Ajab Gajab Imart: विदेशों में मौजूद कई ऐतिहासिक इमारतों से मेल खाती हैं ये भारतीय इतिहास से जुड़ी विरासतें

Ajab Gajab Imart: भारत का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। भारत में ऐसी तमाम इमारतें हैं जिनसे मिलती जुलती इमारतें दुनिया के कई देशों में मौजूद हैं।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 28 Jan 2025 7:15 AM IST (Updated on: 28 Jan 2025 7:15 AM IST)
विदेशों में मौजूद कई ऐतिहासिक इमारतों से मेल खाती हैं ये भारतीय इतिहास से जुड़ी विरासतें
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Indian Monuments Resemble With International Structures (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Ajab Gajab Imart: मुगल साम्राज्य की वास्तुकला दुनिया की सबसे प्रभावशाली और प्रशंसनीय विरासतों में से एक है। अपनी शुरुआती दौर से लेकर, फ़ारसी, इस्लामी और भारतीय शैलियों के मिश्रण से लेकर शाहजहाँ के शासनकाल में अपनी भव्यता के चरम तक, मुगल वास्तुकला एक समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत को दर्शाती है। साम्राज्य के समरूपता, भव्य गुंबदों, जटिल सजावट और खूबसूरती से डिजाइन किए गए उद्यानों पर जोर ने भारत और उसके बाहर के परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

यही वजह है कि मुगल साम्राज्य की वास्तुकला की प्रतिभा की विरासत आधुनिक वास्तुकला और डिजाइन के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। इन इमारतों के जरिए भारत के कोने-कोने में इतिहास जुड़ा हुआ है। चाहे वो प्राचीन दस्तावेजों में लिखा गया हो या इमारतों के रूप में संजो दिया गया हो। भारत का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। अलग-अलग साम्राज्यों के राजाओं के शासन और विदेशी दुश्मनों के आक्रमण के बाद भी भारत की ऐतिहासिक विरासत को बेहद बेहतर ढंग से संजो रखा है। भारत में भी ऐसी तमाम इमारतें हैं जो अलग-अलग मकसद के चलते बनाई गई थीं।

यहां के नवाब यूरोपियन वास्तुकला के बहुत ज्यादा मुरीद थे। यही वजह है कि इस दौरान निर्मित हुईं ज्यादातर इमारतें यूरोपियन वास्तुकला का जीता-जागता प्रमाण बनीं हुईं हैं। देश में कई ऐतिहासिक इमारतें ऐसी हैं जिनसे मिलती जुलती इमारतें दुनिया के कई देशों में मौजूद हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ इमारतों के बारे में-

पेरिस में मौजूद आर्क डे ट्रिओंफे से मेल खाता है इंडिया गेट

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

नई दिल्ली के केंद्र में 42 मीटर ऊंचा इंडिया गेट है, जो चौराहे के बीच में एक “आर्क-डी-ट्रायम्फ” जैसा तोरणद्वार है। अपने फ्रांसीसी समकक्ष के लगभग समान, यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले 70,000 भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है। देश और दिल्ली की शान कहे जाने वाले इंडिया गेट का निर्माण 1921 में प्रथम विश्व युद्ध के वीरों को श्रद्धांजलि के रूप में किया गया था। इंडिया गेट का ढांचा बहुत हद तक पेरिस के आर्क डे ट्रिओंफे से मिलता है। आर्क डे ट्रिओंफे की बात करें तो इसको 1806-36 के बीच पेरिस में बनाया गया था।

इंडिया गेट की दीवारों पर युद्ध में शहीद हुए सभी 13,000 सैनिकों का नाम लिखा गया है जिसमें भारतीय सैनिकों के साथ-साथ ब्रिटिश फौजियों का नाम भी उकेरा गया है। आर्क डे ट्रिओंफे को नेपोलियन की नेतृत्व में जीते हुए युद्ध को सेलिब्रेट करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इंडिया गेट को देखने के लिए आपको किसी भी तरह की एंट्री फीस नहीं देनी होती है और आप दिन के किसी भी समय आसानी से इसको देख सकते हैं।इंडिया गेट की आधारशिला उनकी रॉयल हाइनेस, ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था। स्मारक को 10 साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था। भारत को आजादी मिलने के बाद एक और स्मारक, अमर जवान ज्योति बहुत बाद में जोड़ा गया था।

स्टोनहेंज की तर्ज पर मणिपुर में हैं विलोंग खुल्लेन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

