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Rohtasgarh Fort History: जाने रोहतासगढ़ किला का इतिहास, बिहार का एक अतुल्य विरासत
Rohtasgarh Fort History: लोगों का कहना है कि रोहतासगढ़ किले का निर्माण 7 वीं शताब्दी के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था।
Rohtasgarh Fort History: भारत देश के बिहार राज्य के कैमूर की पहाड़ियों में स्थित रोहतासगढ़ क़िला की देश के अतुल्य विरासतों में गिनती होती है। यह किला बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किमी और डेहरी आन सोन से 43 किमी की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1500 मीटर है। करीब 28 वर्गमील तक फैले इस भव्य किले के परिसर में कई भव्य इमारतें हैं जो देखने योग्य है। इस किले का निर्माण युद्ध के दौरान छिपने के लिए किया गया था। जिसके लिए कई रहस्यमयी कमरे और भवन बनाए गए। आज भी इस किले में जाने से हर कोई डरता है। यह किला मध्य और दक्षिण एशिया के मुस्लिम सैन्य वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
इस पहाड़ी पर जाने के लिए चारों दिशाओं से चार मार्ग बने हैं जिन्हें घाट कहा जाता है। इन घाटों से इस जमाने में दुश्मन को ऊपर आने से रोकने और पहरेदारी के लिए कई दरवाज़े बनाए गए। इस किले में कुल 83 दरवाजे हैं जिनमें चार प्रमुख हैं - घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट और मेढ़ा घाट। इस किले के प्रवेश द्वार पर बने हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर बनी पेंटिंग पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इस किले के अंदर रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी देखने लायक है। लोगों का कहना है कि इस किले का निर्माण 7 वीं शताब्दी के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था।
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि मध्यकालीन भारत में इस किले को पृथ्वीराज चौहान ने जीता था। लेकिन इस किले को शेर शाह सूरी ने सन् 1539 में एक हिन्दू राजा से जीत कर पहरेदारी के लिए 10,000 सैनिक तैनात किए थे। उस दौरान शेर शाह सूरी के एक सैनिक हैबत खान ने किले के परिसर में जामा मस्ज़िद का निर्माण करवाया था।
शेरशाह के बाद इस किले से सन् 1588 में अकबर के शासनकाल में बिहार और बंगाल के सूबेदार मानसिंह ने अपनी सत्ता चलाई। ऐसा कहा जाता है कि सन् 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के दौरान यहीं से अमर सिंह नामक एक सैनिक ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।बक्शर की लड़ाई के बाद इस किले पर अंग्रेज़ों ने अपना कब्ज़ा कर इसके कई हिस्सों को तबाह कर दिया।
यह किला भव्य और रहस्यमई भी है। इसके साथ ही इस किले से प्राकृतिक खूबसूरती और सोन नदी का विहंगम दृश्य भी सैलानियों को खूब भाता है। प्राचीन काल में इस किले की समृद्ध विरासत ने बहुत सारे राजाओं को अपनी ओर आकर्षित किया। प्राचीन काल के कई कालखंडों में इस किले पर आदिवासी राजाओं का भी राज रहा जिस कारण आदिवासी इस किले को अपने शौर्य का प्रतीक मानते हैं।
रोहतासगढ़ किले में कई दर्शनीय स्थल हैं जिसमें रोहितासन या चौरासन सीढ़ी मंदिर, पार्वती मंदिर, कठौतिया घाट, सिंह दरवाज़ा, लाल दरवाज़ा, ग़ाज़ी दरवाज़ा, राजभवन या महल सराय, क़िलेदार महल, पंच महल, हथियापोल, फूल महल, बारादरी, राजा का महल, तख़्तपादशाही , ख़ानबाग और ज़नाना महल, रानी का महल, नाच घर, शेरशाही मस्ज़िद,हब्स ख़ाँ का मकबरा, मस्ज़िद और मदरसा, गणेश मंदिर, शाकी सुल्तान का मक़बरा आदि ।
1 - आइना महल
इस महल का निर्माण मान सिंह ने अपनी पत्नी के नाम पर कराया था। इसे ऐना महल के नाम से भी पुकारा जाता है। यह महल किले के बीच में स्थित है।
2- रोहतासन मंदिर
यह मंदिर आइना महल के करीब एक मील की दूरी पर स्थित है। किले के उत्तर पूर्वी दिशा में दो मंदिरों के अवशेष देखने को मिलते है। यह रोहतासन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां सीढ़ियों के द्वारा पहुंचा जा सकता है।
कई सीढियां जर्जर हो गई है, सिर्फ 84 सीढ़ियां अच्छी हालत में हैं जिसका इस्तेमाल मंदिर तक पहुंचने में किया जाता है। इसलिए इसे चौरासन सीढ़ी मंदिर के नाम से भी पुकारा जाता है।
3 - जामा मस्जिद और हब्श खान का मकबरा
आइना महल के करीब जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा देख सकते हैं। राजपूताना शैली के कई सारे गुंबद जिन्हें छत्री कहा जाता है इस मस्जिद के स्तंभ पर बने हैं।
4 - हथिया पोल
रोहतास किले का मुख्य द्वार हथिया पोल या हथिया द्वार के नाम से जाना जाता है। इस द्वार का नाम ऐसा इसलिए पड़ा क्यूंकि इसके द्वार पर बहुत सारी हाथी की प्रतिमा है।
सन् 1597 में बना यह द्वार किले का सबसे बड़ा दरवाजा है और यहां हाथी की बनी प्रतिमाएं इसकी शोभा और बढ़ा देती हैं।
5 - गणेश मंदिर
मान सिंह महल के पश्चिम दिशा में करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है जिसमें प्रवेश के लिए दो रास्ते हैं।
6 - हैंगिंग हाउस
इस किले के पश्चिम दिशा की ओर गुफा जैसी एक इमारत है जिसे लोग हैंगिंग हाउस कहते हैं। लेकिन इस जगह गुफ़ा के कोई सबूत नहीं मिले हैं। इस जगह से करीब 1500 फीट नीचे की ओर एक बड़ा झरना है जो पर्यटकों को आकर्षित करता है। वैसे इस झरने के अलावा रोहतासगढ़ में कई और आकर्षक झरने हैं जो कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर सोन नदी में मिल जाते हैं। मॉनसून के दौरान यह इलाका हराभरा और पिकनिक का एक आकर्षक केंद्र बन जाता है।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पटना, गया एवं वाराणसी है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन मुगलसराय जंक्शन और सासाराम है, जो देश के कई बड़े शहरों से रेल के माध्यम से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंचने के लिए पुरानी जी.टी रोड से पटना, आरा, दिल्ली, कोलकाता, रांची के रास्ते आया जा सकता है। सभी प्रमुख शहरों के नेशनल हाईवे इस जीटी रोड से जुड़े हैं।
अक्टूबर से मार्च तक का महीना यहां घूमने के लिए अच्छा रहता है। हालांकि इस दौरान यहां सर्दियों का मौसम भी तेज रहता है इसलिए गरम कपड़े रखना न भूलें। मॉनसून के बाद यहां की हरियाली और प्राकृतिक छंटा देखते ही बनती है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)