Uttarakhand Bhimtal History: भीम के नाम पर बने इस ताल को, अंग्रेजों से जोड़कर क्यों देखा जाता है, आइए जानते हैं

Uttarakhand Bhimtal Lake History: उत्तराखंड का खूबसूरत भीमताल का नाम महाभारत के महान योद्धा भीम के नाम पर पड़ा था।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 16 April 2025 11:46 AM IST
Uttarakhand Bhimtal Lake Brief History
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Uttarakhand Bhimtal Lake Brief History

Uttarakhand Bhimtal Lake History: उत्तराखंड की सुरम्य पहाड़ियों में बसा एक शांत और रमणीय स्थल है भीमताल (Bhimtal In Uttarakhand), जो प्रसिद्ध हिल स्टेशन नैनीताल से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुमाऊं की सुंदर वादियों में सिमटा यह स्थल अपेक्षाकृत छोटा और कम प्रचारित है, लेकिन इसकी प्राकृतिक छटा और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे बेहद खास बनाती है। कहा जाता है कि इस स्थल का नाम महाभारत के महान योद्धा भीम (Bheem) के नाम पर पड़ा था। यही कारण है कि इस स्थान को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भीमताल झील (Bhimtal Jheel) के तट पर स्थित 17वीं शताब्दी का एक प्राचीन शिव मंदिर (Shiv Mandir) इसकी ऐतिहासिकता को और अधिक समृद्ध करता है, जिससे जुड़ी अनेक जनश्रुतियाँ और कथाएँ यहां के लोक जीवन में प्रचलित हैं।

कुमाऊँ नाम की उत्पत्ति (Kumaon Name Origin)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भीमताल, कुमाऊं क्षेत्र के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में तिब्बत, दक्षिण में उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र और पश्चिम में गढ़वाल अंचल फैला हुआ है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से समृद्ध रहा है। लगभग तीन शताब्दियों तक– 800 ईस्वी से 1100 ईस्वी तक– यहां कत्यूरी वंश का शासन रहा। इसी कालखंड में इस भूभाग को "कुरमांचल" (Kurmanchal) नाम से जाना जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ है – कूर्म (कच्छप या कछुआ) की भूमि। इसी से आगे चलकर कुमाऊं नाम की उत्पत्ति मानी जाती है।


कत्यूरी वंश के पश्चात 11वीं शताब्दी में चंद राजवंश का उदय हुआ, जिन्होंने यहां दीर्घकालीन शासन किया। माना जाता है कि इस वंश का संबंध कन्नौज के राजपूत वंशों से था। चंद राजाओं की लंबी श्रृंखला में राजा ग्यानचंद (1374 से 1419 ईस्वी) को विशेष महत्त्व प्राप्त है। ग्यानचंद को दिल्ली सल्तनत का संरक्षण प्राप्त था, जिसके बल पर उन्होंने अपने अधिपत्य को तराई के मैदानी इलाकों तक विस्तार दिया।

राजधानी परिवर्तन

चंद वंश के शासन काल में कुमाऊं की राजधानी प्रारंभ में चम्पावत थी, जो भीमताल से लगभग 137 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित है। बाद में राजा कल्याणचंद (1563 ईस्वी) ने राजधानी को चम्पावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित किया, जो भीमताल से 62 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। अल्मोड़ा आने के बाद कुमाऊं की राजनीति और संस्कृति ने एक नया स्वरूप ग्रहण किया।


बाजबहादुर चंद की कर व्यवस्था (Bajbahadur Chand Tax System)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राजा बाजबहादुर चंद का शासनकाल भीमताल और समस्त कुमाऊं के इतिहास में एक निर्णायक अध्याय के रूप में जाना जाता है। वह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के निकट सहयोगी बन गए थे और गढ़वाल रियासत के विरुद्ध मुग़ल अभियान में उन्होंने सम्राट की सेना का समर्थन किया। इस वफादारी के पुरस्कारस्वरूप उन्हें 'बहादुर' की उपाधि मिली। बाजबहादुर चंद ने शासन व्यवस्था में कई नवीन प्रयोग किए, जिनमें सबसे उल्लेखनीय था -प्रति व्यक्ति कर प्रणाली की शुरुआत। यह कर न केवल राज्य के खजाने को भरता था, बल्कि इसका एक अंश सम्मान-स्वरूप मुग़ल बादशाह को भी अर्पित किया जाता था।

भीमताल की शांत झील, उसके किनारे खड़ा शिव मंदिर और उसकी पृष्ठभूमि में गूंजती प्राचीन राजवंशों की कहानियाँ – इन सभी को मिलाकर यह स्थान सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि उत्तराखंड के गौरवशाली अतीत का जीवंत दस्तावेज़ है।

