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150 साल बाद भी बलरामपुर अस्पताल अभी तक नहीं हो पाया NABH, जानें क्या है ये
लखनऊ: बलरामपुर अस्पताल अगले साल अपना 150 वां स्थापना दिवस मनाएगा। 150 साल से यहां प्रदेश भर के मरीज़ अपना इलाज करवाने आते हैं।यहाँ पर रोज़ाना हज़ारों मरीज़ों की ओपीडी होती है। इतना बड़ा अस्पताल होने के बावजूद यहां आए दिन इलाज में गड़बड़ी के मामले सामने आते रहते हैं। शायद यही कारण है कि अभी तक इस अस्पताल को एनएबीएच (भारतीय गुणवत्ता परिषद) सर्टिफिकेट नहीं मिला है।
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इस मामले में बलरामपुर अस्पताल के सीएमएस डॉ ऋषि कुमार सक्सेना का कहना है कि उनका अस्पताल मरीज़ों को सभी सुविधा देता है लेकिन तब भी उनके अस्पताल को एनएबीएच सर्टिफिकेट नहीं मिला है। उनका कहना है कि अस्पताल प्रशासन इसके लिए आवेदन भी कर चुका है, लेकिन अभी तक इस तरफ कोई कदम नहीं उठाया गया है। जबकि हकीकत यह है कि बलरामपुर अस्पताल अभी तक एनएबीएच के मानकों को पूरा नहीं कर पाया है। अस्पताल की लचर व्यवस्था को देखते हुए मौजूदा हालातों में इसे एनएबीएच से मान्यता मिलने के आसार नहीं लग रहे। सच यह है कि केवल वही अस्पताल इस मान्यता के लिए आवेदन कर सकते हैं जो एनएबीएच के मानकों को पूरा करते हैं । ऐसे में बलरामपुर अस्पताल के दावें खोखले साबित हो रहे हैं ।
आए दिन हो रही इलाज में गड़बड़ी
बलरामपुर अस्पताल में आए दिन कोई न कोई गड़बड़ी का मामला सामने आता रहता है। बीते तीन महीनों में ही मरीज़ों के साथ इलाज में होने वाली लापरवाही के मामले सामने आए। अगस्त में अस्पताल परिसर में एक मरीज़ की मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया । परिजनों का कहना था कि यहां आने वाले मरीज़ों को इलाज के नाम पर केवल ग्लूकोज़ चढ़ाया जाता है। मरीज़ को प्राथमिक उपचार के नाम पर केवल ग्लूकोज़ चढ़ाया गया जिससे उसकी मौत हो गई । इसी महीने वार्ड में एक सफाईकर्मी द्वारा मरीज़ को इंजेक्शन लगाने का मामला भी सामने आया। इस विषय पर सीएमएस ने मामले की जानकारी न होने का हवाला दिया।
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सितंबर के महीने में यहां मरीज़ों को एक्सपायर्ड एनेस्थीशिया और इंजेक्शन लगाने का खुलासा हुआ। अक्टूबर महीने में बलरामपुर की ओपीडी में मरीज़ों और डॉक्टरों के बीच हाथापाई की घटना सामने आई। यह तो केवल बानगी भर हैं , बलरामपुर में अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं । ऐसे हालातों में बलरामपुर अस्पताल को एनएबीएच से प्रमाण मिलना दूर की कौड़ी है।
क्या है एनएबीएच
भारतीय गुणवत्ता परिषद यानी क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने अस्पतालों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स बनाया हुआ है। यह बोर्ड देश के सभी अस्पतालों को अपने 683 मानकों का पालन करने वाले सभी अस्पतालों को मान्यता देता है। वहीं एंट्री लेवल के लिए 150 मानक हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है।
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नेशनल एक्रिडेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स की असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ दीप्ति मोहन ने बताया कि देश में अभी तक तकरीबन 500 अस्पतालों को ही बोर्ड से मान्यता मिली हुई है। उन्होंने बताया कि वे केवल उन्ही अस्पतालों को मान्यता देते हैं, जो बेस्ट क्लास सर्विस और गुणवत्ता का ख्याल रखते हैं। वह बताती हैं कि उनके बोर्ड के मानक बेहद सख्त हैं और हर किसी के लिए उन मानकों का पालन करना आसान नहीं होता। दीप्ति के मुताबिक यह अस्पतालों पर निर्भर करता है कि वह अस्पतालों की सुविधा को बेस्ट बनाना चाहते हैं या नहीं ।
3 साल के लिए मिलती है मान्यता
दीप्ति ने बताया कि मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया पूरी तरह से स्वैच्छिक है। बोर्ड अस्पतालों को किसी तरह की सलाह नहीं देता है केवल वेबसाइट के जरिए ही गाईडेंस दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जो अस्पताल की गुणवत्ता को लेकर चिंतित होते हैं, वे ही उनसे संपर्क करते हैं। उन्होंने बताया कि देश के कुल मान्यता प्राप्त और सर्टिफाइड अस्पतालों की संख्या 1750 है। वह बताती हैं कि देश में अस्पतालों को यह मान्यता 3 साल के लिए मिलती है, जिसके बाद उसे रिन्यु करवाना पड़ता है। रिन्यु प्रक्रिया में फिर से उन्हीं मानकों का पालन करना पड़ता है, अगर कोई कमी मिलती है, तो मान्यता रद्द भी की जा सकती है। उन्होंने बताया कि यह मान्यता ग्रुप स्तर पर न देकर अलग-अलग आवेदन करना पड़ता है।
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