Delhi Shahjahanabad Gates History: दिल्ली के ऐतिहासिक दरवाजों की कहानी आपने सुनी है क्या कभी, चलिए जानते हैं

Purani Delhi Ke Aitihasik Darwaje Ki Kahani: शाहजहांनाबाद की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में इसके 14 भव्य प्रवेश द्वार थे। आइए जानते हैं इनकी कहानी।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 16 April 2025 12:35 PM IST
Delhi Shahjahanabad Gates History and Mystery
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Delhi Shahjahanabad Gates History and Mystery (Photo - Social Media)

Historical Gates of Delhi: दिल्ली, जिसे समय-समय पर विभिन्न शासकों ने अपनी राजधानी बनाया, एक ऐसा शहर है जिसकी दीवारों और गलियों में इतिहास सांस लेता है। इस ऐतिहासिक शहर के सात शहरों में से एक, शाहजहांनाबाद, जिसे मुगल सम्राट शाहजहां ने 1649 में बसाया, अपने स्थापत्य सौंदर्य और समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध रहा है। शाहजहांनाबाद की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में इसके 14 भव्य प्रवेश द्वार थे, जो न केवल सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, बल्कि वे शहर की सीमाओं को परिभाषित करते हुए सांस्कृतिक और व्यापारिक संपर्कों के भी माध्यम थे।

शाहजहांनाबाद के 14 ऐतिहासिक दरवाजे (Shahjahanabad Old Delhi 14 Historical Gates)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

शाहजहांनाबाद के ये 14 दरवाजे उत्तर भारत के प्रमुख मार्गों की ओर खुलते थे, और इनका नाम उन्हीं मार्गों या शहरों के नाम पर पड़ा:

कश्मीरी गेट

अजमेरी गेट

तुर्कमान गेट

दिल्ली गेट

निगमबोध गेट

लाहौरी गेट

मोरी गेट

काबुली गेट

फतेहपुरी गेट

राजघाट गेट

कैलाश गेट

बहादुरशाही गेट

रजगारी गेट

शीशगंज गेट

आज इनमें से केवल कुछ दरवाजे ही अस्तित्व में हैं, लेकिन उनका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य महत्व अब भी बरकरार है। आइए इन द्वारों के इतिहास, वास्तुकला और उनके साथ जुड़े प्रसंगों को विस्तार से समझते हैं।

कश्मीरी गेट: उत्तर की ओर (Kashmiri Gate)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कश्मीरी गेट, शाहजहांनाबाद की उत्तर दिशा में स्थित था और कश्मीर की दिशा में जाने वाले मार्ग का प्रवेश बिंदु था। आज भी यह गेट दिल्ली में मौजूद है और उससे होकर यातायात होता है। यह द्वार 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में एक रणनीतिक स्थान बन गया था। जब मेरठ से शुरू हुआ विद्रोह दिल्ली पहुंचा, तो स्वतंत्रता सेनानियों ने इस द्वार को आधार बनाकर अंग्रेजों से मुकाबला किया।

यही वह स्थान था जहां विद्रोहियों ने अंग्रेजी सेना की घेराबंदी की और कई महीनों तक उन्हें अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। हालांकि, चार महीने बाद अंग्रेज सेना यहां फिर से घुस आई और एक भीषण लड़ाई के बाद इसे अपने नियंत्रण में ले लिया।

अजमेरी गेट: दक्षिण-पश्चिम की दिशा में (Ajmeri Gate)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अजमेरी गेट शाहजहांनाबाद के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसे अजमेर जाने वाले मार्ग का प्रवेश द्वार माना जाता था, और इसी कारण इसका नाम अजमेरी गेट पड़ा। इसका निर्माण शाहजहां के शासनकाल में 1644 से 1649 के बीच हुआ। इस द्वार की संरचना मेहराबनुमा है और इसे लाल पत्थरों से सजाया गया था।

