EXCLUSIVE: कस रहा है सीबीआई का शिकंजा, गायत्री के साथ अफसरों पर भी गिरेगी गाज

पट्टे के लिए मंत्री जी का फोन ही काफी होता था महीने के शुरुआत में एक फोन जाता कि फलां की ट्रकें अब पास होंगी। इस काम के एवज में लाखों रुपये प्रतिदिन आते थे। जब कोई दूसरा मिल गया तो उसके लिए फोन चला जाता।

zafar
Published on: 10 March 2017 9:46 PM IST
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EXCLUSIVE: कस रहा है सीबीआई का शिकंजा, गायत्री के साथ अफसरों पर गिरेगी गाज

ANURAG SHUKLA

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के चुनाव और सीबीआई का बेहद खास रिश्ता है। पिछले दो दशक में हर चुनाव को सीबीआई ने किसी न किसी तरह से प्रभावित किया है। साल 2017 का चुनाव भी इसका अपवाद नहीं है। पिछली बार, साल 2012 के चुनाव एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच की आंच तले ही हुए थे।

इसके पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके परिवार की आय से अधिक संपत्ति और उसके पहले ताज कॉरिडोर और मायावती की आय से अधिक संपत्ति के साये तले चुनाव हो चुके हैं।

खनन घोटाले की आंच

सीबीआई ने इस चुनाव में खनन घोटाले और जवाहरबाग को लेकर जहां सरकार की छवि पर असर ड़ाला, वहीं यादव सिंह मामले की सीबीआई जांच ने मिस्टर क्लीन रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार के कामकाज पर सवाल उठा दिए। इसी तरह खनन घोटाले की जांच इस समाजवादी पार्टी को चुनाव के बाद भी सालती रहेगी क्योंकि राज्यपाल के कहने के बाद भी अखिलेश यादव ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से नहीं हटाया। गौरतलब है कि गायत्री प्रजापति के खनन विभाग का राज्यमंत्री रहने के दौरान, खनन विभाग के कैबिनेट मंत्री, 16 महीने यानी जुलाई 2016 तक, खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही थे।

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मिस्टर क्लीन पर सवाल

गायत्री प्रजापति अखिलेश सरकार में मुसीबत का पर्याय बनते जा रहे हैं। सीबीआई ने उत्तर प्रदेश में अवैध खनन के खिलाफ मामला दर्ज़ कर जांच शुरू कर दी है। जिसकी आंच गायत्री प्रसाद प्रजापति पर भी आना तय है। सीबीआई ने उत्तर प्रदेश में हुए अवैध खनन के खिलाफ 5 मामले दर्ज कर इसकी प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।

हमीरपुर, फतेहपुर, शामली, सिद्धार्थनगर और देवरिया में हुए अवैध खनन के मामले में सीबीआई ने इन पांचों जिलों के अधिकारियों के साथ ही खनन विभाग के कुछ अधिकारियों समेत नेताओं को भी नामजद किया है। इस जांच के दायरे में गायत्री प्रजापति भी हैं।

गायत्री प्रसाद प्रजापति परिवहन मंत्री हैं और उनपर गैंगरेप का आरोप है। गैंगरेप मामले में उन्हें गिरफ्तार करने के लिये पुलिस उनके ठिकानों पर लगातार दबिश भी दे रही है। हालांकि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर पाने में अभी तक असफल रही है। उत्तर प्रदेश में खनन में घोटाले को लेकर भाजपा ने अखिलेश सरकार को घेरा था। जिसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गायत्री प्रसाद प्रजापति का विभाग बदलकर परिवहन मंत्रलाय दे दिया। खनन में अनियमितताओं और घोटालों को लेकर कोर्ट ने भी प्रजापति और राज्य सरकार को फटकार लगाई थी।

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सीबीआई का शिकंजा

इससे पहले 26 दिसंबर 2014 को लोकायुक्त को शिकायत की गयी और लोकायुक्त ने 25 मई 2015 को अपनी रिपोर्ट में प्रजापति को क्लीनचिट दे दी। सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन लोकायुक्त से भी सीबीआई पूछताछ कर सकती है ताकि यह पता लगया जा सके कि किन परिस्थितियों में उन्हें क्लीन चिट दी। पर प्रजापति की संपत्ति की एसआईटी जांच के लिए दायर रिट याचिका संख्या 11178/2015 अब भी कोर्ट में लंबित है। वैसे आरोप यह भी है कि जब लोकायुक्त के यहां यह केस लंबित था तो सपा नेता सुबोध यादव, विधायक आशाकिशोर और सोशलाइट मुरली आहूजा ने गायत्री की तरफ से मोर्चा संभाल रखा था।

