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Hyderabad Political History: हैदराबाद की राजनीति, निजाम के प्रयास और भारत में विलय

Hyderabad Political History: भारत में 562 साम्राज्य थे, जिन्हें भारत या पाकिस्तान में समाविष्ट होने का सुझाव दिया गया था। इनमें से अधिकांश तो भारत में शामिल हो गए। लेकिन कश्मीर, जूनागढ़, और हैदराबाद ने तुरंत फैसले से इंकार किया। आइए जानते हैं फिर कैसे हुए हैदराबाद का भारत में विलय।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 15 Jan 2025 4:33 PM IST
Hyderabad Political History Wikipedia in Hindi
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Hyderabad Political History Wikipedia in Hindi (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Hyderabad Political History: 1947 का विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम, भारत की ऐतिहासिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 1857 के विद्रोह से लेकर 1947 तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कई चरणों से गुज़रा। इस यात्रा के दौरान कई ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ आये जिसने भारत के इतिहास की तस्वीर ही बदल कर रख दी। आज चर्चा उन्हीं में से एक निर्णयक मोड़ की होगी, जिसमें हैदराबाद (Hyderabad) आज पाकिस्तान (Pakistan) का भाग न होते हुए, भारत (India) का एक अभिन्न हिस्सा बन गया।

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) का वो दौर था, ब्रिटेन आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर हो गया था। भारत में आजादी की मांग और आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार (British Government) पर दबाव बढ़ा दिया। अक्टूबर, 1946 तक यह तय हो गया था कि भारत को स्वतंत्रता दी जाएगी। 24 मार्च, 1947 को लार्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) भारत के अंतिम वायसराय (एक अंग्रेज़ी शब्द है, जिसका अर्थ होता है किसी उपनिवेश या क्षेत्र में सम्राट का प्रतिनिधि) नियुक्त हुए। उन्होंने स्वतंत्रता की तारीख 15 अगस्त, 1947 तय की। यह तारीख द्वितीय विश्व युद्ध में जापान (Japan) के आत्मसमर्पण की वर्षगांठ भी थी। माउंटबेटन ने विभाजन और सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया।

मुस्लिम लीग की मांग और सांप्रदायिक तनाव के कारण भारत का विभाजन निश्चित हो गया। 14 मई,1947 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) और मुस्लिम लीग (Muslim League) ने विभाजन को स्वीकृति दी। परिणामस्वरुप भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) नामक दो राष्ट्र बने। ब्रिटिश संसद ने 17 जून, 1947 को यह अधिनियम पारित किया। 18 जुलाई, 1947 को इसे शाही स्वीकृति मिली। इस अधिनियम ने भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्रदान की और ब्रिटिश राज का अंत हुआ।

पाकिस्तान में पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत और सिंध के क्षेत्र शामिल किए गए। भारत के शेष भाग में भारतीय गणराज्य का गठन हुआ। भारत में 562 साम्राज्य थे, जिन्हें भारत या पाकिस्तान में समाविष्ट होने का सुझाव दिया गया। इनमें से अधिकांश भारत में शामिल हो गए। लेकिन कश्मीर (Kashmir), जूनागढ़ (Junagarh), और हैदराबाद ने तुरंत फैसले से इंकार किया। और एक नए विवाद का जन्म हुआ।

भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य (India's Largest Empire)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

उस दौर में हैदराबाद भारत के सबसे समृद्ध साम्राज्य में से एक था। ब्रिटिश शासन के बावजूद हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था। जनसंख्या और राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से भी हैदराबाद सबसे बड़ा साम्राज्य था। इंग्लैंड (England) और स्कॉटलैंड (Scotland) के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक बड़ा क्षेत्रफल (82697 वर्ग मील) था। खजाने भरे हुए थे और यह सभ्यता और संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां विभिन्न सभ्यताओं का संगम था, जहाँ लोग अनेक भाषाएं बोलते थे। यहाँ का एक बड़ा हिस्सा तेलुगू बोलता था, दूसरा कन्नड़, जबकि कुछ इलाके मराठी भाषी थे। इन विविधताओं को उर्दू भाषा ने जोड़े रखा, जिसे 19वीं सदी के अंत में शाही रियासत की सरकारी भाषा का दर्जा दिया गया।

भोपाल के नवाब का षड़यंत्र और जिन्ना का समर्थन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1947 में स्वदेशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की सलाह माउंटबेटन ने दी थी, साथ ही चेतावनी दी कि 15 अगस्त के बाद उन्हें ब्रिटेन से कोई सहायता नहीं मिलेगी। अधिकांश रियासतों ने यह सलाह मान ली। लेकिन भोपाल के नवाब, जूनागढ़ और हैदराबाद के शासक इसके खिलाफ थे। भोपाल के नवाब इन रियासतों को उकसाने में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे। मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) भी उनका समर्थन कर रहे थे। जिन्ना ने राजाओं को कराची को मुक्त बंदरगाह के रूप में उपयोग करने का वादा किया था।

