TRENDING TAGS :
स्वर्णिम अतीत के दायरों में अटकी कांग्रेस
कांग्रेस के रणनीतिकार यह नहीं समझ पा रहे है कि उनकी परेशानी का हल किसी परिवार से जुड़ा नहीं है। कांग्रेस की असल परेशानी यह है कि आजादी के आंदोलनों के फ्रेम में जड़ी कांग्रेस के तस्वीर पर इतनी धूल जम गयी है कि अब वह तस्वीर धुंधली हो चुकी है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: आखिर, कांग्रेस में पिछले दो महीने से चला आ रहा सवाल कि राहुल गांधी के बाद कांग्रेस की कमान किसके हाथ में जायेगी का जवाब मिल ही गया। नेहरू-गांधी परिवार से इतर अपना नेतृत्व ढ़ूढ़ने में करीब दो माह के मंथन के बाद एक बार फिर सोनियां गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष चुन लिया है।
दरअसल, हाशिये पर जा रही कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्यां यही है कि वह आज भी अपने स्वर्णिम अतीत को भूल नहीं पा रही है और उसी के दायरे में अटक के रह गयी है।
ये भी देखें : ई-हॉस्पिटल में बिना फार्मेसिस्ट दवा वितरण जानलेवा: फार्मासिस्ट महासंघ
चमत्कारी नेतृत्व के मिलने की उम्मीद
राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद से ही पार्टी के सामने संकट था कि ऐसा नेता कहा से लाये जो मोदी-शाह की जोड़ी का मुकाबला उतनी ही आक्रामक शैली में कर सकें। इस बीच कई नाम चर्चा में आये लेकिन पूरे देश में फैले कांग्रेसियों में राहुल गांधी से इस्तीफा वापस लेने की मांग को लेकर लगातार इस्तीफे दिये जाने से साफ जाहिर था कि कांग्रेस अब भी गांधी-नेहरू परिवार की ओर कातर निगाहों से देख रही है और किसी चमत्कारी नेतृत्व के मिलने की उम्मीद कर रही है और ऐसा ही हुआ भी पार्टी ने एक बार फिर सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है।
सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने 10 साल तक देश की सरकार चलाई लेकिन वर्ष 2014 में मोदी की आंधी में कांग्रेस के पैर ऐसे उखड़े कि वह अभी तक स्थिर नहीं हो पायी है।
कांग्रेस चेहरा साफ करने के बजाय आइना पोछने में लगी हुई है
दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकार यह नहीं समझ पा रहे है कि उनकी परेशानी का हल किसी परिवार से जुड़ा नहीं है। कांग्रेस की असल परेशानी यह है कि आजादी के आंदोलनों के फ्रेम में जड़ी कांग्रेस के तस्वीर पर इतनी धूल जम गयी है कि अब वह तस्वीर धुंधली हो चुकी है। लेकिन कांगे्रस चेहरा साफ करने के बजाय आइना पोछने में लगी हुई है। दशकों देश पर शासन करने वाली कांग्रेस के लोग अब सड़क पर उतर कर आंदोलन की राजनीति करना भूल कर वातानकूलित कमरों की राजनीति करने के आदी हो गये है।
ये भी देखें : स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर लखनऊ देगा मजहबी एकता का संदेश
कांग्रेसी भूल गये कि देश की जनता ने उन्हे दशकों तक शासन करने दिया तो केवल इसलिए क्योंकि आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी व अन्य कांग्रेसी नेताओं ने जनता के मुददो को लेकर आंदोलन किया था, जेल गये थे और यातनायें सही थी। लेकिन आज, कांग्रेसी, गांधी के नाम को तो भुनाना चाहते है लेकिन गांधी के मार्ग का अनुसरण करना नहीं चाहते।
ऐसा नहीं है कि देश में जनता के साथ खडे़ होने और उसका विश्वास हासिल करने के मौके नहीं आये लेकिन अपने गौरवमयी इतिहास के दम्भ में डूबी कांग्रेस ने उन मौकों को कभी भी हाथ में नहीं लिया, फिसल जाने दिया।
बतौर अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई ऐसे बयान दिये जो देश की जनता के मिजाज के खिलाफ थे।
नाक-नक्श में अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखने वाली प्रियंका भी नहीं दिखा पायीं कमाल
राहुल गांधी को समझ और परख चुकने के बाद कांग्रेस के नेताओं और देश की जनता को भी प्रियंका गांधी से बहुत अधिक उम्मीदें थी। ऐसा मानना था कि नाक-नक्श में अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखने वाली प्रियंका अगर सक्रिय राजनीति में आयी तो अपनी दादी की तरह ही करिश्माई साबित होंगी लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में प्रियंका की सक्रियता के बावजूद मिली करारी हार ने यह भ्रम भी दूर कर दिया। प्रियंका गांधी भी वातानूकलित कमरों और टिव्टर पर बयानबाजी को राजनीति समझ बैठी है।
ये भी देखें : …तो इसलिए भारत को रोकना पड़ा समझौता एक्सप्रेस का संचालन
कांग्रेस के दिग्गज नेता आज भी अपने स्वर्णिम अतीत के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे है, जब पूरे देश में कांग्रेस की आंधी चलती थी। वह यह नहीं समझ पा रहे है कि एक समय ऐसा भी आता है कि जब हवाओं का रूख बदलता है तो वह उल्टी चल पड़ती है और ऐसे समय में बड़े-बड़े महलों में बैठ कर नही बल्कि जमीन पर उतर कर संघर्ष करना पड़ता है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!