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डेंगू रोकने में नाकाम शासन-प्रशासन को HC की खरी-खरी, कहा- तुमसे ना हो पाएगा
इलाहांबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी में डेंगू महामारी को नियंत्रित करने में राज्य सरकार और ब्यूरोक्रेसी को नकारा और असफल करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि अब वह स्वयं विशेषज्ञों की एक कमेटी। जो मौसम बदलने के साथ ही जानलेवा डेंगू महामारी को समय रहते नियंत्रित करने और मरीजों के समुचित चिकित्सा के बावत कदम उठाएगी। डेंगू की महामारी को नियंत्रित करने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग करते हुए दायर कई जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए जस्टिस ए पी साही और जस्टिस डी के उपाध्याय की बेंच ने करीब दो घंटे तक प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य , सीएमओ और अन्य अफसरों को फटकार लगाई।
लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी में डेंगू महामारी को नियंत्रित करने में राज्य सरकार और ब्यूरोक्रेसी को नकारा और असफल करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि अब वह स्वयं विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएगी। जो मौसम बदलने के साथ ही जानलेवा डेंगू महामारी को समय रहते नियंत्रित करने और मरीजों के समुचित चिकित्सा के बावत कदम उठाएगी।
डेंगू की महामारी को नियंत्रित करने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग करते हुए दायर कई जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए जस्टिस ए पी साही और जस्टिस डी के उपाध्याय की बेंच ने करीब दो घंटे तक प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य , सीएमओ और अन्य अफसरों को फटकार लगाई।
और क्या कहा कोर्ट ने ?
कोर्ट ने सरकार के आला अफसरों को 25 अक्टूबर को फिर से तलब कर उन्हें पूर्व आदेश के अनुपालन में सटीक सूचनाएं देने और प्रस्तावित कमेटी के बनाने में अपने सुझाव देने को कहा है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस ए पी साही और जस्टिस डी के उपाध्याय की बेंच ने प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अरूण कुमार सिन्हा और सचिव नगर विकास एस पी सिंह सहित सीएमओ नगर निगम, एलडीए और आवास विकास के हलफनामें को महज कागजी खानापूर्ति बताया।
जजों ने कोर्ट में मौजूद अफसरों को फटकार लगाते हुए कहा कि बेहतर होता कि कागजी घोड़े दौड़ाने के बजाए हकीकत में कोई मैकेनिज्म इजाद करते। जिससे हर साल डेंगू के प्रकोप से तमाम निर्दोष जानें ना जाती।
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सरकारी हलफनामें से संतुष्ट नहीं है कोर्ट
-कोर्ट ने कहा कि हम सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए हलफनामों से बिलकुल भी संतुष्ट नही हैं।
-बेंच ने कहा कि अदालती आदेश पर दफतरशाही ने राजधानी में डेगू की बीमारी से मरे मरीजों की संख्या एक से बढ़ाकर नौ बता दी, लेकिन क्या यह संख्या ठीक है।
-कोर्ट ने कहा कि सरकारी आंकडे केवल सरकारी अस्पतालों के ही हैं।
-इसमें प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की मौत का कोई ब्यौरा नहीं है।
केद्र सरकार के फंड का इस्तेमाल ना होने का क्यों नहीं बताया कारण
-कोर्ट ने कहा कि प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने अपने हलफनामें में केद्र सरकार के फंड का पूरा इस्तेमाल ना होने का कारण क्यों नही बताया।
-जबकि 7 अक्टूबर के आदेश में स्पष्ट था कि केंद्र के फंड का पूरा इस्तेमाल नहीं होने के कारण बताए जाएं।
-कोर्ट ने उन्हें चेताया कि क्या मांगी गई सूचना ना देना अदालत की अवमानना नहीं है।
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राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान
बेंच ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि समय रहते आखिर ऐसा मैकेनिज्म क्यों नहीं बनाया गया, जिससे सभी अस्पतालों से डेगू की बीमारी से मरे मरीजो का ब्यौरा स्वतः एक जगह संकलित हो जाए।
बेंच ने राज्य सरकार से सवाल किया कि सूबे में पीजीआई सहित कई मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन क्या सरकार ने कभी डेंगू बुखार से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए कोई ट्रीटमेंट प्रोटोकाल जारी करने की कोशिश की।
कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता को भी फटकारा
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और इसके अफसरों का कृत्य निंदनीय है। कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल को भी खरी-खरी सुनाई। कोर्ट ने गोदियाल के बार बार यह कहने कि सरकार काम कर रही है और साफ सफाई से लेकर हर उचित कदम उठाए जा रहे हैं पर सवाल किया कि क्या अब आपको सैटेलाइट से तस्वीरें मंगाकर दिखानी होंगी कि शहर में जगह जगह गंदगी का अंबार लगा है। कोर्ट ने नगर निगम द्वारा कूड़ा उठाने के लिए लगाई गई प्राइवेट कम्पनी को भी फटकार लगाई।
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