स्टोनहेंज इंग्लैंड के विल्टशायर में सैलिसबरी मैदान पर स्थित एक प्रागैतिहासिक महापाषाण संरचना है, जो एम्सबरी से दो मील (3 किमी) पश्चिम में स्थित है। इंग्लैंड की तरह भारत के मणिपुर में स्थित विलोंग खुल्लेन एक जगह ऐसी है जहाँ अलग-अलग आकर के मोनोलिथ पत्थरों का एक समूह है। इंग्लैंड का स्टोनहेंज विश्व की सबसे पुरानी इमारतों में से है जिसको वर्ल्ड ऑफ वंडर्स में भी शामिल किया जा चुका है। असल में इस जगह पर कई सारे पत्थर हैं जिनकी ऊँचाई 13 फुट के आसपास है। खास बात है कि ये सभी पत्थर मिलकर एक रिंग का आकार बनाते हैं। इसी तरह मणिपुर के विलोंग खुल्लेन के बारे में भी बहुत कम लोगों को पता है इसलिए यहाँ बहुत कम टूरिस्ट पहुँच पाते हैं। स्टोनहेंज की ही तरह मणिपुर की इस जगह पर भी आड़े तिरछे पत्थर गढ़े हुए हैं। हालांकि ये पत्थर किसी तरह का रिंग नहीं बनते हैं लेकिन स्टोनहेंज की तरह इनके इस तरह होने का कारण नहीं मालूम हो पाया है।

विलोंग खुल्लेन में लगभग 135 पत्थर हैं जिनमें से कुछ पत्थर 10 फुट तक ऊँचे हैं। हरी-भरी पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में ये अनोखे मोनोलिथ, मामूली बस्ती के पहरेदारों की तरह दिखते हैं, जो आगंतुकों को आकर्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, जिनके निर्माणकर्ताओं का कोई इतिहास नहीं है और उनके अस्तित्व के कारण की कोई कहानी नहीं है। कोई भी व्यक्ति इंग्लैंड और फ्रांस में विश्व प्रसिद्ध मेगालिथ (और मोनोलिथ) के साथ तुलना करने से खुद को नहीं रोक सकता। विलोंग खुल्लेन की तरह, ये भी हमेशा इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को हैरान करते रहे हैं। “ये जनजाति योद्धाओं की यादों में बनाए गए थे“, गांव के कई ग्रामीण इन्हें पवित्र आत्मा मानते हैं जो रात में जीवित हो जाती हैं। उनके अनुसार, मोनोलिथ की गिनती करना संभव नहीं है क्योंकि आत्माएं ऐसा करने से मना करती हैं। विडंबना यह है कि एक दूसरे के सापेक्ष उनकी अनियमित स्थिति के कारण उन्हें गिनना वास्तव में बहुत भ्रामक है। हमेशा दोहराव की संभावना बनी रहती है।

बादशाही मस्जिद की तर्ज पर है जामा मस्जिद

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बादशाही मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसका बाहरी हिस्सा संगमरमर की लड़ाई के साथ लाल बलुआ पत्थर से सजाया गया है। यह मुगल-युग की भव्य शाही मस्जिदों में सबसे बड़ी मस्जिद है, और पाकिस्तान की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद है और अब यह पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है। अब जाम मस्जिद को ही देख लीजिए। दिल्ली की शान और भारत की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक जामा मस्जिद का नाम देश के सबसे बड़े मस्जिदों में गिना जाता है। मुगल शासक शाहजहां के द्वारा इसका निर्माण सन् 1656 में हुआ था। इसे बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रुपये लगे थे।

बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। ये मस्जिद आज भी उतना कीमती है जितना पहले से समय में हुआ करता है। जामा मस्जिद पाकिस्तान में मौजूद बादशाही मस्जिद का ही एक रूप है। पाकिस्तान के लाहौर में मौजूद इस मस्जिद का निर्माण शाहजहां के बेटे और उत्तराधिकारी औरंगजेब से करवाया था।

द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की तर्ज पर कुंभलगढ़ किले की दीवार

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हजारों किलोमीटर लंबी द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बारे में जितना कहा जाए कम होगा। कहा जाता है ये धरती पर स्थित इकलौती ऐसी इमारत है जिसको अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि ये दीवार कितनी लंबी और मजबूत है। तमाम तरह के पत्थर, ईंटों, लकड़ी आदि को मिलाकर बनाई गई इस दीवार को विश्व के 7 अजूबों में भी शामिल किया जा चुका है।

