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जानिए स्थापना से लेकर आज तक कैसी है हिमाचल की पाॅलिटिकल हिस्ट्री ...
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव में आठ महीने का समय है। देश भर में अपनी विजय पताका फहराने का मन बना चुकी बीजेपी अभी से कमर कस चुकी है।
Ved Prakash singh
शिमला: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव में आठ महीने का समय है। देश भर में अपनी विजय पताका फहराने का मन बना चुकी बीजेपी अभी से कमर कस चुकी है। इसी क्रम में पीएम नरेंद्र मोदी 27 अप्रैल को शिमला आ रहे हैं और कई सौगात देने वाले हैं।
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मोदी बहुत पहले से ही हिमाचल में अपने मिशन की शुरुआत कर चुके हैं। जिससे जब उनका चुनाव अभियान शुरू हो तो पुरानी बातों से लोगों को जोड़ा जा सके। बात चाहे बीते साल 18 अक्टूबर की मंडी की रैली हो जहां पर उन्होंने एक साथ तीन हाइड्रो प्रोजेक्ट को हिमाचल को समर्पित किया हो या बिना बताए अचानक हिमाचल प्रदेश के सूदूर किन्नौर इलाके पहुचकर
तैनात सेना के जवानों और स्थानीय लोगों के साथ दीवाली मनाना हो। इन दोनों घटनाओं को हुए वैसे तो बहुत समय हो गया, लेकिन आज भी इस बात की चर्चा हिमाचल में होती रहती हैं।
भारतीय इतिहास में हिमाचल प्रदेश की स्थापना स्वतंत्र भारत के 8वें राज्य के रूप में 25 जनवरी 1971 को इंदिरा गांधी के शासन काल में हुई थी। आइए देवभूमि के नाम से पहचाने जाने वाले हिमाचल की पाॅलिटिकल हिस्ट्री पर एक नजर डालते हैं।
अगली स्लाइड में जानिए क्या है हिमाचल की पाॅलिटिकल हिस्ट्री
हिमाचल की पाॅलिटिकल हिस्ट्री
इतिहास पर नजर डालें तो हिमाचल प्रदेश को स्वतंत्र राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 में मिला था। उस समय हिमाचल निर्माता के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता 'यशवंत सिंह परमार' हिमाचल के पहले सीएम बने। साल 1976 में उन्होंने इंदिरा गांधी के कहने पर कुर्सी छोड़ दी और ठाकुर रामलाल हिमाचल के दूसरे सीएम बने।
इमरजेंसी के दौरान विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली और 68 में से 60 सीटों पर कब्जा कर जनता पार्टी के नेता शांताकुमार हिमाचल के पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने। केंद्र में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हिमाचल का माहौल बदल गया और जनता पार्टी के 30 विधायक फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए और बिना चुनाव लड़े रामलाल दूसरी बार सीएम बने।
80 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अस्तित्व में आई। इस दौरान हिमाचल में जनता पार्टी के ज्यादातर नेता बीजेपी में चले गए।
साल 1982 में हुए आम चुनाव में बीजेपी को 31 और कांग्रेस को 29 सीटें मिली। जबकि 8 सीटें निर्दल के खाते में गई। इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी सरकार बनाने से रह गई। पांच निर्दल विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा और पहली बार वीरभद्र सिंह को हिमाचल की कमान सौंपी गई।
वहीं साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस ने केंद्र में फिर से सत्ता हासिल कर ली। मौके की नजाकत देखते हुए वीरभद्र सिंह ने विधान सभा भंग कर दी और फिर से चुनाव करवाए। इंदिरा की हत्या की सहानुभूति की लहर उन्हें इस बार भी मिली। इस बार कांग्रेस ने 68 में से 58 सीट पर कब्जा किया।
90 के दशक में कांग्रेस विरोधी लहर ने हिमाचल में कांग्रेस का सफाया कर दिया। बीजेपी और जनता दल के गठबंधन में बीजेपी को 46 और जनता दल को 11 सीटें मिली। जबकि कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार सकी। वह 8 सीटों पर सिमट गई। यह कांग्रेस के इतिहास की सबसे शर्मनाक हार थी।
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साल 1990 में बीजेपी के शांताकुमार हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के पहले सीएम बने। इस बार भी शांताकुमार उलटफेर का शिकार हुए। 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी विध्वंस के बाद केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश समेत चार राज्यों की सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
9 महीने तक हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के बाद हुए विधान सभा चुनाव में फिर से बीजेपी को करारी शिकस्त मिली। इस बार उसे सिर्फ आठ सीटें मिली। जबकि कांग्रेस 53 सीटों के साथ सत्ता में आई। वीरभद्र सिंह तीसरी बार हिमाचल के सीएम बने।
साल 1998 में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और इस बार उसे 31 सीटें मिली। जबकि हिविका (हिमाचल विकास कांग्रेस) को 5 सीटें मिली। चुनाव बाद गठबंधन में बीजेपी ने हिविका के साथ मिलकर सरकार बनाई और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम बने।
साल 2003 मे फिर से कांग्रेस ने वापसी की और वीरभद्र सिंह पांचवी बार हिमाचल प्रदेश के सीएम बने। साल 2007 के विधान सभा चुनाव में 68 में से 41 सीटें बीजेपी ने जीती और हिमाचल में पहली बार बिना किसी की मदद के सत्ता पर कब्ज़ा किया। इस बार भी प्रेम कुमार धूमल को बीजेपी ने सीएम बनाया।
साल 2012 के आम चुनाव में फिर बीजेपी उलटफेर का शिकार हुई। कांग्रेस ने 36 सीटें जीतकर फिर से सत्ता पर कब्ज़ा किया और वीरभद्र सिंह ने छठी बार हिमाचल प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली। इस बार बीजेपी को महज 26 सीटें मिली।
‘यह आर्टिकल वेद प्रकाश सिंह ([email protected]) द्वारा लिखा गया है।’
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