माईवे या हाईवे: अटकलबाजी जारी, अखिलेश परिक्रमा में जुटे छुटभैये और दिग्गज सपाई

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि आप मेरे पिता हैं, मेरे गुरू हैं, आपने ही मुझे मुख्यमंत्री बनाया है। शिवपाल यादव ने कहा कि नेताजी आपने जब जैसा कहा, मैंने वैसा ही किया। आगे भी करूंगा। इन दोनों ने माई वे पर चलना मंजूर किया तो अपनी-अपनी जगह कायम हैं,लेकिन राष्ट्रीय महासचिव रहे राम गोपाल यादव ने माई वे मंजूर नहीं किया, लिहाजा उन्हें हाईवे पर जाना पड़ा।

zafar
Published on: 28 Oct 2016 6:18 PM IST
माईवे या हाईवे: अटकलबाजी जारी, अखिलेश परिक्रमा में जुटे छुटभैये और दिग्गज सपाई
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माईवे या हाईवे: अटकलबाजी जारी, अखिलेश परिक्रमा में जुटे छुटभैये और दिग्गज सपाई

लखनऊ: समाजवादी पार्टी में लंबे अरसे से चल रहे सियासी घटनाक्रम के बीच इसके मुखिया मुलायम सिंह यादव के संदेश ने सारी तस्वीर साफ कर दी है कि सिर्फ दो ही रास्ते हैं। माई वे या फिर हाईवे। उनके बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने भाषण में कहा कि आप मेरे पिता हैं, मेरे गुरू हैं, आपने ही मुझे मुख्यमंत्री बनाया है। आपने जो-जो कहा, मैंने करके दिखाया। आपकी पार्टी का एक-एक एजेंडा लागू किया। आप कहेंगे तो पद छोड़ दूंगा। मैं उत्तराधिकारी हूं, नई पार्टी क्यों बनाऊंगा। शिवपाल यादव ने कहा कि नेताजी मैंने आपके हर निर्देश का पालन किया। आपने जब जैसा कहा, मैंने वैसा ही किया। आगे भी आप जैसा कहेंगे, वैसा ही करूंगा। इन दोनों ने माई वे पर चलना मंजूर किया तो अपनी-अपनी जगह कायम हैं,लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे राम गोपाल यादव ने माई वे पर चलना मंजूर नहीं किया, लिहाजा उन्हें हाईवे पर जाना पड़ा।

जनता निराश

पार्टी और परिवार में इस घटनाक्रम से नुकसान-फायदा चाहे जिसका भी हुआ हो, पर उत्तर प्रदेश की जनता निराश है। जो लोग अखिलेश यादव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के बारे में सोच रहे थे, समाजवादी सरकार की नीतियों और एजेंडे पर चर्चा कर रहे थे, वे सोचने को मजबूर हैं कि समाजवादी पार्टी को वोट क्यों दिया जाए। परिवार का अंदरूनी विवाद जिस तरह से सार्वजनिक हुआ है, उससे एक बात तो साफ हो गई कि यह संघर्ष जनता के काम करने को लेकर नहीं हुआ है। पार्टी के नेताओं के अपने एजेंडे हैं, अपने मकसद हैं। सार्वजनिक मंच पर देश के सबसे बड़े सियासी परिवार में ऐसी पगड़ी उछाल संस्कृति जनता ने पहली बार देखी है।

उछले बयानवीर

परिवार के इस झगड़े में पार्टी के उन नेताओं को भी बोलने का मौका मिल गया, जो हाथ जोड़े खड़े रहने के सिवा कुछ कह ही नहीं सकते थे। उन युवा नेताओं ने अपनी ‘वाणी वीरता’ का खूब प्रदर्शन किया जो राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं। नेताजी या शिवपाल के नजर उठाकर देख लेने मात्र से खुद को धन्य समझने वाले नेताओं ने परिवार में फूट दिखने पर ऐसा रंग बदला मानो यह दोनों बड़े नेता उनके दुश्मन हों।

पूरे घटनाक्रम में भाजपा और बसपा ने भरपूर बयानवीरता दिखाई। क्या राष्ट्रीय नेता और क्या छुटभैया, सबके सब सपा नेताओं को ‘ज्ञान’ देने में कसर नहीं छोड़ना चाहते। सपा जवाब देने की हालत में भी नहीं थी। लोगों की नजर में यह बात खारिज नहीं की जा सकती कि परिवार में पाले खिंच गए हैं। एक में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव हैं तो दूसरे में अखिलेश यादव और राम गोपाल। ऐसे में जब चुनने का वक्त है तो अधिकांश नेता अखिलेश के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं। तभी तो वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल कहते हैं कि हमारी पार्टी के बड़े नेता जनता की नब्ज को समझ नहीं पाए हैं। अगर जनता की नब्ज को समझा होता तो ये नौबत ही नहीं आती। पार्टी को सोचना चाहिए कि इस वक्त मुख्यमंत्री को नजरअंदाज करने से पार्टी का खड़ा होना बहुत मुश्किल है। जो नेता सोच रहे हैं कि अखिलेश यादव को हम धरातल पर ला देंगे, उनकी छवि खराब कर देंगे, वो उनकी गलतफहमी हैं। जनता के बीच अखिलेश सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं।