हालांकि, उदयपुर के महाराणा ने इस साजिश में शामिल होने से इंकार कर दिया। उन्होंने भारत की एकता का समर्थन करते हुए महाराणा प्रताप के वंश की परंपरा और गौरव को बनाए रखा। उनके इस कदम ने भारत की स्वतंत्रता और एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हैदराबाद का भारत का हिस्सा बनने से इंकार (Hyderabad's Refusal to Become Part of India)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भोपाल, जूनागढ़, इंदौर (Indore) और हैदराबाद जैसे साम्राज्यों ने मांग उठाई कि, 15 अगस्त को उन्हें भारत में शामिल ना किया जाये। इन साम्राज्यों का कहना था कि उन्हें अपने भविष्य का फैसला स्वयं करने दिया जाए। भोपाल के नवाब ने इस संबंध में लंदन अपने सलाहकार को भेजा और माउंटबेटन और जिन्ना को पत्र भी लिखा। इसी तरह, त्रावणकोर (केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से करीब 180 किमी की दूरी पर स्थित है) ने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व बनाए रखने की घोषणा की, जबकि हैदराबाद ने भारत में शामिल होने से इंकार करते हुए फ्रांस के साथ गुप्त राजनयिक संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। नागालैंड (Nagaland) ने भी अपनी स्वतंत्रता की इच्छा व्यक्त की।

हैदराबाद की जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हिंदू थी। लेकिन अल्पसंख्यक होने के बावजूद मुसलमान, प्रशासन और सेना के प्रमुख पदों पर आसीन थे। इतिहासकार केएम मुंशी (KM Munshi) ने अपनी किताब "एंड ऑफ एन एरा" में उल्लेख किया है कि निज़ाम (Nijam) ने जिन्ना (Jinna) को संदेश भेजकर यह जानने की कोशिश की थी कि क्या वे भारत के खिलाफ संघर्ष में हैदराबाद का समर्थन करेंगे।

सरदार पटेल की भूमिका

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) और माउंटबेटन हैदराबाद मसले का समाधान शांतिपूर्ण तरीके करना चाहते थे। लेकिन सरदार पटेल (Sardar Patel) इससे असहमत थे। उस समय पटेल का मानना था कि हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर’ के समान है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्हें यह भी अंदाजा था कि हैदराबाद पूरी तरह पाकिस्तान के प्रभाव में है। पाकिस्तान ने पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की कोशिश की थी, जिसके तहत हैदराबाद गोवा (Goa) में बंदरगाह बनवाकर उसका उपयोग कर सकता था।

निज़ाम की ख्वाहिश

इसके अलावा, निज़ाम ने राष्ट्र मंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा जाहिर की थी, जिसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने खारिज कर दिया। निज़ाम के सेनाध्यक्ष, मेजर जनरल एल. एदरूस ने अपनी पुस्तक ‘हैदराबाद ऑफ द सेवन लोव्स’ में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें यूरोप से हथियार खरीदने के लिए भेजा था। लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहा।

हैदराबाद सैन्य कार्रवाई में विरोध, दबाव और निज़ाम की अपील

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की योजना बनाई। लेकिन राजनीतिक दबाव और सेनाध्यक्ष जनरल बूचर की आपत्ति के कारण इसे टालना पड़ा। दो बार सेना के हैदराबाद में प्रवेश की तारीख तय की गई। लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते दोनों बार ये प्रयास विफल हुए। तो वही जनरल बूचर को डर था कि पाकिस्तान जवाबी कार्यवाही में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकता है। इस दौरान निज़ाम ने भी गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी (Rajgopalchari) से इसे रोकने की अपील भी की।

पटेल की रणनीति और नेहरू की चिंता (Patel's Strategy and Nehru's Concerns)

इस बीच सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने गुप्त योजना के तहत, भारतीय सेना को हैदराबाद भेजा, जिसके बाद नेहरू और राजगोपालाचारी चिंतित हो गए। पटेल ने स्पष्ट किया कि अब भारतीय सेना को रोकने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन नेहरू को चिंता थी कि पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई कर सकता है।

ऑपरेशन पोलो पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया (Pakistan's Response to Operation Polo)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हैदराबाद में भारतीय सेना की इस सैन्य कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पोलो’ ( Operation Polo) नाम दिया गया। दरअसल, उस समय हैदराबाद में 17 पोलो के मैदान थे, जो दुनिया में सबसे अधिक थे। इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान ने डिफेंस काउंसिल की बैठक बुलाई। लेकिन पाकिस्तानी डिफेंस काउंसिल के सदस्य ने हैदराबाद में किसी भी सैन्य कार्रवाई से इंकार कर दिया।

सैन्य संघर्ष और जिन्ना का निधन (Military Conflict and Jinnah's Demise)

ऑपरेशन पोलो करीब पांच दिनों तक चला, जिसमें 1373 रज़ाकार मारे गए तो वही हैदराबाद राज्य के 807 और भारतीय सेना के 66 जवान शहीद शहीद हुए, जबकि 96 घायल हो गए। इस सैन्य अभियान की शुरुआत से दो दिन पहले, 11 सितंबर, 1948 को ही निजाम को भड़काने वाले, पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया था।

पाकिस्तान की आखरी कोशिश और निज़ाम का आत्मसमर्पण

पाकिस्तान ने हैदराबाद मामले को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) तक पहुंचाया। आठ देशों ने इसे चर्चा का विषय माना। हालांकि, चीन और यूक्रेन ने भारत को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई लाभ नहीं हुआ। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र ने 17 सितंबर, 1948 को इस विषय पर कार्यवाही करने का निर्णय लिया। लेकिन एक दिन पहले ही हैदराबाद के निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हो गई। वहीं, भारतीय प्रतिनिधियों की इस बैठक में गैरहाजिरी ने मामले को रफा-दफा कर दिया।



Shreya

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