आज यह द्वार घनी भीड़ और शहरी जीवन के बीच शांत खड़ा है, और इतिहास प्रेमियों के लिए एक आकर्षण बना हुआ है।

तुर्कमान गेट: एक धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत (Turkman Gate)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

तुर्कमान गेट दिल्ली के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय दरवाजों में से एक है, जो कनॉट प्लेस से पुरानी दिल्ली की ओर जाते समय रामलीला मैदान के पास स्थित है। इसका नाम सूफी संत शाह तुर्कमान बयाबानी के नाम पर पड़ा, जिन्हें 1240 में यहीं दफनाया गया था। रजिया सुल्तान इस संत की अनुयायी थीं।

हालांकि इसका निर्माण शाहजहां के समय में 1650 से 1658 के बीच हुआ, लेकिन यह स्थान उससे कहीं पहले से धार्मिक महत्व रखता था।

1976 में आपातकाल के दौरान, यह स्थान भारत के इतिहास में क्रूरता और सरकारी दमन का प्रतीक बन गया जब यहां व्यापक नरसंहार हुआ। आज यह द्वार हमारे देश के लोकतांत्रिक संघर्षों की याद दिलाता है।

दिल्ली गेट: शहर का भव्य प्रवेश द्वार (Delhi Gate)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दिल्ली गेट शाहजहांनाबाद का दक्षिण-पूर्वी द्वार था और लाल किले से होकर शहर में प्रवेश का मुख्य मार्ग माना जाता था। इसका निर्माण 1638 में शाहजहां द्वारा कराया गया था। यह दरवाजा दरियागंज के प्रवेश पर स्थित है और इसने इतिहास के कई महत्वपूर्ण क्षणों को देखा है।

दिल्ली गेट के माध्यम से ही लार्ड लेक 1803 में पटपड़गंज की लड़ाई जीतने के बाद शाह आलम द्वितीय से मिलने के लिए शहर में प्रवेश किया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इसी द्वार से मराठा शासक जसवंत राव होल्कर के हमले के समय कर्नल ओक्टरलोनी ने अंग्रेजी रक्षा की योजना बनाई थी।

खूनी दरवाजा: क्रूरता का गवाह (Khooni Darwaza)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लाल दरवाजा या खूनी दरवाजा शाहजहांनाबाद से लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण अफगान शासक शेरशाह सूरी ने करवाया था और यह अफगानिस्तान की दिशा में जाने वाले लोगों के लिए मुख्य मार्ग था।

इस द्वार का नाम 'खूनी दरवाजा' क्यों पड़ा, इसके पीछे कई कहानियां हैं:

1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट हडसन ने मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र के बेटों और नाती की हत्या इसी द्वार पर करवाई थी।

कहा जाता है कि औरंगज़ेब ने अपने भाई दारा शिकोह का सिर कटवाकर यहीं लटकवाया था।

एक मान्यता यह भी है कि जहांगीर ने अकबर के वफ़ादार अब्दुल रहीम खाने-खाना के बेटों को यहीं दंडित किया था।

भारत विभाजन के समय भी यहां कई दंगे हुए और शरणार्थियों की हत्या की गई।

अब यह दरवाज़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है और दिल्ली के इतिहास की खौफनाक परछाई बन चुका है।

निगमबोध गेट (Nigambodh Ghat)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह गेट शाहजहांनाबाद के उत्तर-पूर्व में यमुना नदी के पास स्थित था। यह गेट निगमबोध घाट की ओर जाता है, जहां हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार किए जाते हैं। यह गेट धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था क्योंकि यहीं से लोग यमुना घाट की ओर जाया करते थे।

लाल किला के द्वार: लाहौरी गेट और दिल्ली गेट

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लाहौरी गेट (Lahori Gate)

लाल किले का मुख्य प्रवेश द्वार लाहौरी गेट है, जो पश्चिम दिशा की ओर खुलता है। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह लाहौर की दिशा में स्थित था। हर वर्ष 15 अगस्त को यहीं से भारत का प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराता है। यह द्वार अब अत्यधिक सुरक्षा के अधीन है।

