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BHU: MA के पेपर में कौटिल्य को बताया 'GST' का जनक, प्रश्न पर भड़के छात्र
काशी हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार एमए पॉलिटिकल साइंस के पेपर को लेकर बवाल मचा हुआ है। एमए फस्ट सेमेस्टर की परीक्षा में कौटिल्य को जीएसटी का जनक के तौर पर बताते हुए सवाल किया गया। वहीं मनु को ग्लोबलाइजेशन का पहला भारतीय विचारक के तौर स्थापित करते हुए प्रश्न किया गया है।
वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार एमए पॉलिटिकल साइंस के पेपर को लेकर बवाल मचा हुआ है। एमए फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा में कौटिल्य को 'जीएसटी' का जनक के तौर पर बताते हुए सवाल किया गया। वहीं मनु को ग्लोबलाइजेशन का पहला भारतीय विचारक के तौर स्थापित करते हुए प्रश्न किया गया।
छात्रों का आरोप है कि ये प्रश्न उनके पाठ्यक्रम में है ही नहीं। इसके अलावा छात्रों का विश्वविद्यालय पर एक खास तरह की विचारधारा थोपने का भी आरोप है।
पेपर देखकर भड़के छात्र
एमए फर्स्ट सेमेस्टर के स्टूडेंट्स गुस्से में हैं। इसका कारण यह है कि सेमेस्टर एग्जाम में वो दो ऐसे सवाल पूछे गए जो सिलेबस से बाहर के हैं। छात्रों के मुताबिक, पॉलिटिकल साइंस के पेपर में कौटिल्य अर्थशास्त्र में जीएसटी पर एक निबंध लिखने को दिया गया। इसके अलावा मनु को ग्लोबलाइजेशन का पहला भारतीय चिंतक बताते हुए सवाल किया गया। ये दोनों ही सवाल 15-15 नंबर के थे। छात्र इन सवालों को देखकर भड़क गए। उनका कहना था कि 'प्राचीन और मध्यकालीन भारत के सामाजिक एवं आर्थिक विचार' संबंधित कोर्स में इस तरह के टॉपिक है ही नहीं। ये सवाल सिलेबस से बाहर के हैं।
थोपी जा रही है आरएसएस की विचारधारा
छात्रों का आरोप है कि कौटिल्य और मनु के बहाने विश्वविद्यालय प्रशासन एक खास तरह की विचारधारा को बीएचयू में लागू करना चाहती है, जिस तरह से पूरे देश में विश्वविद्यालयों का भगवाकरण करने की कोशिश की जा रही है, उसी की कड़ी है ये पेपर। छात्रों की मानें तो अभी तक जीएसटी को लेकर कानून पूरी तरह से बना नहीं है। इस पर अभी लगातार शोध हो रहे हैं। ऐसे में इस तरह के सवालों का कोई औचित्य नहीं है। यही नहीं भारतीय इतिहास में जिस तरह मनु का किरदार रहा है, उसे एक बड़ा तबका स्वीकार्य नहीं करता। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन आरएसएस के एजेंडे को यहां लागू करना चाहता है।
प्रोफेसर ने पेश की सफाई
वहीं दूसरी ओर, पेपर तैयार वाले पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा का अलग तर्क है। उनका कहना है कि 'यह प्रश्न सिलेबस से बाहर का नहीं है। 1939 से पॉलिटिकल साइंस के कोर्स में कौटिल्य और मनु को पढ़ाया जाता रहा है। हां इस बार प्रश्न पूछने का अंदाज नया जरूर है। उनके मुताबिक कौटिल्य ने सदियों पहले ही कर प्रणाली के सिस्टम अपने अर्थशास्त्र में लिखा था। ऐसे में आज जब देश में जीएसटी लागू हुआ तो कौटिल्य का अर्थशास्त्र यूं ही प्रासंगिक हो जाता है। उनके मुताबिक कुछ लोग हैं जो बीएचयू को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हम उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे।'
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