सीबीआई सूत्रों के मुताबिक पूरे मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। कोर्ट की तरफ से तय मियाद पूरी होने से पहले ठोस तौर पर घोटाले से जुड़े सभी अहम पहलुओं को उजागर कर दिया जाएगा। इस मुताल्लिक खनन मंत्री के परिजनों और नजदीकी रिश्तेदारों के नाम पर खरीदी गई संपत्तियों के लिए करोड़ों रुपए का लेन-देन जांच एजेंसी के रडार पर आ सकता है। हाईकोर्ट में दायर विजय द्विवेदी की इस रिट में आरोप है कि उन लोगों के खनन के पट्टे अवैध रुप से बढा दिए गये हैं जिनके पट्टे कब से खत्म हो चुके हैं।

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रसूख का जलवा

दरअसल खनन घोटाले के कई आयाम हैं। जिन्हें पट्टे दिए गये उसमें पहले तो कमीशन लिया गया जिससे सरकारी खजाने को चूना लगा। फिर एक एक पट्टे को कई बार बदला गया। दरअसल पट्टे के लिए मंत्री जी का फोन ही काफी होता था महीने के शुरुआत में एक फोन जाता कि फलां की ट्रकें अब पास होंगी। इस काम के एवज में लाखों रुपये प्रतिदिन आते थे। जब कोई दूसरा मिल गया तो उसके लिए फोन चला जाता। कई बार तो पिंटू सिंह और विकास वर्मा इस काम के लिए मंत्री को जहमत ही नहीं देते थे। सिर्फ फोन पर ही लाखों एक साइट से गिर जाते थे।

गायत्री का पार्टी और सरकार में लगातार रसूख बढ़ता जा रहा था। उनके विभाग की ओवरलोडेड ट्रकों को रोकने लिए सरकार के कद्दावर मंत्री और मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव को दो साल लग गए। दरअसल इन ट्रकों से लोकनिर्माण विभाग की सड़कें समय से पहले ही दम तोड़ रही थीं।

यह गायत्री के बढ़ते रखूख का ही जलवा था कि उन्हें एक ही विभाग में तीन बार प्रमोशन मिले। गायत्री ने पूरे विभाग को अपने हिसाब से हांकने की तैयारी कर ली थी। उन्होंने 85 लोगों को पहले आउटसोर्सिंग पर नौकरी दी जिसमें उनके विधानसभा क्षेत्र और आस पास के 60-65 लोग थे। बाद में उन्हें समायोजित कराने के लिए दबाव डालने लगे। इस समायोजन के लिए उन्होंने संतोष राय पर दबाव भी डाला और उनके मना करने पर उन्हें सरेआम भला बुरा सुनाया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में एक केस करवा कर नियमानुसार कार्यवाही का आदेश किया और फिर दबाव बनाया कि नियमानुसार का मतलब उनके बनाए नियम हों।

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पेंच दर पेंच

और तो और, खनन विभाग में गायत्री प्रजापति ‘2-जी’ जैसा घोटाला करने की तैयारी में थे जिसमें उन्होंने मनमोहन सरकार की फजीहत से सबक न लेते हुए पहले आओ पहले पाओ की नीति पर खनन का पट्टा करने की तैयारी कर ली थी। पर इस योजना को मुख्यमंत्री ने बाद में रद कर दिया।

इसके अलावा प्रदेश के खनिज विभाग में सत्ता परिवर्तन होते ही गायत्री प्रजापति ने सोनभद्र, बांदा, जालौन हमीरपुर, इलाहाबाद, चंदौली, बनारस, सहारनपुर और नोयडा जैसे शहरों में उन अधिकारियों की तैनाती की जो इस अवैध धंधे को बढ़ा सकें। खनन का घोटाला सिर्फ इसी विभाग को नहीं बल्कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी अपनी जद मे ले रहा है। इस घोटाले को अंजाम देने के लिए बोर्ड ने अनापत्ति प्रमाण पत्र की जगह सहमति पत्र निर्गत कर दिए। अनापत्ति पत्र का स्वरूप बदलने से खनन से होने वाले वायु प्रदूषण के नियंत्रण को लेकर उन पर कोई शिकंजा नहीं कसा जा सकता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोनभद्र में हो रहे प्रदूषण को लेकर राज्य सरकार से सवाल पूछे थे पर अधिकारियों ने अनापत्ति प्रमाण पत्र का तोड़ सहमति पत्र से दे दिया। इसके अलावा एक बानगी जनवरी 2016 में बांदा, चित्रकूट, जालौन और हमीरपुर जिलों में भी देखने को मिली। यहां पर कुल 4878 एकड़ बालू के लिए भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग ने 54 पट्टों के आवेदन मांगे थे। इनसे 31.58 करोड़ रॉयल्टी के रूप में मिलने थे। कई लोगों ने आवेदन भी किया था। पट्टे स्वीकृत हुए या नहीं यह जानकारी अब भी कोई नहीं दे रहा। मगर आवेदनकर्ता सिंडिकेट के जरिए बालू खनन करने में जुट गए। इन चारों जनपदों में खदानों से बालू की दुकानों पर ट्रकों के जरिए रात-दिन बालू डंप कराई गई। बिना रॉयल्टी के अवैध बालू के डंप खेतों व सड़कों के किनारे दूर से दिखाई दे रहे है|