धुरी बने अखिलेश

पार्टी के हर छोटे बड़े नेता शीर्ष नेतृत्व को खुलेआम कुछ कहते तो नहीं पर परिक्रमा अखिलेश यादव की ही कर रहे हैं। हालात से पार्टी में यह संदेश जा चुका है कि सपा के भविष्य के नेता अखिलेश यादव ही हैं। चाहे बेनी प्रसाद वर्मा हों, रेवती रमण सिंह हों, आजम खां हों या राम गोविंद चौधरी, सबके सब अखिलेश के पाले में ही खड़े नजर आते हैं। वजह भी है, ये सारे नेता किसी न किसी रूप में अमर सिंह के खिलाफ हैं। मुख्तार अंसारी की छवि भी इन सारे नेताओं को नापसंद है। इस मसले पर अखिलेश का स्टैंड जनता को भी सही लगता है।

पूरा घटनाक्रम प्रायोजित है या अप्रत्याशित, इस पर कयासबाजी कम नहीं हुई। बहुतेरे इसे प्रायोजित ही मानकर चल रहे हैं। इसके पीछे कुल मिलाकर पार्टी के भीतर अखिलेश यादव की छवि मजबूत करने का इरादा छिपा हो सकता है। सियासत के जानकारों का कहना है कि अगर यह कयास सही है तो भी पार्टी को भारी नुकसान हुआ है। जनता इन बारीकियों में न जाकर सपा नेताओं के उस आचरण पर ही बात कर रही है जो उसने टीवी पर देखा है।

मुलायम सिंह यादव

-आलोचनाओं से सबक लेना चाहिए। जिसकी सोच बड़ी नहीं होगी, वह कभी बड़ा नेता नहीं बन सकता।

-पार्टी और परिवार में कोई विवाद नहीं है। मुख्यमंत्री अखिलेश ही रहेंगे। बर्खास्त लोगों को मंत्रिमंडल में लिया जाएगा या नहीं, यह मुख्यमंत्री का अधिकार है। टिकट बंटवारे में अखिलेश की भी सुनी जाएगी।

शिवपाल सिंह यादव

-रामगोपाल यादव का बेटा अक्षय यादव और बहू यादव सिंह मामले में फंसे हुए हैं। सीबीआई से बचने के लिए रामगोपाल यादव भाजपा से मिले हुए हैं। भाजपा नेताओं के इशारे पर वह पार्टी को तोडऩा चाहते हैं। रामगोपाल दलाल हैं। हम उनकी दलाली नहीं चलने देंगे।

-मैं अपने इकलौते बेटे और हाथ में गंगाजल लेकर कसम खाने को तैयार हूं कि अखिलेश ने मुझसे कहा था कि नया दल बनाऊंगा और किसी से समझौता करके चुनाव लड़ूंगा।

अखिलेश यादव

-मैं कोई नई पार्टी नहीं बनाऊंगा। नेताजी,आपने मुझे मुख्यमंत्री बनाया है। आप कहें तो इस्तीफा दे दूंगा। यदि मैं पद से हटाया जाता हूं तो भी सपा के लिए कैंपेन करूंगा। मैं सिर्फ आगामी चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं। मेरी दूसरी कोई योजना नहीं है।

रामगोपाल यादव

-नेताजी आसुरी शक्तियों से घिरे हुए हैं। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जहां अखिलेश वहीं विजय। अखिलेश यादव ही समाजवादी पार्टी हैं।

नरेश अग्रवाल, नेता समाजवादी पार्टी

-हमारी पार्टी के बड़े नेता जनता की नब्ज को समझ नहीं पाए हैं। अगर जनता की नब्ज को समझा होता तो ये नौबत ही नहीं आती। पार्टी को सोचना चाहिए कि इस वक्त मुख्यमंत्री को नजरअंदाज करने से पार्टी का खड़ा होना बहुत मुश्किल है।

नारद राय, बर्खास्त मंत्री

-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सलाह देने वालों ने उल्टी-सीधी सलाह दी है। वो जब जो मन में आता है फैसला ले लेते हैं। उसी का परिणाम है कि पार्टी में इतनी बड़ी घटना हो गई जिसकी कभी संभावना भी नहीं थी।

कल्बे जव्वाद, शिया धर्मगुरु

-सब आजम खां का किया धरा है। वह सबको आपस में लड़वा कर स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।

अमर सिंह

-रामगोपाल यादव तो नपुंसक हैं। मैं सपा को बर्बाद नहीं कर रहा। यह आरोप गलत है। मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव पूरी तरह शानदार हैं। पहली बार शासन संभालने वाले व्यक्ति के तौर पर विकास पर उनका ध्यान है। विकास का उनका एजेंडा बेहतरीन है।

सुशील मोदी, भाजपा नेता, बिहार

-अखिलेश यादव तारीफ के काबिल हैं। मुख्तार अंसारी जैसे गैंगस्टर और विवादित नेता व अमर सिंह के अपनी पार्टी में प्रवेश का विरोध करने के साथ अपने पिता की छाया से बाहर निकलने का प्रयास करके उन्होंने अपनी अलग छवि बना ली है।

कलराज मिश्र, केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता

-यादव परिवार का अंतर्कलह पूरे प्रदेश को ध्वस्त कर रहा है। यदि मैं कहूं कि यह लड़ाई कुर्सी की है, पावर की है, पैसे की है तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगा। यह लड़ाई यदि जनता के भले के लिए लड़ी जाती तो ज्यादा अच्छा होता।

माईवे या हाईवे: अटकलबाजी जारी, अखिलेश परिक्रमा में जुटे छुटभैये और दिग्गज सपाई

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