द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की तरह कुंभलगढ़ किले की दीवार को भी द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया कहा जा सकता है। कुंभलगढ़ किले की मजबूती से सुरक्षा करने वाली इस दीवार भारत की सबसे महान दीवार होने का दर्जा दिया जा सकता है। हालांकि ये दीवार द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना जितनी लंबी तो नहीं है लेकिन इसकी चौड़ाई 36 किमी तक फैली हुई है। यही वजह है कि इसकी तुलना चीनी दीवार से की जाती है। किले का निर्माण 15वीं शताब्दी ईस्वी में राणा कुंभा द्वारा उदयपुर, राजस्थान में किया गया था। किले को महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी कहा जाता है।

सिडनी के ओपेरा हाउस की तर्ज पर दिल्ली का लोटस टेंपल

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सुप्रसिद्ध इमारतों की सूची में शामिल दिल्ली स्थित लोटस टेंपल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। कमल के आकार में बनी ये इमारत असल में एक धार्मिक स्थल है जहाँ बहाई धर्म के लोग पूजा करते हैं। इसकी अच्छी बात ये है कि बाकी बहाई मंदिरों की तरह ही लोटस टेंपल में भी हर धर्म के लोगों को आने की आजादी है। इस मंदिर का आकार इतना नायाब है कि जो इसे देखता है बस कुछ देर इसको निहारते रहना चाहता है। लोटस टेंपल की ही तरह एक और इमारत है जिसका आकार बिल्कुल कमल के फूल की तरह है।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में स्थित ओपेरा हाउस बहुत ही फेमस यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है जो बिल्कुल लोटस टेंपल की तरह दिखाई देती है। लेकिन एक चीज है जो इन दोनों इमारतों को एक दूसरे से अलग बनाती है। एक तरफ जहाँ लोटस टेंपल धार्मिक स्थल है वहीं दूसरी तरफ ओपेरा हाउस को कला का मंदिर कहा जाता है। ओपेरा हाउस में तरह-तरह के आर्ट से जुड़े कार्यक्रम और परफॉर्मेंस होते हैं जिसकी वजह से ये जगह बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।

सिडनी ओपेरा हाउस 1973 में उद्घाटन किया गया, सिडनी ओपेरा हाउस 20वीं सदी का एक बेहतरीन वास्तुशिल्प कार्य है जो वास्तुशिल्प रूप और संरचनात्मक डिजाइन दोनों में रचनात्मकता और नवीनता के कई पहलुओं को एक साथ लाता है।

मीनार ए पाकिस्तान की तर्ज पर कुतुब मीनार

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दिल्ली स्थित कुतुब मीनार को देश के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों में गिना जाता है। उसके जैसा ही एक मीनार पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी है जिसका नाम मीनार पाकिस्तान है। जिसका निर्माण 1960 के दशक के दौरान करवाया गया था। नसरुद्दीन मूरत-खान टीआई रूस में जन्मे पाकिस्तानी वास्तुकार और सिविल इंजीनियर थे। उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्मारक, मीनार-ए-पाकिस्तान के डिजाइन के लिए जाना जाता है। निर्माणकार्य मियां अब्दुल खालिक एंड कंपनी ने 23 मार्च 1960 में शुरू किया और 21 अक्टूबर 1968 ई में पूरा किया था। इस इमारत का ढांचा हूबहू भारत के कुतुब मीनार से मिलता जुलता है।

मीनार-ए-पाकिस्तान को उस समय की सबसे आधुनिक ढांचे वाली इमारतों में गिना जाता था। भारत के कुतुब मीनार को यूनेस्को द्वारा विश्व की हेरिटेज साइट होने के खिताब से भी नवाजा जा चुका है। लाल रंग के बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनी हुई इस इमारत को कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 में बनवाया था। जबकि मीनार-ए-पाकिस्तान 1960 और 1968 के बीच उस स्थान पर बनाई गई थी जहाँ अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने 23 मार्च 1940 को लाहौर प्रस्ताव (जिसे बाद में पाकिस्तान प्रस्ताव कहा गया) पारित किया था। ब्रिटिश भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग और स्वतंत्र मातृभूमि के लिए पहला आधिकारिक आह्वान, जैसा कि दो-राष्ट्र सिद्धांत द्वारा समर्थित है।

Shreya

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