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Places Of Worship Act: आस्था कानून से ऊपर है, खिलवाड़ खतरनाक होगा !!

Places Of Worship Act: प्रधानमंत्री को याद है कि सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा।

K Vikram Rao
Published on: 8 Dec 2024 6:54 PM IST
Places Of Worship Act ( Pic- Social- Media)
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 Places Of Worship Act ( Pic- Social- Media)

Places Of Worship Act: मोदी सरकार आस्था और चतुरायी के बीच उलझ गई है। यदि अगले गुरुवार (12 दिसंबर, 2024) को कांग्रेसी खुर्रांट स्व. प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव द्वारा राष्ट्र पर थोपे गए धर्मस्थल संरक्षण कानून को भाजपा पोसती है तो उसके चिंतन का आधार ही चरमरा जाएगा। कोर्ट में कहना पड़ेगा कि ज्ञानवापी, कृष्णजन्म स्थान आदि पर इस्लामिस्टों के कब्जे सही थे, स्वीकार्य हैं। प्रधानमंत्री को याद है कि सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। याचिकाओं में किसी पूजा स्थल को फिर से पाने या 15 अगस्त, 1947 को प्रचलित स्वरूप में परिवर्तन की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाने वाले प्रावधानों को चुनौती दी गई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ दोपहर 3.30 बजे मामले की सुनवाई करेगी।

क्या वजूद है इस कदम का

हर साल 27वें रजब को, दुनिया भर के मुसलमान इस्लामी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और अनोखी घटनाओं में से एक को याद करते हैं, जिसे अल-इसरा और अल-मेराज के रूप में जाना जाता है। पैगंबर की मक्का से यरूशलेम में अल-अक्सा मस्जिद तक की रात की यात्रा, जहाँ से उन्होंने स्वर्ग की यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत की। आम तौर पर मुसलमान इस यात्रा को अल्लाह की ओर से एक चमत्कार मानते हैं, जो विशेष रूप से पैगंबर मुहम्मद को प्रदान किया गया था। यह उनकी आध्यात्मिक यात्रा के चरमोत्कर्ष का प्रतिनिधित्व करता है, जो अंतिम उपहार, सर्वशक्तिमान अल्लाह से बातचीत में परिणत हुआ।

कौन इसे सिद्ध कर पाएगा

फिर कहां प्रमाणित हो सका कि भगवान ईशु की मां मेरी तो कुंवारी थी। सूली पर चढ़ा देने के बाद निधन हो जाने की कुछ दिनों बाद ईशु फिर जीवित हो गए थे। इसी भांति पैगंबर मोसेज ने यहूदियों को सुरक्षित बचा कर, समुद्र चीर कर मिस्र के तानाशाहों से बचाने हेतु इस्राइल पहुंचाया था। अर्थात जहां आस्था का प्रश्न आता है, वहां तर्क और कानून नहीं चलता है। सुप्रीम कोर्ट को यह तथ्य ध्यान में रखना होगा अगले सप्ताह।

आखिर क्या है यह कानूनी बखेड़ा , क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991

कांग्रेसी पीवी नरसिम्हा रॉव की सरकार के दौरान 1991 में ये कानून बना था। बाबरी ढांचे के नेस्तनाबूद होने के तुरंत बाद। इस कानून के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि 15 अगस्त, 1947 से पहले वजूद में आए किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। ऐसा करने पर सजा की भी व्यवस्था की गई, जो एक से लेकर तीन साल तक की थी।

अतः मोदी सरकार से अपेक्षा है कि बिना लागलपेट के कोर्ट को बता दें कि इतिहास पलटा नहीं जा सकता है। धारा का प्रवाह थम नहीं सकता। गणतंत्र को सिविल युद्ध से बचाना आवश्यक है। इंदिरा सरकार का 25 जून, 1975 वाला संदर्भ याद रहे।

इसी परिवेश में डेनमार्क के सम्राट केन्यूट का नमूना सामने है। उनके चापलूस दरबारियों ने बताया कि वे हथेली उठाएंगे तो सागर की लहरें थम जाएंगी। तट पर सिंहासन लगा कर बादशाह बैठ गए। पैर गीले होने लगे। केन्यूट समझ गए कि दैवी शक्ति मजबूत है।

सवाल है कि मोदी स्वयं क्यों कांग्रेसी सरकार का खामियाजा भुगतें? राव का तो सदन को वादा था कि बाबरवाली मस्जिद फिर खड़ी की जाएगी। दिखा पाए हिम्मत ? फैजाबाद में सरकारी मदद के बावजूद नई मस्जिद की नींव आज तक तो डाल नहीं पाए ? याद रहे कि तर्क जहां खत्म होता है, वहीं से आस्था शुरू होती है।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)



Shalini Rai

Shalini Rai

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