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हादसे में एक आदमी की मौत पर अब यह शहर नहीं चौंकता है
लखनऊ में सरकारी भवन का छज्जा गिरने से एक व्यक्ति की मौत हो गई, जो सरकारी लापरवाही को उजागर करता है। इन हादसों में जिम्मेदारी की कमी और मानवीय जीवन की घटती कीमत पर यह लेख सवाल उठाता है, जहां कोई भी अफसर जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता।
Representative Image (Photo: AI Generated)
कुछ घटनाएं-दुर्घटनाएं हमारे समाज में इतनी स्वीकार्य हो गई हैं कि अब वे बड़ी खबरें नहीं बनतीं। जैसे सब ने मान लिया है कि हादसों में मौतें होती ही हैं। जब घटना को ही समान्य मान लेने की पृवत्ति हो गई हो तो इसके लिए दोषी कौन है, क्या सजा मिलनी चाहिए ये सब बातें तो करे ही कौन। हाल ही में उत्तर प्रदेश की चमचमाती हुई राजधानी लखनऊ में ऐसा ही एक हादसा हुआ है। हुसैनगंज स्थित सरकारी विकासदीप भवन का छज्जा गिरा और इसकी चपेट में आने से सीतापुर के शशि गौरव श्रीवास्तव की मौत हो गई। एक निर्दोष इंसान जो अपने कामकाज के सिलसिले में सीतापुर से आए थे अपने घर वापस जीवित नहीं पहुंचे। कितनी डरावनी बात है ये? लेकिन क्या वाकई में अब यह घटनाएं चौंकाती हैं।
सरकारी विभागों ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है-
इससे पहले भी सड़कों पर गड्ढों के कारण बाइक सवारों की समय समय पर मौत होने की खबरें आती रही हैं। सार्वजनिक स्थानों पर बिजली का करंट लगने से लोग मरते रहते हैं। संविदा पर काम करने बिजली कर्मचारी तो अकसर बिजली के तारों को ठीक करते समय जान गंवाते हैं। इसी तरह सफाई कर्मचारियों के सीवर की गैस से हताहत होने की खबरें अकसर सामने आती रहती हैं।
यहां महत्वपूर्ण यह कि इनमें से ज्यादातर घटनाओं में सरकारी लापरवाही सामने आती है। लखनऊ की विकासदीप बिल्डिंग भी लखनऊ विकास प्राधिकरण की है। इसमें कई सरकारी दफ्तर चलते हैं। इसी तरह सड़कों के रखरखाव की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग की है। बिजली से कोई हताहत ना हो यह जिम्मेदारी बिजली विभाग की है। सीवर में और बरसात में गड्ढों से जान माल का नुकसान ना हो यह जिम्मेदारी नगर निगमों और नगर विकास विभाग की है। कुल मिलाकर इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकनी की जिम्मेदार सरकार की ही है।
दोषी अफसरों को कभी सजा नहीं मिलती
लेकिन सरकारी विभागों का रुख इन मामलों में कितना असंवेदनशील होता है यह इसी से पता चलता है कि इस तरह की दुर्घटनाओं में शायद ही किसी अफसर की जिम्मेदारी तय हुई हो और उसे सजा मिली हो। जिस दिन इस तरह के मामलों में हत्या का मुकदमा दर्ज करके सजा दी जानी शुरू हो जाएगी इस तरह के हादसे कम होने लगेंगे। लेकिन हमारे देश में आम आदमी की जान की कीमत कुछ भी नहीं है, हादसे के बाद मृतक के परिजन रो पीटकर चुप हो जाते हैं। और कर भी क्या सकते हैं।
महान शायर साहिर लुधियानवी की मशहूर नज़्म के कुछ अंश याद आ रहे हैं-
‘माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी।‘
हम भी इसी इंतजार में हैं कि वो सुबह कभी तो आएगी।
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