रोहिल्ला की घेराबंदी

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सन 1743 में रोहिल्ला सरदार हाफ़िज़ रहमत खां के नेतृत्व में रोहिल्ला सेना ने रुद्रपुर के युद्ध में कुमाऊं के तत्कालीन राजा कल्याण चंद की सेना को पराजित कर दिया। यह पराजय इतनी निर्णायक थी कि लगभग तीन शताब्दियों तक कुमाऊं की राजधानी रहे अल्मोड़ा पर भी रोहिल्‍लों ने घेराबंदी कर दी थी। इस संकट के समय कल्याण चंद के उत्तराधिकारी दीपचंद ने कूटनीति का सहारा लिया और रोहिल्‍ला सरदारों से संधि कर ली।

इस संधि के परिणामस्वरूप तराई का मैदानी इलाक़ा रोहिल्लाओं के अधीन चला गया, जबकि पहाड़ी क्षेत्र का नियंत्रण दीपचंद के पास बना रहा। दीपचंद ने आगे चलकर पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में भी मराठों के खिलाफ हाफ़िज़ रहमत खां का साथ दिया था। यह एक राजनीतिक रणनीति थी, जिससे दीपचंद ने अपनी सत्ता को बचाए रखा।

लेकिन दीपचंद की मृत्यु के बाद कुमाऊं राज्य में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया। सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए दो प्रभावशाली दरबारी-हरिराम जोशी और शिबदेव सिंह-के बीच गहरी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। दोनों ही अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रोहिल्लाओं की सहायता लेने लगे। इस आंतरिक संघर्ष ने राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।

राज्य की लगातार कमजोर होती स्थिति ने बाहरी शक्तियों को कुमाऊं की ओर आकर्षित किया। इसी क्रम में नेपाल के महाराजा रण बहादुर शाह ने 1790 ईस्वी में अल्मोड़ा पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद नैनीताल सहित पूरा क्षेत्र गोरखा शासन के अंतर्गत आ गया और यह कुमाऊं गोरखा प्रांत का हिस्सा बन गया।

बाद के वर्षों में यह क्षेत्र अंग्रेज़ों की विशेष रुचि का केंद्र बन गया। सन 1841 में एक ब्रिटिश व्यापारी ने एक पर्वतीय अभियान के दौरान नैनीताल की खोज की।

भीमताल झील : कुमाऊं की जलविहीन धरोहर

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित भीमताल झील प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व का अद्भुत संगम है। नेशनल इंफॉर्मेशन सेंटर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह झील एक "सी" आकार में फैली हुई है और कुमाऊं की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील मानी जाती है। वर्तमान में इसका जल 116 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है, जबकि इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 10 वर्ग मील में फैला हुआ है। समुद्र तल से लगभग 4,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह झील न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टि से भी विशिष्ट स्थान रखती है।


यह झील 155 एकड़ क्षेत्रफल में है। झील की लंबाई 5,580 फुट और अधिकतम चौड़ाई 1,490 फुट है। इस झील के बीचों-बीच एक छोटा-सा द्वीप स्थित है, जो मंदिर के पश्चिम में है और जिसकी परिधि लगभग 6 से 7 मीटर है। यह द्वीप झील के तट से लगभग 100 गज़ की दूरी पर स्थित है।

भीमताल बांध (Bhimtal Dam)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सन 1895 में जब बांध बनाया गया, तो इस स्थल का पुरातात्विक महत्व वाला सुंदर स्मारक लगभग छिप गया। पहले यह मंदिर शिकारे या पहाड़ी के आकार में पत्थरों से निर्मित था, लेकिन अब यहां छोटे-छोटे कई कमरे बना दिए गए हैं। मंदिर का मूल और प्राचीन भाग अब एक बड़े हाल के भीतर समा गया है, जिसका पतला शिखर अब भी ऊपर से दिखाई देता है। मंदिर की चारदीवारी के भीतर स्थित पीपल का पवित्र वृक्ष, इस जगह की ऐतिहासिक विरासत का जीवंत प्रमाण है। ब्रिटिश दौर के प्रसिद्ध खोजकर्ता सैम्युल बोल्ड के 150 वर्ष पुराने चित्रों में भी इस पीपल वृक्ष की उपस्थिति देखी जा सकती है।