लाल किला का दिल्ली गेट (Lal Qila Ka Delhi Gate)

यह गेट किले के दक्षिण में स्थित है और दरियागंज की ओर खुलता है। इसका निर्माण भी शाहजहां के शासन में हुआ। यह द्वार शाहजहांनाबाद और लाल किले के बीच संपर्क साधता था। इसके चारों ओर की दीवारों का एक भाग अब भी मौजूद है। हालांकि रेलवे लाइन बनाने के लिए पश्चिमी दीवारों को तोड़ा गया था।

दरवाज़ों की स्थापत्य विशेषताएं (Architectural Features Of Doors)

इन द्वारों के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर, क्वार्टजाइट और संगमरमर का उपयोग किया गया था। ये द्वार न केवल भव्य मेहराबों से सजे थे, बल्कि इनमें मजबूत लकड़ी के द्वार और बुर्ज (सुरक्षा टॉवर) भी होते थे। इनमें कुछ द्वारों के साथ गुप्त सुरंगें भी थीं, जिनका उपयोग आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता था।

दरवाज़े और स्वतंत्रता संग्राम

1857 का विद्रोह इन द्वारों के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। कश्मीरी गेट, अजमेरी गेट और खूनी दरवाजे जैसे स्थल क्रांतिकारियों के जमावड़े और संघर्ष के प्रतीक बन गए। कश्मीरी गेट पर जहां अंग्रेजों ने विद्रोहियों को कुचला, वहीं खूनी दरवाजे ने अत्याचारों की कहानियां अपने भीतर समेट लीं।

यह दरवाजे सुरक्षा के लिए बनवाए गए थे। शहर के चारों तरफ खाई थी और सूरज डूबते ही यह सारे दरवाजे बंद कर दिए जाते थे। मोरी गेट की तरफ से यमुना से पानी लिया जाता था और पूरे शहर का चक्कर लगाकर राजघाट दरवाजे के पास दोबारा यमुना में गिर जाता था। अब उन दरवाजों में से दिल्ली दरवाजा, तुर्कमान दरवाजा, कश्मीरी दरवाजा, निगमबोध दरवाजे (नई शक्ल में) बचे है। बाकी सभी दरवाजे अंग्रेजों ने तुड़वाकर दीवार खड़ी कर दी थी। क्योंकि 1803 में मराठों को हराने के बाद अंग्रेजों को डर था कि मराठा दोबारा हमला करेंगे। ऐसा हुआ भी होल्कर के नेतृत्व में दिल्ली पर हमला हुआ लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें हरा दिया।

आधुनिक काल में स्थिति

आज अधिकतर द्वारों के इर्द-गिर्द आधुनिक इमारतें, सड़कें और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बन चुके हैं, लेकिन इन ऐतिहासिक संरचनाओं का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है। कश्मीरी गेट के पास आज मेट्रो स्टेशन, बस अड्डा और विश्वविद्यालय हैं, जो इसे ऐतिहासिक के साथ-साथ आधुनिक बनाते हैं।

दिल्ली के दरवाजे न केवल एक स्थापत्य धरोहर हैं, बल्कि वे हमारी ऐतिहासिक चेतना का हिस्सा भी हैं। इन द्वारों से होकर इतिहास गुजरा है, सैकड़ों सेनाओं ने इन्हें पार किया है, और अनगिनत कहानियां इनकी दीवारों में दर्ज हैं। इन दरवाजों को संरक्षित करना हमारे अतीत का सम्मान करने जैसा है। इनकी उपेक्षा करना मानो इतिहास के जीवंत प्रमाणों को खो देना है। अतः इन द्वारों के महत्व को समझना और अगली पीढ़ियों को बताना हमारी सांस्कृतिक ज़िम्मेदारी है।

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