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History Of Somnath Temple: 2000 वर्षों से भी पुराना शिव का सोमनाथ मंदिर, जिसे मिटाना चाहता था महमूद गजनवी
Somnath Mandir Ka Itihas: महमूद गजनवी का आक्रमण भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जो न केवल विध्वंस का प्रतीक है, बल्कि संघर्ष, बलिदान और पुनर्निर्माण की भावना का भी उदाहरण है।
History Of Somnath Temple (Photo - Social Media)
History Of Somnath Temple: भारतीय इतिहास में महमूद गजनवी का नाम एक ऐसे हमलावर के रूप में दर्ज है, जिसने बार-बार भारत की सीमाओं को लांघते हुए न सिर्फ धन-सम्पदा को लूटा, बल्कि सांस्कृतिक धरोहरों को भी अपार क्षति पहुँचाई। उसके आक्रमणों का सबसे चर्चित और दुखद पहलू सोमनाथ मंदिर पर उसका धावा था। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का भी प्रतीक था। इस लेख में हम महमूद गजनवी के आक्रमणों, उसके इरादों और सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए हुए संघर्ष की विस्तृत चर्चा करेंगे।
महमूद गजनवी कौन था?( Who was Mahmud Of Ghazni?)
महमूद गजनवी (971–1030 ई.) मध्य एशिया के गजनी (आज का अफगानिस्तान) का शासक था, जो गजनवी वंश का सबसे प्रभावशाली और विस्तारवादी सुल्तान माना जाता है। उसे इतिहास में एक महत्वाकांक्षी, शक्तिशाली और क्रूर शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने धर्म और लूट दोनों को आधार बनाकर भारत पर अनेक बार आक्रमण किए।
महमूद अपने पिता सबुक्तगीन के बाद गजनी की गद्दी पर बैठा और बहुत ही कम समय में एक साम्राज्यवादी योद्धा के रूप में उभरा। उसका मुख्य उद्देश्य केवल नए क्षेत्रों पर कब्जा करना नहीं था, बल्कि संपत्ति, खासकर सोना, चांदी, रत्न और सांस्कृतिक धरोहरों की लूट भी था। उसने खुद को इस्लाम का "गाजी" (धर्मयोद्धा) घोषित किया और अपने हर आक्रमण को धार्मिक जिहाद का नाम दिया, ताकि धार्मिक समर्थन भी उसे मिल सके।
महमूद गजनवी ने 1000 ई. से लेकर 1027 ई. तक भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए। उसके हमलों का केंद्र मुख्यतः उत्तर भारत के समृद्ध नगर, मंदिर और सांस्कृतिक स्थल थे।
सोमनाथ मंदिर का महत्व(The importance of the Somnath Temple)
सोमनाथ मंदिर भारत के गुजरात राज्य में स्थित एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र हिन्दू मंदिर है, जिसे भगवान शिव को समर्पित किया गया है।सोमनाथ मंदिर का इतिहास लगभग 2000 वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है और इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रदेव ने यहां भगवान शिव की तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई थी, जिससे इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' पड़ा। इतिहास में यह मंदिर कई बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया, विशेष रूप से महमूद गजनवी द्वारा, लेकिन हर बार इसे पुनः बनाया गया, जो भारतीयों की दृढ़ आस्था और आत्मगौरव का प्रतीक है। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1951 में सरदार पटेल की प्रेरणा से हुआ, जो भारत की राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि एक महत्वपूर्ण तीर्थ और पर्यटन स्थल भी है, जहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं। सोमनाथ मंदिर भारतीय संस्कृति की जीवंत मिसाल और इतिहास की एक अमिट धरोहर है।
सोमनाथ मंदिर पर हमला(Attack on the Somnath Temple)
1025 ई. में महमूद ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण की योजना बनाई। उसके पास एक विशाल सेना थी, जिसमें लगभग 5000 सैनिक थे। उसने सिंधु नदी को पार कर गुजरात की ओर प्रस्थान किया। महमूद ने अक्टूबर 1025 में प्रस्थान, जनवरी 1026 में मंदिर पर हमला। उसके मार्ग में कई हिन्दू राज्यों ने उसका विरोध किया, लेकिन वह सभी को पराजित करते हुए आगे बढ़ता गया।
