिकित्सा क्षेत्र को शर्मसार करती हैं ये घटनाएं
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चिकित्सा क्षेत्र की शर्मनाक घटनाएं (सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Shameful Incidents In Medical Field: हमारा देश जिसने पूरी दुनिया को चिकित्सा की आयुर्वेदिक पद्धति दी, उसके साथ ही अनेक जड़ी-बूटियों द्वारा घरेलू उपचारों और शल्य चिकित्सा में भी अपना योगदान दिया। उस देश में अब देश के कई अस्पताल और चिकित्सा संस्थान लाइफ सेविंग मोड से प्रोडक्ट मोड पर आ चुके हैं। कहीं फर्जी डॉक्टरों की नियुक्ति का फर्जीवाड़ा , तो कहीं डॉक्टरों की लापरवाही से मरीजों की मौत, तो कहीं डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ द्वारा यौन उत्पीड़न की घटनाएं, तो कहीं डॉक्टरों या अस्पताल द्वारा मेडिकल अरेस्ट की घटनाएं। हाल ही में हुई दो घटनाओं ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अस्पताल और डॉक्टर क्या कर रहे हैं?

फर्जी डॉक्टर के चलते हुए 8 मरीजों की मौत

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पहली घटना में मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक मिशनरी अस्पताल में 8 मरीजों की मौत के मामले में आरोपी फर्जी डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया। इस फर्जी डॉक्टर ने सन् 2006 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में अपोलो अस्पताल 9 महीने की नौकरी करते हुए राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला की भी सर्जरी की थी। जिन्हें बाद में 18 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया और उसके बाद उनकी मौत हो गई। अपोलो जो कि स्वास्थ्य क्षेत्र में एक स्टार अस्पताल की अहमियत रखता है और पूरे देश में इसकी स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी एक चेन है। उस समय अपोलो अस्पताल ने उन्हें मध्य भारत के सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ ब्रिटेन के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ एन जॉन कैम के रूप में पेश किया जो कि लेजर का उपयोग करके सर्जरी करता था। उस डॉक्टर ने ढाई महीने में 15 के करीब हार्ट ऑपरेशन किए, जिनमें से 7 मरीजों की मौत हो गई। बाद में पता चला कि उसके पास में डॉक्टर की डिग्री ही नहीं थी, वह धोखेबाज था जिसका नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव था।

उसके बाद उसे अपोलो हॉस्पिटल से निकाल दिया गया। यह तो अपोलो जैसे बड़े अस्पताल की कहानी है। इसके साथ ही न जाने कितने ऐसे फर्जी डॉक्टर छोटे-छोटे शहरों के छोटे-छोटे अस्पतालों में काम कर रहे होंगे और पता नहीं कितने मरीजों को उन्होंने अभी तक मौत के कुएं में धकेल दिया होगा। अपोलो जैसे बड़ी चेन वाले अस्पतालों में और अन्य 4-5 स्टार रेटेड अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टरों के बारे में मरीज कोई तरह का संशय नहीं कर पाते हैं, जबकि इस तरह के फर्जी डॉक्टरों अपने यहां रखकर ये अस्पताल बिना किसी सही तरह से जांच के नियुक्त कर लेते हैं और बगैर मौत की परवाह किए मरीज को वेंटिलेटर पर देकर मेडिकल अरेस्ट कर बस पैसे को ही लूटते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी अस्पताल एक जैसे होते हैं पर इस तरह की फर्जीवाड़े वाले मामले गाहे-बगाहे देश के हर प्रदेश में दिखाई दे ही जाते हैं।

