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तो बंगाल भूल गया चैतन्य महाप्रभु और विवेकानंद को
आजाद भारत में चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद पहले कभी ऐसी असहिष्णुता नहीं देखी गई थी।
चैतन्य महाप्रभु और स्वामी विवेकानंद (काॅन्सेप्ट फोटो: सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल का जिक्र आते ही चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चेहरे जेहन में उभरने लगते हैं। इन सबने अपने विचारों से करोड़ों-अरबों लोगों को प्रभावित किया। ये अब भी भारत के नायक हैं और सदैव बने रहेंगे। पर जिस धरती से इन सभी महापुरुषों का संबंध रहा है वह अब हिंसा और खूनी खेल का अख़ाड़ा बन चुकी है। वहां पर एक विचारधारा से संबंधित लोगों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। अभी हाल ही में राज्य विधान सभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की विजय के बाद कसकर खून खराबा हुआ। हैरानी इस बात की है कि बंगाल में हिंसा थम ही नहीं रही है और राज्य के अलग-अलग हिस्सों से उपद्रव की खबरें लगातार चली आ रहीं हैं। हिंसा के शिकार भाजपा के कार्यकर्ता ही हो रहे हैं। अभी तक चुनाव संपन्न होने के बाद नौ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। सैकड़ों घायल हो गए हैं। कुछ ने तो तृणमूल के अपराधी दादाओं के भय से बिहार, झारखण्ड, असम और उड़ीसा में भागकर शरण ले ली है।
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