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अब दस नहीं सिर्फ दो दिन की नोटिस पर दाखिल हो सकेगी जमानत अर्जी: हाईकोर्ट
इलाहाबाद: आपराधिक केसों में जेल में बंद अभियुक्त सभी कैदियों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने नियमावली में संशोधन कर जो जमानत अर्जी दस दिन की नोटिस के बाद दाखिल होती थी, अब कोई भी नोटिस के दो दिन बाद जमानत अर्जी दाखिल कर सकता है जिसकी शीघ्र सुनवाई हो सकेगी। इससे पहले दस दिन की नोटिस अवधि पूरी होने के बाद अर्जी दाखिल होती थी और आरोपी को तकनीकी कारणों से जेल में ही रहने को विवश होना पड़ता था। नियम में संशोधन से अब दो दिन पूर्व नोटिस देकर जमानत अर्जी दाखिल की जा सकेगी।
मालूम हो कि हाईकोर्ट रूल्स के नियम 16 (3) में संशोधन किया है। 29 सितम्बर 18 को किया गया संशोधन सरकारी गजट में प्रकाशित होने की तिथि से प्रभावी होगा। जमानत अर्जी की सुनवाई में तकनीकी देरी के कारण आरोपी को जेल मंे रहना पड़ता था। दस दिन की नोटिस का उद्देश्य अर्जी दाता के बारे में सरकार को सुनवाई के समय तक जानकारी एकत्र करना था। अब सुनवाई तकनीकी के प्रसार के चलते हाईकोर्ट पुरानी नियमावली को संशोधित कर दिया है। अब दो दिन की नोटिस के बाद ही जमानत अर्जी दाखिल हो सकेगी और कैदी को अनावश्यक अधिक दिनों तक जेल में कैद रहने से निजात मिलेगी।
कोर्ट की अन्य खबरें:
अलीगढ़ प्राइवेट सिटी बसों के परिचालन पर रोक नहीं
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिलाधिकारी अलीगढ़ को निर्देश दिया है कि वैध परमिट वाली प्राइवेट बसों को शहर की सीमा में परिचालन व प्रवेश पर रोक न लगाये और उन्हें बस स्टैण्ड से बसें चलने की अनुमति है। कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन हफ्ते में याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति मुख्तार अहमद की खण्डपीठ ने जिला बस आपरेटर्स एसोसिएशन अनूप शहर अलीगढ़ की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने बहस की। याची का कहना है कि एसोसिएशन सिटी बसों का संचालन अलीगढ़ शहर में कर रहा है। जिलाधिकारी ने कोई लिखित आदेश न देकर मौखिक आदेश से वैध परमिट के बावजूद प्राइवेट बसों को शहर मे घुसने व परिचालन करने पर रोक लगा दी है और प्राइवेट बस स्टैण्ड ध्वस्त करा दिये है। इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट में 37 लाख फाइलें डिजिटलाइज्ड, ऑनलाइन उपलब्ध न होने से परेशानी
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तेजी से शुरू हुई सूचना तकनीकी क्रान्ति थम सी गयी है। मुम्बई की स्टाक होल्डिंग कंपनी ने 37 लाख कोर्ट फाइलों की स्कैनिंग कर डिजिटलाइज्ड कर दिया है। प्रतिदिन डिजिटलाइजेशन का काम तेजी से जारी है, किन्तु स्कैन हो चुकी 37 लाख फाइलों को आनलाइन करने की अभी तक अनुमति न मिल पाने से योजना रूकी हुई है। डिजिटलाइजेशन सेंटर में लाखों फाइलें डम्प है। यदि कोई आदेश की नकल की अर्जी देता है तो फाइलों के महासमुद्र में से फाइल ढूंढकर आदेश की नकल जारी करना टेढ़ी खीर साबित हो रही है। हाईकोर्ट रूल्स के तहत नकल जारी करने की अधिकतम अवधि तय है किन्तु व्यवहारिक कठिनाइयों के चलते लोगों को आदेशों की उन फाइलों में नकल नहीं मिल पा रही है। जो फाइलें स्कैन होकर सेंटर में डम्प है। स्टाॅक होल्डिंग कंपनी करोड़ों खर्च लेकर हाईकोर्ट की पुरानी फाइलों को स्कैन कर डिजिटाइज्ड कार्य कर रही है। चार सौ से अधिक कर्मचारी इस कार्य में जुटे हैं। यह कार्य हाईकोर्ट की पांच सदस्यीय कमेटी की निगरानी में किया जा रहा है।
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