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इलाहाबाद HC ने कहा- अधिकारों के प्रति सोए व्यक्ति को कोर्ट की सहानुभूति नहीं
इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने कहा है कि अपने अधिकार के प्रति जागरूक बगल गांव के लोगों को मिले न्याय के आधार पर लंबे समय तक अपने अधिकारों के प्रति सोए व्यक्ति के प्रति कोर्ट से सहानुभूति पाने का हक नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने गौतमबुद्ध नगर, दादरी के गांव गेझा लियताबाद के फुन्दन सहित दो अन्य की प्रथम अपील को खारिज करते हुए दिया है।
कोर्ट से अपील खारिज
कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई भूमि अधिग्रहण अवार्ड के खिलाफ अपील नहीं करता और दूसरे गांव के व्यक्ति की अपील पर उसे कोर्ट से अधिक मुआवजे का आदेश मिल जाता है तो 29 साल बाद अधिकारों के प्रति लापरवाह व्यक्ति को समान न्याय में देरी की माफी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने 29 साल की देरी से मुआवजा बढ़ाने की दाखिल प्रथम अपील को खारिज कर दिया है।
क्या है मामला?
ज्ञात हो कि 1 सितंबर 1977 में जमीन अधिग्रहीत की गई थी। इस जमीन का अधिग्रहण सिंचाई विभाग के लिए किया गया था। इस जमीन पर नोएडा का मुख्य नाला बनाया गया है। अपर जिला न्यायाधीश गाजियाबाद ने 31 मार्च 1986 को बारह हजार प्रति बीघा की दर से मुआवजे का अवार्ड किया। फुन्दन की 1992 में मौत हो गई। उनकी बेटी की तरफ से 29 साल बाद अपील दाखिल की गई। क्योंकि पड़ोस के गांव के एक किसान ने अवार्ड के खिलाफ अपील की थी।
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