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82 की उम्र में भी निशाना अचूक, शूटिंग वर्ल्ड में है इनकी 'दादीगिरी'
बागपत: कहते हैं कि हवा के अनुकूल चलने वाला जहाज कभी बंदरगाह नहीं पहुंचता। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो अपने पथ से नहीं भटकता सफलता उसके कदम चूमती है। कुछ ऐसी ही कहानी है मुजफ्फरनगर में रहने वाली चंद्रो और प्रकाशी की, जिन्हें गुमनामी के अंधेरों में जीते रहना कभी मंजूर नहीं था। यही कारण था कि चूल्हे-चौके से निकलकर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी दोनों ने अपने कारनामों का लोहा मनवा दिया।
एक कार्यक्रम को दौरान प्रकाशी तोमर।
दिल्ली से लभगग 50 किलोमीटर दूर एक गांव में रहने वाली 82 और 77 साल की चंद्रो और प्रकाशी जानी-मानी दो शूटर हैं। इनके अचूक निशाने को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। दोनों के चेहरों पर उस समय खुशी की लहर दौड़ पड़ी जब उन्हें राष्ट्रपति भवन से लंच के लिए बुलावा आया था।
18 साल पहले शुरू हुई ये कहानी
दादी की ये कहानी 18 साल पहले उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव जोहड़ी से शुरू होती है। उस समय दादी की उम्र 65 साल थी। नाती पोतो वाली दादी(चंद्रो) हाथ में पिस्टल लेकर निशानेबाजी करती थीं। इसे देख हर कोई हैरान था। गांव में जहां लड़कियों को पढ़ने लिखने में भी मुश्किल होती है वहीं दादी बंदूक से ठांय-ठांय कर रहीं थीं। उनके लिए गांव में तरह-तरह की चर्चा होती थी उन्हें निशाना लगाते देख लोग कहते कि-"दादी जागी कारगिल चलावे बन्दुक"। लोगों के तानों को छोड़ दादी अपने लक्ष्य पर निशाना साधती रहीं। लोग क्या कह रहे हैं इन सबसे उन्होंने कभी कोई वास्ता नहीं रखा।
अचूक है निशाना
चंद्रो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देवरानी दादी प्रकाशी ने पूरा साथ दिया। वो भी 60 की उम्र पार कर चुकी थी और आज दोनों देवरानी जेठानी शूटिंग के इतिहास में एक जानामाना नाम हैं। दोनों आज 80 की उम्र पार कर चुकी हैं लेकिन उनका निशाना आज भी अचूक है।
लोगों को आज भी होता है आश्चर्य
दादी चंद्रो आज भी अपने घर का सारा काम खुद करती है। आश्चर्य होता है जब लोगों को पता चलता है की चंद्रो और प्रकाशी दोनों अंतर्राष्ट्रीय शूटर हैं। वैसे तो दोनो देवरानी जेठानी हैं पर दोनो में प्यार सगी बहनों से बढ़कर है।
बच्चों को शूटिंग सिखाती प्रकाशी तोमर।
सगे भाइयों से हुई थी दोनों की शादी
दादी चंद्रो मुजफ्फरनगर जिले के मख्मुलपुर गांव की बेटी है और दादी प्रकाशी मुजफ्फरनगर जिले के खरड गांव की बेटी हैं। दोनों की शादी बागपत जिले के जोहड़ी गांव के दो सगे भाई भवरसिंह और जयसिंह के साथ हुई है।
आज भी पिछड़ा है दादी का गांव
दिल्ली से 50 किलोमीटर दूर दादी का गांव आजादी के 65 साल बाद भी इस पिछड़े इलाकों में गिना जाता है। सुविधा के नाम पर इस गांव में ना तो कोई अस्पताल है और न ही कोई कॉलेज है। इस बात को लेकर चंद्रो और प्रकाशी दोनोें चिंतित रहती हैं।
दादी की जोड़ी ने दी सीख
जिस तरह चूल्हे-चोके से निकलकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दादी चंद्रो और प्रकाशी ने महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है वो अपने आप में इतिहास है। दोनों ने आज ये साबित कर दिया कि यदि मन में विश्वास है और इच्छा शक्ति मजबूत है तो उम्र कोई मायने नहीं रखती है। ये दादी चंद्रो और प्रकाशी ने सिखाया है। जो लोग कभी दादी को निशाना लगाते देखकर कहते थे "दादी जागी कारगिल चलावे बन्दुक" वही लोग आज दादी की सफलता के आगे नतमस्तक हो गए हैं।
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