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HC का निर्देश: सुन्नी वक्फ बोर्ड के कामकाज में सरकार न दे दखल, जानें किस मुद्दे पर कोर्ट ने ऐसा कहा
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह चुनाव आयोग के सर्कुलर के आधार पर सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड के कामकाज में दखल न दे। राज्य सरकार ने एक शासनादेश जारी करते हुए वक्फ बोर्ड के ऐसे सदस्यों अथवा पदाधिकारियों के काम करने पर रोक लगा दी थी जो सांसद या विधायक हों।
यह आदेश न्यायमूर्ति एपी साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की खंडपीठ ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर अहमद फारुकी की याचिका पर दिया।
क्या कहा गया याचिका में?
याचिका में 23 जनवरी 2017 को राज्य सरकार ने चुनाव आयोग के 14 जनवरी 2017 के सर्कुलर का हवाला देते हुए बोर्ड के सांसद-विधायक सदस्यों अथवा पदाधिकारियों के काम करने पर रोक लगा दी। याची की ओर से दलील दी गई कि इस प्रकार का आदेश बोर्ड को नहीं दिया जा सकता। इससे वैधानिक कामकाज प्रभावित होता हो।
याचिका में ये भी कहा
बोर्ड सभी वक्फों की निगरानी और व्यवस्थापन का काम करता है। इसके लिए कई बार विवादित मामलों में सुनवाई करते हुए निर्णय लेना होता है। लिहाजा यदि बोर्ड के सदस्यों को इसका वैधानिक कार्य करने से ही रोक दिया जाएगा तो यह वक्फ एक्ट- 1995 का उल्लंघन होगा।
क्या कहा गया है सर्कुलर में?
कोर्ट ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद अपने आदेश में कहा कि 'एक्ट के मुताबिक बोर्ड में राज्य के मुस्लिम विधायक और सांसद भी शामिल किए जाते हैं। ऐसे सांसद और विधायक जो मंत्री या मुख्यमंत्री न हों। जबकि चुनाव आयोग का सर्कुलर भी मंत्री, मुख्यमंत्री और राजनीतिक तौर पर नियुक्त किए गए पदाधिकारियों के रोक का निर्देश देता है ताकि चुनावों को प्रभावित करने की संभावना न रहे।'
राजनीतिक तौर पर नहीं होती नियुक्ति
कोर्ट ने कहा कि बोर्ड के सांसद-विधायक सदस्य वक्फ एक्ट की धारा- 14 के तहत चुने जाते हैं। लिहाजा उन्हें राजनीतिक तौर पर नियुक्त नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य सरकार चुनाव आयोग के सर्कुलर के आधार पर बोर्ड के सांसद-विधायक सदस्यों को बोर्ड के प्रति उनके वैधानिक दायित्व को निर्वाह करने से नहीं रोक सकती।
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