भारत में मेडिकल प्रेक्टिस करने वाले फर्जी डॉक्टरों की सही संख्या बता पाना असल में बहुत ही मुश्किल है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग दो से तीन लाख फर्जी डॉक्टर हैं। हालांकि देश में एमबीबीएस मेडिकल प्रेक्टिस करने के लिए स्टेट मेडिकल रजिस्टर में रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है , इसलिए सभी रजिस्टर्ड डॉक्टरो के पास मेडिकल प्रेक्टिस करने की योग्यता होती है। लेकिन कानून के सख्ती से लागू नहीं हो पाने की वजह से पूरे देश भर में झोलाछाप डॉक्टर की संख्या बहुत अधिक है। ये झोलाछाप डॉक्टरों के रूप में प्रेक्टिस करने वाले ज्यादातर लोग या तो किसी डॉक्टर के पास पहले कंपाउंडर के रूप में काम कर चुके होते हैं या फिर उन्हें थोड़ी बहुत चिकित्सा क्षेत्र की जानकारी होती है, इस कारण वे उन छोटे-छोटे गांवों और जगहों में काम करते हैं और अपने आप को आयुर्वेदिक, यूनानी या होम्योपैथिक का डॉक्टर बताते हैं।

हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां डॉक्टरों की कमी एक गंभीर समस्या है, वहां पर इस तरह के झोला छाप फर्जी डॉक्टर पूरी तरह से सक्रिय होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में लगभग डेढ़ हजार लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि भारत के पास में दुनिया के सबसे अधिक मेडिकल कॉलेज हैं, फिर भी यहां लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं अत्यंत कम है। मेडिकल कॉलेजों से पास आउट छात्रों की संख्या भी बहुत कम होती है जबकि उन मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए कंपटीशन बहुत अधिक है। जबकि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस इतनी अधिक होती है कि सामान्य आय वाला परिवार तो उसमें अपने बच्चे का दाखिला भी नहीं कर सकता है। इसलिए पूरे देश में फर्जी डॉक्टरों या झोला छाप डॉक्टरों की एक बड़ी संख्या दिखाई देती है। फिर सरकारी या अन्य मध्य स्तर के अस्पतालों की बहुत बुरी स्थिति है जबकि जो स्टार रेटेड अस्पताल हैं वहां पर चिकित्सा का खर्चा इतना अधिक होता है कि सामान्य जन अपना इलाज करा ही नहीं सकता है।

एयर होस्टेस से डिजिटल रेप

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दूसरी घटना जो थी वह गुरुग्राम जैसे विभिन्न कंपनियों वाले क्षेत्र में मेदांता अस्पताल जैसे बड़े अस्पताल में आईसीयू में भर्ती एयर होस्टेस के यौन उत्पीड़न की है। जिसे की तबीयत बिगड़ने से अस्पताल में लाया गया था और आईसीयू में रखा गया था। उसके साथ डिजिटल रेप करने वाला कोई और नहीं वहां का स्टाफ था, जो कि पिछले 5 महीने से अस्पताल में नौकरी कर रहा था और वहां पर आईसीयू मशीन का टेक्नीशियन था। यह एक बड़े ही दुःख की बात है कि वेंटिलेटर पर पड़ी एयर होस्टेस के साथ डिजिटल रेप की घटना घटी। हम जिन डॉक्टरों और टेक्निशियनों पर भरोसा करके अपने मरीज को उनके हवाले करते हैं, वे क्या इतने संवेदनहीन होते हैं कि चिकित्साधीन मरीज में भी सिर्फ महिला होने के कारण यौन सुख चाहते हैं।

इसके साथ ही विभिन्न अस्पतालों में छोटी-मोटी बीमारियों में भी पैसों के लालच में दवाइयों के नाम पर मरीजों को लूटा जाता है और जब उनके पास पैसे खत्म हो जाते हैं तो उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता है या फिर उन मरीजों की जान से खिलवाड़ करी जाती है। कई परिवार कर्ज के बोझ तले दबकर अपने मरीज के लिए इलाज करवाते हैं, जिसमें वे अपनी जमीन, जेवर और जानवर तक बेच देते हैं। पूरे देश में कई वर्षों से मानव अंगों की तस्करी भी अस्पतालों से संचालित होने लग गई है जो कि पिछले 30 वर्षों में भारत में बहुत तेजी से बड़ी है। अनेकों ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जो कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं और अस्पतालों की बदहाली का किस्सा बयान करती हैं । इस तरह के अस्पताल मेक वैल अस्पताल नहीं बल्कि मेक डेथ अस्पताल के रूप में काम करते हैं, जिनके खिलाफ किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं होती है।

( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)

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