ट्रेनी महिला सिपाहियों की बर्खास्तगी रद्द, यह था आरोप

कोर्ट ने इसी आधार पर प्रयागराज के एसएसपी द्वारा ट्रेनिंग के दौरान वीडियो बनाने की अफवाह को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रही चार महिला सिपाही ट्रेनी की 26 जून 19 को पारित बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है। यह निर्णय जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र ने ट्रेनी बर्खास्त सिपाहियों कुमारी अनामिका सिंह व तीन अन्य सिपाहियों की याचिका पर दिया है।

SK Gautam
Published on: 16 Nov 2019 10:09 PM IST
ट्रेनी महिला सिपाहियों की बर्खास्तगी रद्द, यह था आरोप
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इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि ट्रेनिंग कर रहे कान्सटेबिलों की बर्खास्तगी से पूर्व उन्हें भी विभागीय कार्रवाई के लिए विहित यूपी पुलिस आफिसर्स आफ सबार्डिनेट रैंक (पनीस्मेन्ट एन्ड अपील) रूल्स 1991 के नियम 14(1) की प्रक्रिया पूरी करना जरूरी होगा। केवल तथ्यात्मक जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर स्पष्टीकरण लेकर सिपाहियों की बर्खास्तगी गलत है।

कोर्ट ने इसी आधार पर प्रयागराज के एसएसपी द्वारा ट्रेनिंग के दौरान वीडियो बनाने की अफवाह को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रही चार महिला सिपाही ट्रेनी की 26 जून 19 को पारित बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है। यह निर्णय जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र ने ट्रेनी बर्खास्त सिपाहियों कुमारी अनामिका सिंह व तीन अन्य सिपाहियों की याचिका पर दिया है।

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बर्खास्तगी आदेश रद्द कर कोर्ट ने इन याची सिपाहियों को निर्देश दिया है कि वे अपने कार्य के लिए बिना शर्त क्षमा मांगे और अधिकारी के समक्ष इस आशय का अन्डरटेकिग दे कि वे भविष्य में ऐसे किसी भी कार्य में शामिल न होगें। अधिकारी उनके इस अर्जी पर विचार कर उनकी आगे की शेष ट्रेनिंग को लेकर आदेश पारित करेगा। याची महिला सिपाहियों को 5 जून 2019 को वाराणसी में ट्रेनिंग के दौरान वीडियो बनाने की अफवाह को लेकर धरना प्रदर्शन करने के आरोप में एसएसपी ने बर्खास्त कर दिया था।

बर्खास्तगी आदेश तीन सदस्यीय समिति की 8 जून की रिपोर्ट के आधार पर सभी याची सिपाहियों से स्पष्टीकरण लेने के बाद पारित किया गया था। रिपोर्ट 42 पेज का था तथा 50 लोगों का बयान लेकर तैयार किया गया था। यह सही था कि रिपोर्ट के अलावा और कोई जांच नहीं कराई गयी थी।

महिला सिपाहियों की तरफ से सीनियर अधिवक्ता विजय गौतम का तर्क था कि इन महिला सिपाहियों पर अनुशासनहीनता व दुराचरण करने का आरोप है। परन्तु इन्हें बिना विभागीय कार्रवाई पूरी किए सेवा से हटा दिया गया है, जो गैरकानूनी है।

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अधिवक्ता का कहना था कि सिपाहियों को सेवा से बर्खास्तगी की जो कानूनी प्रकिया नियमावली 1991 के नियम 14(1) में निहित है, उसका पालन नहीं किया गया। तर्क था कि नियमावली 2015 के जिस नियम 20(4) के तहत बर्खास्तगी की कार्रवाई की गयी है, वह अनुशासनहीनता के केस में लागू नहीं होता। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नियम 20(4) जिसके तहत बर्खास्तगी की गयी है वह ट्रेनिंग के दौरान सिपाहियों की कार्य सम्पादन क्षमता को आकलन करने से सम्बंधित है। सिपाही के दुराचरण से सम्बंधित नहीं है। ऐसे में नियम 20(4) के तहत बर्खास्तगी की कार्रवाई करना गलत था।

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