मंदिर की रक्षा का संघर्ष(The struggle to protect the temple)
जब महमूद गजनवी की सेना सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ी, तो उसकी रक्षा के लिए वहाँ के राजा भील, स्थानीय क्षत्रिय, पुजारी और आम श्रद्धालु एकजुट होकर डट गए। यह कोई संगठित या औपचारिक युद्ध नहीं था, बल्कि एक गहरी श्रद्धा और धार्मिक भावना से प्रेरित संघर्ष था, जिसमें लोगों ने अपने आराध्य की रक्षा के लिए वीरता दिखाई। हजारों स्थानीय योद्धा और भक्त इस पवित्र मंदिर को बचाने के प्रयास में शहीद हो गए। पुजारियों ने भी मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें छिपाने का प्रयास किया, ताकि मंदिर की पवित्रता बची रह सके। महमूद को मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः उसने वहां की मूर्तियाँ तोड़ दीं और मंदिर की अपार संपत्ति को लूट लिया। यह संघर्ष केवल एक आक्रमण नहीं था, बल्कि श्रद्धा, आस्था और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का प्रतीक बन गया।
मंदिर का विध्वंस(Destruction of the Somnath temple)
सोमनाथ मंदिर उस युग में एक अत्यंत भव्य और समृद्ध धार्मिक केंद्र था, जिसकी दीवारें और गुम्बद सोने-चाँदी से सुसज्जित थीं और जिनकी मूर्तियाँ बहुमूल्य रत्नों से जड़ी हुई थीं। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र था, बल्कि उसकी समृद्धि भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी। जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, तो स्थानीय राजा भीमदेव और मंदिर के पुजारियों ने पूरी कोशिश की कि वे इस पवित्र स्थल की रक्षा कर सकें, लेकिन महमूद की संगठित और शक्तिशाली सेना के सामने वे अधिक समय तक टिक नहीं पाए। मंदिर तक पहुँचने के बाद महमूद ने पहले उसकी बाहरी सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया और फिर भीतर घुसकर मूर्तियों को खंडित किया। उसने मुख्य शिवलिंग को भी नष्ट कर दिया और इतिहासकारों के अनुसार, उस टूटी हुई शिवलिंग को गजनी ले जाकर वहाँ एक मस्जिद की सीढ़ियों में इस तरह लगाया गया कि लोग उस पर पैर रख सकें, जिससे हिन्दू आस्था का अपमान हो। महमूद ने मंदिर से अपार मात्रा में सोना, चाँदी, हीरे-जवाहरात और अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ लूटीं। महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर वहां से बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति लूटी थी। कहा जाता है कि वह मंदिर से करीब 6 टन सोना, एक दुर्लभ शिवलिंग, और लाल चंदन से बना मुख्य द्वार भी अपने साथ ले गया था। इसके अलावा उसने हीरे-जवाहरात जैसी अन्य बहुमूल्य वस्तुएं भी लूट ली थीं। आज की गणना के अनुसार, इस लूट की कुल कीमत 5 अरब रुपये से अधिक आंकी जाती है।
कई बार हुए थे सोमनाथ मंदिर पर हमले(The Somnath temple was attacked several times)
सोमनाथ मंदिर, जो भारत के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है, भारतीय इतिहास में कई बार आक्रमणों का शिकार हुआ। सबसे प्रसिद्ध हमला महमूद गजनवी द्वारा 1025 ई. में किया गया था ।इसके बाद, अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ने 1299 ई. में एक और हमला किया और मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया। फिर मुगलों के शासनकाल में, विशेष रूप से औरंगजेब ने 1665 ई. में सोमनाथ मंदिर को तोड़ा। इन सभी आक्रमणों के बावजूद, मंदिर का पुनर्निर्माण बार-बार हुआ, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आस्था का प्रतीक बनकर उभरा। सोमनाथ मंदिर की यह पुनर्निर्माण यात्रा भारतीय आत्मबल, आस्था और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की एक मजबूत मिसाल पेश करती है।
सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण(Reconstruction of the Somnath Temple)
महमूद गजनवी द्वारा 1024 ई. में सोमनाथ मंदिर के विध्वंस के बाद, मंदिर के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया कई बार हुई। गुजरात के चालुक्य शासक राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने 1024 के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद, 1297 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने एक और आक्रमण किया, जबकि 14वीं और 15वीं शताब्दी में गुजरात सल्तनत के शासकों ने भी मंदिर को नष्ट किया। 1706 ई. में औरंगजेब ने भी इसे तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन हर बार स्थानीय राजाओं ने इसे फिर से बनाने का काम किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जुलाई 1947 में सरदार पटेल ने मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा की, और गांधीजी के सुझाव पर जनता के दान से इस कार्य को आगे बढ़ाया गया। हालांकि, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को मंदिर के उद्घाटन से दूर रहने की सलाह दी थी, लेकिन प्रसाद ने इसे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक मानते हुए समारोह की अध्यक्षता की। वास्तुकला की दृष्टि से, प्रभाशंकर सोमपुरा ने मंदिर के पुनर्निर्माण को मूल शैली में किया। 1951 में शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई, और 1995 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
तीर्थ और पर्यटन के रूप में महत्व(Significance in the form of pilgrimage and tourism)
सोमनाथ मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित होने के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहां से सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत मनोरम होता है। इसके निकट स्थित 'प्रभास पाटण' भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग किया था।
वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला(Architecture Of Somnath Temple)
वर्तमान सोमनाथ मंदिर 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रेरणा और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की उपस्थिति में फिर से निर्मित किया गया था। यह मंदिर चालुक्य शैली में बना हुआ है, जो भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है और इसका समुद्र की ओर खुला दृश्य अत्यंत मनोहारी लगता है।
भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण(Mahmud of Ghazni's invasions of India)
भटिंडा का आक्रमण - महमूद गजनवी का पहला भारत आक्रमण 1001 ई. में हुआ। उसने अफगानिस्तान से सिन्धु नदी पार कर पंजाब के हिन्दू राजा जयपाल को युद्ध में हराया। यह युद्ध पेशावर के पास हुआ था। जयपाल पराजित होकर बंदी बना और बाद में उसने आत्मदाह कर लिया। महमूद ने भटिंडा किला जीता और वहाँ से अपार धन लूटा।
भटिंडा और मुल्तान का दूसरा आक्रमण - महमूद ने 1002 ई. में एक बार फिर भटिंडा और मुल्तान पर आक्रमण किया। इस बार उसका उद्देश्य मुल्तान के इस्माइली शासक को परास्त करना था। उसने वहाँ की मस्जिदों को नष्ट किया और धार्मिक नेताओं को बंदी बना लिया।
नगरकोट (कांगड़ा) का आक्रमण - 1009 ई. में महमूद ने कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के नगरकोट किले पर हमला किया। यह क्षेत्र बेहद समृद्ध था और यहाँ के मंदिरों में अपार धन-संपत्ति थी। उसने मंदिरों को लूटकर सोना, चाँदी और रत्न अपने साथ गजनी ले गया।