भीमताल झील के उत्तरी किनारे पर सन 1895 में एक मजबूत बांध का निर्माण किया गया था। यह बांध 500 फुट लंबा और 48.5 फुट ऊंचा है, जिसका आधार 36 फुट चौड़ा है। इसकी संरचना को पत्थरों और लोहे की चादरों से मजबूती प्रदान की गई है, जिससे झील के जलस्तर और बहाव को नियंत्रित किया जा सके।


अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भीमताल डैम को कृषि सिंचाई की सुविधा के लिए विकसित किया गया था। 15 मई से 30 जून तक यहां से पानी की आपूर्ति की जाती थी। परंतु स्वतंत्रता के बाद जब काठगोदाम का बैराज भर जाता था, तो इस डैम को बंद कर दिया जाता था। स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में भी इस डैम से क्षेत्रीय कृषि के लिए पानी की सप्लाई जारी रही, हालांकि हाल के वर्षों में इसकी आपूर्ति रोक दी गई है।

यह डैम पत्थर और चूने से निर्मित है, जो इसे आज भी संरचनात्मक रूप से मजबूत बनाए हुए है।एक और दिलचस्प बात यह है कि इस डैम का आकार अंग्रेजी वर्णमाला के 'S' अक्षर की तरह डिजाइन किया गया है। यह डिज़ाइन विशेष रूप से भीमताल झील के जलदाब को नियंत्रित करने के लिए सबसे उपयुक्त समझा गया था, और उस समय की इंजीनियरिंग दृष्टि से यह एक बेहतरीन निर्माण माना गया।

इस बांध के निर्माण का प्राथमिक उद्देश्य था –झील में मौजूद मछलियों को शिकारियों से बचाना। लेकिन बीते सौ वर्षों में बांध का क्षेत्रफल लगभग 30 एकड़ घट चुका है। इसका प्रमुख कारण है — मानसून में पहाड़ों से बहकर आने वाली गाद और तिलछट, जो झील की सतह पर जमा होकर इसकी गहराई को कम कर रही है।

भीमेश्वर मंदिर: झील किनारे शिव की छाया

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भीमताल झील के दक्षिण-पूर्वी किनारे पर स्थित भीमेश्वर महादेव मंदिर इस क्षेत्र की धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा बाज़बहादुर चंद ने 17वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर झील के सौंदर्य में एक आध्यात्मिक गरिमा जोड़ता है।

भीमताल झील के बारे में रोचक तथ्य (Interesting facts about Bhimtal Lake)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भीमताल झील, नैनीताल ज़िले की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी प्राकृतिक झीलों में से एक है। यह लगभग 116 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है और “C” आकार की है।

यह झील समुद्र तल से लगभग 4,500 फीट (1370 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है, जिससे यहां का मौसम बेहद सुहावना और पर्यटकों के लिए आकर्षक रहता है।

भीमताल झील के बीच में लगभग 6–7 मीटर व्यास का एक छोटा सा द्वीप है, जो झील के किनारे से लगभग 100 गज की दूरी पर स्थित है। इस द्वीप पर अब एक खूबसूरत एक्वेरियम भी बनाया गया है।

सन 1895 में अंग्रेजों ने झील के ऊपरी हिस्से में एक मजबूत पत्थर और चूने का बांध बनवाया था, जो आज भी मजबूती से खड़ा है। इसकी ऊँचाई 48.5 फ़ुट और चौड़ाई 36 फ़ुट है।

ब्रिटिश कलाकार मरियाना नार्थ ने सन 1878 में भीमताल झील और मंदिर का चित्र बनाया था और अपने संस्मरणों में इसका सुंदर वर्णन किया। उनके शब्दों में, “हरी झील के किनारे पर भूरे पत्थरों से बना एक सुंदर मंदिर और चाय के बागानों के बीच का नज़ारा स्वर्ग जैसा था।”

भीमताल के चारों ओर चीड़, शाहबलूत, और पीपल जैसे वृक्षों की बहुतायत है। साथ ही यह क्षेत्र पक्षियों, तितलियों और जलीय जीवों के लिए भी अनुकूल है।

भीमताल झील में बोटिंग, कयाकिंग और पैडल बोटिंग जैसी गतिविधियाँ पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। शांत और साफ पानी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

भीमताल झील केवल एक जलाशय नहीं, बल्कि प्रकृति, इतिहास, आस्था और जीवन का अद्वितीय संगम है। यह झील न केवल कुमाऊं के भौगोलिक भूगोल में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी उपस्थिति इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरणीय चेतना को भी दर्शाती है। लेकिन आधुनिक विकास की आंधी में इसकी नाजुक पारिस्थितिकी पर जो संकट मंडरा रहा है, वह हमारे सतत प्रयासों और संरक्षण की मांग करता है।

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