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भाजपा को धर्मसंकट से बचा पाएगी धर्मंसभा
अयोध्या में एक बार फिर वर्ष 1989 और 1991 की यादें ताजा हो गई हैं। वहां के लोग आशंका और अनहोनी से इस कदर डरे हुए हैं कि आज शाम फैजाबाद की चौक मंडी में लोगों का हुजूम सामान खरीदने के लिए निकल पड़ा।
लखनऊ: अयोध्या में एक बार फिर वर्ष 1989 और 1991 की यादें ताजा हो गई हैं। वहां के लोग आशंका और अनहोनी से इस कदर डरे हुए हैं कि आज शाम फैजाबाद की चौक मंडी में लोगों का हुजूम सामान खरीदने के लिए निकल पड़ा। लोग आपस में गुफ्तगू कर रहे थे कि फिर एक बार फिर बाहर के लोग आए हैं, अयोध्या में। जब जब बाहर के लोग आये तब तब अयोध्या के लोगों का जीवन मुश्किल कर के चले गए। अल्पसंख्यक ही नहीं बहुसंख्यक भी डरे हैं। हालाँकि उनके डर की वजह कुछ और है।
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1992 में शिव सैनिक अयोध्या आए थे। इस बार संघ और विहिप ने देश के चार शहरों- अयोध्या, नागपुर टाटानगर और बंगलौर में 25 तारीख को ही धर्मंसभा का ऐलान किया, तब शिवसेना ने भी अयोध्या कूच की मुनादी पीट दी। हालाँकि शिवसेना के सांसद संजय राउत पिछले तीन चार महीने से अयोध्या आ रहे हैं। एक हफ्ते से तो कैंप ही कर रहे हैं। उनके कैंप का असर इससे समझा जा सकता है कि राम मंदिर न्यास से जुड़े संत न्रत्य गोपाल दास ने पहले उनके बुलावे को ठुकरा दिया। लेकिन ठीक एक दिन बाद वो संजय राउत से मिलने पहुंच गए। शिवसेना ने जनसंवाद कार्यक्रम रखा था। लेकिन प्रशासन से अनुमति न मिलने से इसे रद्द करना पड़ा। हालाँकि शिवसेना की तैयारी गुलाब बाड़ी में जनसंवाद कार्यक्रम करने की है। राम मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा के अनुसांगिक संगठनों आरएसएस, बजरंग दल व विहिप के साथ ही साथ शिवसेना ने जिस तरह इस एजेंडे को अपने हाथ में लिया है, उससे यह तो साफ़ तौर पर दिख रहा है कि राम मंदिर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाना अब केंद्र सरकार की मज़बूरी बन रही है।
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तक़रीबन दो ट्रेनों से अयोध्या पहुंचे शिव सैनिकों की उपस्थित धर्मसभा की मार्फ़त भाजपा को धर्म संकट से उबार पाएगी, इस प्रश्न का उत्तर 25 तारीख को मिलेगा। हालंकि संख्या बल के लिहाज से आरएसएस की उपस्थित ज्यादा होगी। ऐसे में अपनी उपस्थित दर्ज कराने में शिवसैनिकों के जो कार्यक्रम घोषित किये गए हैं उससे इतर कुछ करना होगा।
उद्धव ठाकरे लक्षमण किले के पास संतों का सम्मान करेंगे। शाम को सरयू आरती करेंगे। सरयू में स्नान करेंगे। राम लला के दर्शन करेंगे और प्रेस कान्फ्रेंस करेंगे। लेकिन जिस तरह अयोध्या और फैजाबाद को शिवसेना ने बैनर और पोस्टर से पाटा है और उसपर ये नारा लिखा है कि- हर हिंदू की यही पुकार पहले मंदिर फिर सरकार। यह बताता है कि राम मंदिर निर्माण पर भाजपा की ख़ामोशी और सरकार के 4 साल के कार्यकाल के दौरान मंदिर निर्माण पर मुंह ना खोलना और पीएम नरेंद्र मोदी का अयोध्या ना जाना शिवसेना का एजेंडा होगा।
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भाजपा ने भी रणनीतिक तौर पर इस आयोजन को व्यापक स्वरुप दिया है। ताकि वो शिवसेना की रणनीति को पलीता लगा सके। धर्मसभा का आयोजन अयोध्या, नागपुर, टाटानगर और बैंगलोर में किया गया है। विहिप के उपाध्यक्ष चंपत राय और आरएसएस के अनिल मिश्रा तो आयोजन की कमान संभाले हुए हैं। तक़रीबन 1 लाख लोगों के लंच पैकेट तैयार कर लिए गए हैं। भक्त माल की बगिया में धर्मं सभा की अध्यक्षता रामभद्राचार्य, जबकि नागपुर में ऋतंभरा और शंकराचार्य, टाटा नगर में रामविलास वेदांती के हाथ में संचालन होगा। जबकि बैंगलोर में चिन्मयानन्द को ये जिम्म्देदारी दी गई है। चिन्मयानन्द और वेदांती भाजपा के सांसद रहे हैं। इस लिहाज से भाजपा ये संदेश देना चाहती है कि राम मंदिर निर्माण को लेकर उसके अनुषंगी संगठनों की प्रतिबद्धता ज्यादा गंभीर और पैन इंडिया है।
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राम मंदिर एक बार फिर सियासत का शिकार हो गया है। सूत्रों की माने तो शिवसेना ने अपने लिए उत्तर प्रदेश में जगह तलाशने की कवायद शुरू कर दी है। शिवसेना के कुछ नेताओं ने बीजेपी के सांसद और बजरंग दल के नेता रहे विनय कटियार से संपर्क भी किया। हालाँकि उन्होंने शिवसेना के कार्यक्रम में शिरकत करने से इंकार कर दिया। धर्मसभा में सिर्फ संत और महंत मंच पर होंगे। बाकी सांसद और विधायक सब रामभक्त की तरह दिखेंगे। कोशिश जनता को भी राम भक्त बनाने की है।
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