थानेसर का आक्रमण (1011 ई.) - 1011 ई. में महमूद ने हरियाणा के प्रसिद्ध धार्मिक नगर थानेसर पर आक्रमण किया। यहाँ के शिव मंदिरों को नष्ट किया गया और मूर्तियाँ तोड़ी गईं। मंदिर से बहुमूल्य रत्न और धातुएँ लूटी गईं।
कन्नौज का आक्रमण - महमूद ने 1018 ई. में कन्नौज पर आक्रमण किया। यह उत्तर भारत का एक प्रमुख और समृद्ध नगर था। यहाँ के राजा ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। महमूद ने यहाँ के मंदिरों को लूटा और कन्नौज की समृद्ध संस्कृति को नुकसान पहुँचाया।
मथुरा और वृंदावन का आक्रमण - कन्नौज अभियान के दौरान ही महमूद ने मथुरा और वृंदावन के मंदिरों को निशाना बनाया। मथुरा के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर को तोड़ा गया और यहाँ से हजारों मन वजन का सोना और चाँदी लूटी गई।
मेरठ और बरन (बुलंदशहर) का आक्रमण - 1019 ई. में महमूद ने मेरठ और बरन (वर्तमान बुलंदशहर) पर हमला किया। इन नगरों में हिन्दू और बौद्ध धार्मिक स्थल स्थित थे, जिन्हें नष्ट किया गया और यहाँ की जनता को गुलाम बनाया गया।
गहड़वालों से युद्ध – रोहतास - 1019 ई. में ही महमूद ने गंगा घाटी की ओर बढ़ते हुए गहड़वालों पर चढ़ाई की। रोहतासगढ़ क्षेत्र में उसने कई किलों और नगरों को लूटा। गंगा के पार पहुँचते ही उसने अपने सैनिकों को जमकर लूट की छूट दी।
मुल्तान का पुनः आक्रमण - महमूद ने इस्माइली शासक द्वारा विद्रोह करने पर 1021 ई. में मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया। उसने वहाँ के शासन को हटाकर एक मुस्लिम गवर्नर की नियुक्ति की, जिससे उसकी धार्मिक सत्ता और मजबूत हो सके।
लाहौर पर आक्रमण - 1022 ई. में महमूद ने हिन्दू शाही राजा आनन्दपाल के पुत्र त्रिलोचनपाल को हराकर लाहौर पर कब्जा किया। यह हिन्दू शाही वंश का अंतिम शासक था, जिसके पराजय के साथ ही यह वंश समाप्त हो गया।
ग्वालियर पर आक्रमण - महमूद ने ग्वालियर के किले पर हमला किया, जहाँ के शासक ने भारी कर और उपहार देकर युद्ध टालने का प्रयास किया। महमूद ने कर स्वीकार कर क्षेत्र को बर्बाद किए बिना आगे बढ़ गया।
कालिंजर पर आक्रमण - इसी वर्ष उसने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर चढ़ाई की। यहाँ के राजा ने भी भेंट और आत्मसमर्पण के ज़रिए युद्ध टालने की कोशिश की, जिसे महमूद ने स्वीकार किया।
नवसारी और सिंध पर आक्रमण - महमूद का एक महत्वपूर्ण समुद्री आक्रमण गुजरात की ओर था। उसने सिन्धु नदी पार कर नवसारी जैसे नगरों को लूटा। यहाँ के समुद्रतटीय व्यापार केंद्रों को नष्ट कर दिया गया, जिससे भारत का व्यापार प्रभावित हुआ।
सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण - 1025 ई. में महमूद ने गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। यह उसका सबसे कुख्यात और विनाशकारी आक्रमण था। उसने मंदिर को ध्वस्त किया, शिवलिंग को तोड़ा और अपार धन लेकर गजनी लौट गया।
मार्ग से लौटते समय जाटों से संघर्ष (1026 ई.) - सोमनाथ से लौटते समय महमूद को सिन्ध के जाटों का विरोध झेलना पड़ा। इन जाटों ने उसके लूटे हुए माल को लूटने की कोशिश की। महमूद ने उनसे संघर्ष कर उन्हें हराया और बड़ी संख्या में लोगों को मारा।
सिंध क्षेत्र में विद्रोह को कुचलना - महमूद ने 1027 ई. में एक बार फिर सिंध क्षेत्र में विद्रोह को दबाने के लिए चढ़ाई की। उसने वहाँ के स्थानीय सरदारों को हराया और इस्लामी शासन को और मजबूत किया।
अंतिम आक्रमण (1027-1028 ई.) - अपने अंतिम अभियान में महमूद ने भारत की पश्चिमी सीमाओं तक पहुँचकर वहां की स्थिति का निरीक्षण किया, लेकिन इस बार कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ। इसके बाद वह लौट गया और भारत पर पुनः कोई चढ़ाई नहीं की।