दिल्ली में कांटे की जंग, चुनाव से निकलेगा बड़ा राजनीतिक संदेश

देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। माना जा रहा है कि इस चुनाव के नतीजों से पूरे देश में एक बड़ा राजनीतिक संदेश जाएगा। झारखंड में भाजपा की हार के बाद यहां हो रहे चुनाव के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जाएंगे।

Dharmendra kumar
Published on: 6 Feb 2020 10:34 PM IST
दिल्ली में कांटे की जंग, चुनाव से निकलेगा बड़ा राजनीतिक संदेश
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मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। माना जा रहा है कि इस चुनाव के नतीजों से पूरे देश में एक बड़ा राजनीतिक संदेश जाएगा। झारखंड में भाजपा की हार के बाद यहां हो रहे चुनाव के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जाएंगे। इसी कारण भाजपा इस बार सतर्क है। दिल्ली में वर्ष 2017 का नगर निगम चुनाव बंपर बहुमत से तथा लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटों पर कब्जा करने के बाद भाजपा ने दिल्ली की सत्ता हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

भाजपा ने पीएम नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और भाजपा के 200 से ज्यादा सांसदों को चुनाव मैदान में उतार दिया है। दूसरी ओर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी भी अपने पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने के लिए भाजपा को कड़ी चुनौती दे रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस मजबूती से चुनाव मैदान में नहीं दिख रही है, लेकिन वह कई सीटों पर आप के गणित को गड़बड़ा सकती है।

सुरक्षित विधानसभा पर भाजपा की निगाहें

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा दर्जन भर सुरक्षित विधानसभा सीटों पर जमकर मेहनत कर रही है। भाजपा लोकसभा चुनाव 2019 से पहले से ही इन सीटों पर अपना फोकस बनाया हुआ था और लोकसभा चुनाव में उसे इसका फायदा भी मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की सातों सीटों पर जीत हासिल करने में इन सुरक्षित विधानसभा सीटों का भी खासा योगदान रहा। हालांकि इन दर्जन भर सुरक्षित विधानसभा सीटों का चुनावी इतिहास भाजपा के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा है।

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दिल्ली में पहले 13 विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित थे, लेकिन परिसीमन के बाद यह कम होकर 12 ही रह गये। वर्ष 1993 में दिल्ली विधानसभा के पहले चुनाव में मंदिर आंदोलन की लहर पर सवार मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा ने इन 13 सुरक्षित विधानसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल की थी और कुल 49 सीटें जीत कर बहुमत हासिल किया था। 1993 के बाद भाजपा सुरक्षित सीटों पर दो से ज्यादा प्रत्याशी कभी नहीं जिता पाई है। सुरक्षित सूची में केवल करोलबाग विधानसभा ही ऐसी सीट रही है, जहां से तीन बार भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। इसके अलावा कोई अन्य ऐसी सीट नहीं है, जहां भाजपा प्रत्याशी लगातार दूसरी बार जीता हो।

2013 से कमजोर हुई कांग्रेस की पकड़

दिल्ली के इन सुरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की पैठ अंदर तक रही है और वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव से पहले तक सुरक्षित विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का पूरा प्रभाव रहा। 2013 विधानसभा चुनाव के बाद इन सीटों पर कांग्रेस की पकड़ भी कमजोर हुई। तब कांग्रेस को केवल सुल्तानपुर विधानसभा सीट पर ही जीत मिल पाई थी और दिल्ली में उसे केवल आठ सीटें ही हासिल हुई थीं। वर्ष 2013 में भाजपा को 32 सीटें हासिल हुई थीं और उसने इन 12 सुरक्षित विधानसभा सीटों में से 09 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कुल 28 सीटें हासिल करके विधानसभा में अपनी जोरदार आमद दर्ज कराई थी। इसके बाद वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने इन सभी 12 सुरक्षित विधानसभा सीटों पर कब्जा कर साफ कर दिया था कि सुरक्षित विधानसभा सीटों पर उसका जनाधार सबसे ज्यादा मजबूत है।

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दिल्ली विधानसभा में त्रिलोकपुरी, सीमापुरी, पटेल नगर, मंगोलपुरी, मादीपुर, कोंडली, करोलबाग, देवली, अंबेडकरनगर, गोकलपुर, बवाना, सुल्तानपुर माजरा कुल 12 सुरक्षित सीटें हैं। भाजपा रणनीतिकारों का मानना है कि दिल्ली की इन सुरक्षित विधानसभा सीटों को पार्टी ने कभी गंभीरता से नहीं लिया और मजबूत प्रत्याशी नहीं उतारे। पार्टी ने मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी, करोलबाग, पटेलनगर समेत सभी सुरक्षित सीटों पर पूरा फोकस बना रखा है और हर तरह से केजरीवाल के इस मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी में है।

शाहीनबाग से ध्रुवीकरण की आस

केजरीवाल के मजबूत गढ़ में सेंधमारी के लिए भाजपा सभी दांवपेंच आजमाने में लगी है। सभी दलों के नेता अपनी सभाओं में शाहीनबाग का मुद्दा उठा रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी व एनपीआर के विरोध में दिल्ली के शाहीनबाग इलाके में चल रहा धरना दिल्ली चुनाव में एक अहम मुद्दा बना हुआ है। पूरा चुनाव ही शाहीनबाग मुद्दे के इर्दगिर्द लड़ा जा रहा है। हालात यह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह अपनी सभी चुनावी सभाओं में इसका जिक्र करना नहीं भूले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी चुनावी सभा में इसे संयोग नहीं बल्कि प्रयोग करार दिया। जाहिर है कि भाजपा शाहीनबाग के बहाने मतों के ध्रुवीकरण पर निगाहें रखे हुए है, जो दिल्ली चुनाव में उसके लिए मुफीद साबित हो सकता है। हालांकि केजरीवाल ने पूरे चुनाव प्रचार में शाहीनबाग पर चुप्पी ही बना रखी है। राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि दिल्ली चुनाव में शाहीनबाग अहम रोल अदा करेगा।

