लोकतंत्र की आत्मा: व्यंग्यचित्रों में छिपा जनमत का स्वर

Power of Cartoons in Democracy: भारत में R. K. Laxman द्वारा रचित ‘The Common Man’ न केवल एक कालजयी पात्र है, बल्कि यह भारतीय मध्यम वर्ग की चुपचाप सब सह लेने वाली मानसिकता का प्रतिबिंब भी है।

Ankit Awasthi
Published on: 27 April 2025 4:27 PM IST
Power of Cartoons in Democracy
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Power of Cartoons in Democracy (Photo - Social Media)

Power of Cartoons in Democracy: लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक़ होता है — चाहे वह शब्दों में हो, लेखों में हो या रेखाओं में। कार्टूनिस्ट इसी अभिव्यक्ति की सबसे जीवंत और तीक्ष्ण विधा के वाहक होते हैं। वे समाज की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को हल्के-फुल्के, पर तीखे अंदाज में जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं। यही उन्हें लोकतंत्र की एक अहम अभिव्यक्ति का प्रतीक बनाता है।

कार्टून की ताकत: जब रेखाएं बोल उठती हैं

भारत में R. K. Laxman द्वारा रचित ‘The Common Man’ न केवल एक कालजयी पात्र है, बल्कि यह भारतीय मध्यम वर्ग की चुपचाप सब सह लेने वाली मानसिकता का प्रतिबिंब भी है। उनके बनाए हुए कार्टून आज भी Times of India के पन्नों पर लोकतंत्र के मिज़ाज को दर्शाते हैं।

वहीं, Amul के टॉपिकल एडवरटाइजिंग कार्टून दशकों से देश की प्रमुख घटनाओं पर व्यंग्य करते आ रहे हैं — चाहे वह इमरजेंसी हो, मनमोहन सिंह की चुप्पी या फिर चंद्रयान की सफलता। अमूल गर्ल का हंसता हुआ चेहरा गंभीर मुद्दों को हल्के अंदाज में उठाकर जनमानस को सोचने पर मजबूर कर देता है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य:

विदेशों में भी कार्टूनों की भूमिका अहम रही है। Charlie Hebdo (फ्रांस) के कार्टूनों ने धार्मिक और राजनीतिक कट्टरताओं के विरुद्ध आवाज उठाई। अमेरिका में Doonesbury जैसे राजनीतिक स्ट्रिप्स ने वियतनाम युद्ध, वाटरगेट स्कैंडल जैसे मुद्दों पर खुलकर टिप्पणी की।

इन सभी उदाहरणों में, एक बात स्पष्ट होती है — कार्टून सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का एक हथियार हैं।

कुछ प्रश्न जिनमें कार्टूनों ने अहम भूमिका निभाई:

1975 की आपातकाल (इमरजेंसी): उस समय कई कार्टूनिस्टों ने सरकार की नीतियों पर तीखा प्रहार किया, भले ही सेंसरशिप लगी थी।

2012 का Anna Hazare आंदोलन: इस दौरान सोशल मीडिया पर व्यंग्यचित्रों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-आंदोलन को और तेज किया।

CAA-NRC विरोध: युवाओं ने डिजिटल कार्टूनों के माध्यम से विरोध जताया और अपनी बात रखी।

COVID-19 लॉकडाउन: अमूल और सोशल मीडिया कार्टूनिस्टों ने सरकार की नीतियों, आम जनता की परेशानियों को बेहद प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया।

इस विधा को बचाना क्यों जरूरी है

कार्टूनिस्टों पर आज की डिजिटल और राजनीतिक दुनिया में कई तरह के दबाव हैं — सेंसरशिप, ट्रोलिंग और कभी-कभी तो कानूनी कार्यवाही भी। ऐसे में इस कला को जीवित रखना लोकतंत्र को जीवित रखने के समान है।

स्कूलों में कार्टून ड्राइंग को बढ़ावा देना, मीडिया हाउस में स्वतंत्र कार्टूनिस्टों को स्थान देना और सोशल मीडिया पर इनकी रचनाओं को समर्थन देना, इस विधा को संरक्षित रखने के रास्ते हो सकते हैं।

कार्टून, केवल चित्र नहीं — बल्कि एक जनभावना होती है। यह आम आदमी की मुस्कान में छिपी उसकी पीड़ा और उसके सवालों का प्रतिनिधित्व करता है। जब लोकतंत्र की नींव डगमगाती है, तब एक कार्टूनिस्ट की कलम उसे संभालती है — हँसी में छुपे प्रतिरोध की ताकत बनकर।

Admin 2

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