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मतों की चाह में बदलती सियासी आस्थाएं
राम नाम की राजनीति करने वाले जहां कांग्रेसी महापुरूषों महात्मा गांधी और सरदार पटेल के नाम और विचारधारा का हवाला दे रहे है तो कभी राम के आस्तित्व से इनकार करने वाली सियासी जमात अब राम, कृष्ण और शिव का उदाहरण दे कर सीख दे रही है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: देश की राजनीति बदल रही है या यूं कहे कि सियासत जो न कराये वह कम है। जिन विचारधाराओं और महापुरूषों के नाम पर राजनीतिक दल अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते थे उसमे एक बड़ा बदलाव मौजूदा दौर की राजनीति में आता दिख रहा है। राम नाम की राजनीति करने वाले जहां कांग्रेसी महापुरूषों महात्मा गांधी और सरदार पटेल के नाम और विचारधारा का हवाला दे रहे है तो कभी राम के आस्तित्व से इनकार करने वाली सियासी जमात अब राम, कृष्ण और शिव का उदाहरण दे कर सीख दे रही है। इतना ही नहीं घोर आंबेडकरवादी होने का दावा करने वालो की जुबान अब सर्वसमाज की बात करते नहीं थकती तो लोहिया के परम अनुयायी अब गांधी के सत्याग्रह का अनुसरण करने की बात कर रहे है।
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राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद राजनीतिक घालमेल शुरू हो गया
वर्ष 2014 में देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद से ही यह राजनीतिक घालमेल शुरू हो गया। देश की सत्ता के तख्त पर काबिज होते ही कुशल राजनीतिज्ञ नरेंद्र मोदी को मालूम था कि धर्म के सहारे वह एक वर्ग विशेष को तो अपने पाले में ला सकते है लेकिन व्यापक स्वीकार्यता नहीं मिल पायेगी।
इसीलिए उन्होंने कांग्रेस के सबसे बडे़ प्रतिमान महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महापुरूषों को अपने सियासी कैनवास में उतारने का प्रयास शुरू कर दिया। गुजरात में सरदार पटेल की भव्य प्रतिमा बनवाकर और महात्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता अभियान चलवा कर इसे अमल भी लाया गया।
राहुल गांधी ने भी अपना जनेऊ दिखाने और गोत्र बताने में परहेज नहीं किया
इधर, फिलहाल हाशिए पर चल रही देश के दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी अपनी विचारधार को यू टर्न दे दिया। कभी राम को काल्पनिक मानने वाली और रामसेतु का सबूत मांगने वाली पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी भी राम, कृष्ण और शिव की दुहाई देने लगी है। अपने को धर्मनिरपेक्ष करार देने वाली इस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने भी अपना जनेऊ दिखाने और गोत्र बताने में परहेज नहीं किया। इतना ही नहीं राहुल ने मध्य प्रदेश में पीताम्बरा पीठ समेत कई मंदिरों में माथा टेका तो राम पथ वन गमन यात्रा का आयोजन भी किया।
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लोहिया के विचारों को आदर्श मानने वाली समाजवादी पार्टी भी अब महात्मा गांधी के राजनीतिक दर्शन को आजमाने में हिचक नहीं रही हैै। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एनपीआर का विरोध करने के लिए खांटी गांधीवादी तरीका अमल में लाते हुए नागरिकता सत्याग्रह चलाने का एलान किया है।
एनपीआर के विरोध में सपा कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में एनपीआर की खामियों के बारे में जनता को जागरूक करेंगे और साथ ही यह भी बतायेंगे कि कैसे महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 1895 में इमीग्रेशन लाॅ संशोधन बिल को ‘‘खूनी कानून‘‘ बताते हुए गांधीजी ने सत्याग्रह ‘पैसिव रेजिस्टेंस‘ का अभियान छेड़ दिया था।
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वर्ष 2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी
इतना ही नहीं बीएस-4 से चला कांशीराम का दलित राजनीति का प्रयोग तिलक तराजू और तलवार सलीके नारे के साथ सत्ता में तो आया लेकिन आधा-अधूरा। इस आधी-अधूरी और बैसाखी के सहारे मिली सत्ता को पूर्ण सत्ता में बदलने के लिए दलित हित की राजनीति करने वाली बहुजन समाज पार्टी व इसकी मुखिया मायावती ने भी सत्ता के लिए अपनी विचारधारा को बदलते हुए सर्वजन हिताय का नारा देने में समय नहीं गवांया और लाभ उठाते हुए वर्ष 2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी।
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