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Panchkroshi Yatra History: धार्मिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है पंचकोशी यात्रा, जानें कब, कहां और कैसे होता है आयोजन
Panchkroshi Yatra History: पंचकोशी यात्रा इस समय उज्जैन में शुरू हो चुकी है। इस यात्रा का आयोजन वाराणसी में भी किया जाता है। चलिए आपको इसके संबंध में जानकारी देते हैं।
Panchkroshi Yatra History (Photos - Social Media)
Panchkroshi Yatra History: उज्जैन में 3 में से पंचकोशी यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। हर साल वैशाख के महीने में धर्म नगरी उज्जैन में इस यात्रा का आयोजन किया जाता है। उज्जैन के अलावा वाराणसी में भी पंचकोशी यात्रा का आयोजन होता है जो माघ के महीने में की जाती है। हालांकि यात्रा अन्य महीना में भी की जा सकती है। इन दोनों ही जगह पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। चलिए आज हम आपको इस यात्रा की जानकारी देते हैं।
क्या ये पंचकोशी यात्रा
सनातन धर्म में शिव संप्रदाय के लोगों को भगवान शिव की पूजा करते हुए देखा जाता है। वही वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु की पूजन अर्चन करते हैं। महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शिव के नियमित शहर संप्रदाय के लोगों को पंचकोशी यात्रा करते हुए देखा जाता है। यह वाराणसी और उज्जैन दोनों जगह पर की जाती है हालांकि दोनों की तिथि में अंतर होता है। उज्जैन में यह वैशाख महीने में होती है और वाराणसी में माघ महीने में आयोजन किया जाता है। इस यात्रा के दौरान पिंगलेश्वर, कायावरोहनेश्वर, विलेश्वर, दुर्धरेश्वर और नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन किए जाते हैं। इस यात्रा से मिलने वाले पढ़ने से सड़क को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
उज्जैन में कब होता है आयोजन
उज्जैन में पंचकोशी वैशाख के महीने में की जाती है। इसके अलावा देवउठनी एकादशी की तिथि से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भी पंचकोशी यात्रा की जाती है। इस समय यह यात्रा करना शुभ माना गया है। वहीं सिंहस्थ के दौरान इस यात्रा का विशेष महत्व माना गया है।
Panchkroshi Yatra
उज्जैन में यात्रा स्थल
उज्जैन में पंचकोशी यात्रा की शुरुआत नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर से होती है। इसके बाद श्रद्धालु पांच पड़ाव पर मौजूद शिव मंदिरों के दर्शन करते हुए पुनः नागचंद्रेश्वर महादेव पहुंचते हैं। यात्रा के समापन पर शिप्रा नदी में स्नान किया जाता है।
वाराणसी की पंचकोशी
वाराणसी में गंगा आरती का विशेष महत्व है। यहां पर 84 घाट है जिसमें से मणिकर्णिका घाट का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि मृत्यु के उपरांत यहां पर व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं से पंचकोशी यात्रा शुरू होती है।
यात्रा के स्थल
श्रद्धालु मणिकर्णिका घाट से यात्रा की शुरुआत करते हैं। इस स्थान से श्रद्धालु कर्दमेश्वर की यात्रा करते हैं। कर्दमेश्वर पहुंचने के बाद अल्पकाल के लिए विश्राम करते हैं। इसके बाद कर्दमेश्वर से भीम चंडी पहुंचते हैं। कर्दमेश्वर से भीम चंडी की दूरी लगभग 14 किलोमीटर है। पंचक्रोशी यात्रा का यह दूसरा पड़ाव है। श्रद्धालु का जत्था भीम चंडी रामेश्वर जाते हैं। इस दौरान तकरीबन 7 कोस की दूरी की जाती है। वहीं, रामेश्वर से शिवपुर और शिवपुर से कपिलधारा की यात्रा की जाती है। कपिलधारा से यात्रा का अंतिम पड़ाव शुरू होता है। इसमें कपिलधारा से पुनः मणिकर्णिका घाट की यात्रा की जाती है। मणिकर्णिका घाट पर पहुंचने के बाद पंचक्रोशी यात्रा का समापन होता है।
यात्रा की कथा
पंचकोशी यात्रा की शुरुआत त्रेता युग से हुई है। शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ जी को श्राप से मुक्ति दिलाने हेतु पंचक्रोशी यात्रा की थी। धार्मिक मत है कि दशरथ जी के बाणों से श्रवण कुमार घायल हो गए थे। अनजाने में किए गए वार से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। उस समय श्रवण कुमार के माता-पिता ने दशरथ जी को पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मरने का श्राप दिया था। कालांतर में राम जी के वनवास के दौरान दशरथ जी की मृत्यु हुई थी। इस श्राप से मुक्ति दिलाने हेतु राम जी ने पंचक्रोशी यात्रा की थी। पंचक्रोशी यात्रा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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