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घोटाले का जाल

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रमुख सचिव के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की गयी थी। पर सिर्फ प्रमुख सचिव ही नहीं इस खनन घोटाले की जद में कई और अफसर भी आ रहे हैं। इसकी जद में आ रहे पूर्व निदेशकों, प्रमुख सचिवों, आईएएस अफसरों जैसे पूर्व प्रमुख सचिव गुरदीप सिंह, निदेशक भास्कर उपाध्याय और खनन विभाग के दूसरे बड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच होगी। भाष्कर उपाध्याय ने तो अब सियासी पारी की तैयार कर ली है। उन्होंने ‘सबकी पार्टी’ नाम की पार्टी बनाने की सारी औपचारिकता पूरी कर ली है। चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन के लिये आवेदन कर दिया है। तैयारी है कि लोकसभा के होने वाले 2019 के चुनाव में वह अपनी सियासी किस्मत भी आजमाएं।

गुरदीप सिंह तो गायत्री के इतने पसंदीदा थे कि जब भी निदेशक की कुर्सी खाली हुई तो उन्हें ही इसका अतिरिक्त प्रभार दिया गया। इसके साथ ही अब उन अफसरों की नींद भी उड़ गयी है जिनकी पीठ गायत्री प्रजापति के समय में थपथपाई गयी। इसके अलावा पिछले साल प्रदेश सरकार ने महोबा के खनिज अधिकारी भागवत प्रसाद यादव को गोल्ड मेडल दिया था। हमीरपुर के खनिज अधिकारी मुईनुद्‌दीन को सिल्वर मेडल, बांदा के खनिज अधिकारी हवलदार सिंह और चित्रकूट के खनिज अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था। कुछ खनिज कर्मचारियों को भी प्रशस्ति पत्र दिए गए थे।

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विभाग के हाकिम

इसके अलावा कई अफसर ऐसे हैं जिनकी फुलटाइम सत्ता विभाग में चलती है। चाहे किसी की भी सरकार हो। मंत्री कोई भी हो। यही विभाग के हाकिम होते हैं। पूर्व निदेशक भाष्कर उपाध्याय पर आरोप है कि उन्होंने महोबा में खनन का पट्टा अपने रिश्तेदार को दिला रखा है। विभाग में जब बसपा के बाबूसिंह कुशवाहा मंत्री थे तो उनके करीबी एके राय, नवीन दास और एसके सिंह जैसे अफसर करीबी होते थे। वहीं जब बसपा की धुर विरोधी सपा की सरकार में गायत्री खनन मंत्री बने तो यही अफसर इनकी आंख के तारे भी बन गये।

इनके अलावा अनिल शर्मा, एसके सिंह, राम प्रकाश सिंह, केके राय, वी पी यादव, डीके सिंह, अरविंद, महबूब अली, अनिल शर्मा, रामनाथ यादव, पीके सिंह, जेपी द्विवेदी, एके सेना, अभय रंजन, अशोक मौर्या, सुभाष सिंह, अवध लाल यादव, मनोज सिंह भी सीबीआई की रडार पर हैं। ये अधिकारी, खान निरीक्षक, खनिज अधिकारी, और सर्वेयर आदि पदों पर तैनात हैं। गाजियाबाद में तैनात खनन विभाग के अधिकारी नवीन दास के बारे में कहा जाता है कि मंत्री कोई भी हो किसी सरकार का हो मैनेजमेंज दास साहब को ही करना है। यहां तक कि मंत्री दिल्ली, गाजियाबाद, नोयडा में कहां रुकेगा, क्या करेगा यह सब नवीन दास कई अलग अलग सरकारों में बदस्तूर करते आ रहे हैं। मंत्री के साथ ही प्रमुख सचिव की भी छुट्टी कर दी गयी।

भले ही गायत्री खुद पुलिस से भागते फिर रहे हों, पर उनके खिलाफ शिकायत कर रहे रजनीश का आरोप है कि उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं और वह घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। अब इसी को तो रसूख कहते हैं।

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