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गर्भस्थ भ्रूण द्वारा पिता के मार्फत मां की गिरफ्तारी पर रोक की याचिका कोर्ट ने की खारिज
प्रयागराज: 7 माह के गर्भस्थ भ्रूण(शिशु)ने अपने पिता के मार्फत अपनी माँ की गिरफ्तारी न करने की मांग में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा था कि कानून की नजर में वह भी एक व्यक्ति है। माँ की गिएफ्तारी के साथ उसकी भी बिना अपराध के गिरफ्तारी हो जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को दिग्भ्रमित मानते हुए ख़ारिज कर दिया है।
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न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने कहा भ्रूण की स्वतंत्रता को कोई खतरा नहीं है ।जन्म लेते ही उसकी स्वतंत्रता पर कोई रोक नहीं होगी। बेबी सारस्वत (अजन्मे)के नाम से याचिका दाखिल की गयी थी । 28 हफ्ते से शिशु मां के गर्भ में है। मथुरा के फराह थाने में दर्ज प्राथमिकी को याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी।
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माँ ज्योति सारस्वत पर धोखाधड़ी का आरोप है। माँ ने भी याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी । उसके बाद भ्रूण की तरफ से गिरफ्तारी पर रोकने लगाने का नायाब तरीका निकाला गया और दूसरी याचिका दायर की गई ।कोर्ट ने माँ के गर्भस्थ शिशु के नाम से पिता के तर्क को सही नहीं ठहराया।
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याची का कहना था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 11 के तहत गर्भ भी एक व्यक्ति है । माँ की गिरफ्तारी के साथ शिशु भी गिरफ्तार हो जाएंगा । इस प्रकार भ्रूण के अधिकारों का हनन होगा । कोर्ट ने कहा कि गर्भस्थ शिशु की स्वतंत्रता को कोई खतरा नहीं है ।कोर्ट ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी ।
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