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ट्रस्ट की टाइमिंग पर उठे सवाल

अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के एलान को चुनावों में हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए बड़ा हथियार माना जा रहा हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से महज तीन दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में श्रीराम मंदिर ट्रस्ट बनाने के एलान को विपक्षी दल आप व कांग्रेस दिल्ली चुनाव से जोडक़र देख रहे हैं। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के एलान की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस के पीएल पुनिया ने कहा कि ट्रस्ट का एलान करने में सरकार को तीन महीने क्यों लगे और इसे दिल्ली चुनाव से ठीक पहले क्यों किया गया।

आप भी नहीं है पीछे

दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए अन्ना आंदोलन के बाद उभरे केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2013 के चुनाव से दिल्ली विधानसभा में जो दस्तक दी तो अभी भी मजबूती से डटी हुई है। वर्ष 2013 में 28 सीटों पर जीत हासिल करने वाली आप ने दो साल बाद ही वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा कर लिया था। इस चुनाव में भाजपा को केवल तीन सीटों पर ही सफलता मिली जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका।

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दरअसल, वर्ष 2013 में बतौर मुख्यमंत्री अपने पहले ही कार्यकाल में केजरीवाल ने दिल्ली वासियों की नब्ज पकड़ ली और दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को लेकर घोषणाएं कीं और उन्हें अमल में भी लाए। इसी का नतीजा था कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के सामने मोदी मैजिक भी फीका पड़ गया। हालांकि इसके बाद इसके बाद हुए दिल्ली निकाय चुनाव में केजरीवाल को करारी हार का सामना करना पड़ा और 272 सीटों में से भाजपा 181 निकाय सीटें जीतने में कामयाब रही। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव 2019 में भी भाजपा ने आप को पटखनी देते हुए सातों लोकसभा सीटें जीत ली।

2015 में आप ने दिखाई थी ताकत

वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 54.34 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को 9.65 प्रतिशत वोट जबकि भाजपा को 32.19 प्रतिशत मत मिले थे। इससे पहले वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी को 29 प्रतिशत वोट मिला था और कांग्रेस को 24.55 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था। जबकि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को 33.09 प्रतिशत मत मिला था। दरअसल, दिल्ली में 2015 की मिली बंपर जीत के बाद केजरीवाल ने स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति में लाने की कोशिश की और राष्ट्रीय मुद्दों पर जमकर बयानबाजी करने लगे, लेकिन निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के बाद केजरीवाल ने राष्ट्रीय मुद्दों पर चुप्पी साध ली तथा केवल दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ही बयान देते दिखे।

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अच्छे काम पर वोट मांगा

यही कारण है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली के लोगों को लगता है कि हमने अच्छा काम किया है तो हमें वोट दें, अगर हमने काम नहीं किया है तो हमारे पक्ष में बिल्कुल मतदान न करें। अपने प्रचार के दौरान केजरीवाल जहां भी जा रहे है वहां अपनी सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए कामों के बारे में बता रहे है। इस दौरान वह यह भी बताना नहीं भूलते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं।

इस बार भी स्थानीय मुद्दों पर जोर

वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित केजरीवाल ने इस बार भी दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को ही तरजीह दी है। विधानसभा चुनाव 2020 के लिए तैयार अपने घोषणा पत्र में चार नए वादे शामिल किए हैं। इनमें सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे वाला बाजार शुरू करने, नए सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति, घर निर्माण करने वालों के लिए नौकरी पैदा करने और ओबीसी सर्टीफिकेट पाने की प्रक्रिया को आसान बनाना शामिल है। आप के घोषणापत्र के 28 वादों में 13 ऐसे हैं जो 2015 के घोषणापत्र में भी शामिल रहे और विभिन्न स्तरों पर किसी न किसी वजह से रोके गए थे, जबकि 11 वादे पिछले घोषणापत्र में शामिल नहीं थे। आम आदमी पार्टी की सरकार के एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव राशन को दरवाजे तक पहुंचाना, जिस पर आप सरकार और केंद्र में विवाद है, को भी घोषणापत्र में जगह मिली है। आप का कहना है कि योजना बना ली गई है और सरकार बनने के एक साल के अंदर इसे लागू किया जाएगा।

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चुनाव के कुछ अहम बिंदु

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में कुल 1.46 करोड़ मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी के मुताबिक फाइनल वोटर लिस्ट में कुल 1,46,92,136 मतदाता हैं। इसमें 80.55 लाख पुरुष वोटर हैं और 66.35 लाख महिला वोटर हैं। चुनाव को संपन्न कराने में 90 हजार कर्मचारियों की जरूरत है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 13,750 पोलिंग बूथ पर वोट डाले जाएंगे। विधानसभा चुनाव 2020 में खड़े कुल 672 प्रत्याशियों में से 133 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। आप के 51 फीसदी उम्मीदवार दागी हैं, भाजपा के 17, कांग्रेस के 13, बसपा के 10 और एनसीपी के दो उम्मीदवार दागी हैं।

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