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Triyuginarayan Temple: महाशिवरात्रि पर धूमधाम से मनाएं भगवान शिव का विवाहोत्सव, यहां जाने कहां संपन्न हुआ था शिव-पार्वती का विवाह
Triyuginarayan Temple: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के पास स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर में शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान विष्णु ने ही शिव-पार्वती का विवाह संपन्न करवाया था।
शिव-पार्वती विवाह स्थल (फोटो- सोशल मीडिया)
Triyuginarayan Temple: इस साल महाशिवरात्रि का सबसे बड़ा त्योहार 18 फरवरी 2023, दिन शनिवार को मनाया जाएगा। देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाहोत्सव के उपलक्ष्य में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। जीं हां पौराणिक मान्यता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने केदारनाथ के पास गौरी कुंड में बहुत कठिन तपस्या की थी। माता पार्वती ने तपस्या पूरी करके गुप्तकाशी में भगवान शिव से विवाह करने का वरदान मांगा। तभी माता पार्वती की तपस्या और प्रेम भाव से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती से चतुर्दशी तिथि को विवाह किया।
भगवान शिव और माता पार्वती जैसी जोड़ी बनी रहे, इसलिए लड़के-लड़कियां महाशिवरात्रि पर बाबा के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत रखते हैं। साथ ही शिव भक्तों में जिन जोड़ों की शादी तय हो चुकी हैं, वे उसी जगह शादी करने के बारे में सोचते हैं जहां शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। तो इसी कड़ी में आइए आपको बताते हैं कि कहां पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था और आज के समय में उस जगह का क्या नाम है।
अखंड धुनी
Akhand Dhuni
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के पास स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर में शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान विष्णु ने ही शिव-पार्वती का विवाह संपन्न करवाया था। इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात ये है कि शिव-पार्वती ने अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए थे, वो धूनि आजतक प्रजव्वलित हो रही है। कहा जाता है कि तीन युगों से शिव-पार्वती द्वारा विवाह में लिए गए फेरों की अग्नि धुनि के रूप में आज तक जागृत है। इसे अंखड धुनी कहा जाता है।
मंदिर में दर्शन करने आए लोग इस अग्नि कुंड की राख को घर ले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अग्नि कुंड की राख को घर में रखने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है।
इसी वजह से त्रियुगी नारायण मंदिर शिव-भक्तों के लिए सबसे खास वेडिंग डेस्टिनेशन बन गया है। कई जोड़े शिव-पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां इसी मंदिर में शादी करते हैं।
मंदिर में बहुत सी अद्भुत चीजें
त्रिर्युगी नारायण मंदिर में पूरे देश से हर साल भक्त दर्शन आते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती से जोड़ी बनाए रखने का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, सन्तान प्राप्ति के लिए और दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर में हर साल सितंबर के महीने में बावन द्वादशी की शुभ तिथि पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
इस मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंदिर है। ये मंदिर ही शिव-पार्वती के विवाह की जगह के तौर पर जाना जाता है। साथ ही मंदिर में आने पर आप खुद ऐसी बहुत सी चीजों को देखेंगे, जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का प्रतीक हैं।
ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड यहीं पर है
Brahmakund and Vishnukund
(Image Credit- Social Media)
त्रिर्युगी नारायण मंदिर में एक ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड भी हैं। इस कुंड के बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। इस कुंड के बारे में बताया जाता है कि ब्रह्माजी जी शिव-पार्वती का विवाह में पुरोहित थे। शादी करवाने से पहले ब्रह्माजी ने जिस कुंड में स्नान किया, वह ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता है।
शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई के रूप में सारी रीति-रिवाजों को निभाया था। तभी शादी से पहले जहां जगह विष्णुजी ने स्नान किया था, वह विष्णु कुंड कहलाया था।
रुद्रकुंड में देवी-देवताओं ने किया था स्नान
Rudrakund
त्रिर्युगी नारायण मंदिर में ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड के साथ ही रुद्रकुंड भी है। इस कुंड के बारे में बताया जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह में शामिल होने से पहले सभी देवी-देवताओं ने रुद्रकुंड में स्नान किया था।
बताया जाता है कि इस कुंड में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड है। ऐसी मान्यता है कि जब भी भक्त यहां दर्शन करने आते हैं, तब इस कुंड में स्नान करके सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
भगवान शिव को विवाह में गाय मिली
मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती विवाह स्थल में वो जगह आज भी है, जहां विवाह के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती बैठी थीं। तब ब्रह्माजी ने शिव-पार्वती का विवाह संपन्न करवाया था।
ऐसा बताया जाता है कि विवाह में भगवान शिव को एक गाय भी मिली थी। ये गाय एक खंभे में बांधी गई थी। वो खंभा आज भी मंदिर में है। इसे बहुत सजाया गया हुआ है।
मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर गौरी कुंड है। इसी कुंड में माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इस चमत्कारी गौरी कुंड में भीषण सर्दियों में भी कुंड का पानी गर्म रहता है।
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