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हाईकोर्ट बार चुनाव : 28 पदों पर कुल 171 प्रत्याशियों ने किया नामांकन
प्रमुख सचिव बतायें, सहायक अध्यापकों को प्रशिक्षण की छूट होगी कि नहीं ?
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन कार्यकारिणी चुनाव में 28 पदों पर 171 प्रत्याशियों ने नामांकन पर्चा भरा। हालांकि 327 नामांकन पत्र जारी किये गये।
27 से 29 नवम्बर तक चले नामांकन में अध्यक्ष पद हेतु छह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष छह, उपाध्यक्ष के पांच पदों पर 42, महासचिव पर 9, संयुक्त सचिव प्रशासन 12, संयुक्त सचिव पुस्तकालय 7, संयुक्त सचिव प्रेस 12, संयुक्त सचिव महिला 3, कोषाध्यक्ष 4 एवं 15 कार्यकारिणी सदस्य पद पर 70 प्रत्याशियों ने नामांकन फार्म भरा। तीस नवंबर को नाम वापसी, एक दिसंबर को सत्यापन तथा चार दिसंबर को प्रत्याशियों की सूची का प्रकाशन एवं 14 दिसम्बर को मतदान होगा।
चुनाव अधिकारी सुरेश चन्द्र द्विवेदी ने बताया कि मुख्य चुनाव अधिकारी डी.पी सिंह व अन्तरिम कमेटी के सदस्य सतीश त्रिवेदी की देखरेख में शांतिपूर्ण ढंग से नामांकन सम्पन्न हुआ। चुनाव अधिकारी ने सभी प्रत्याशियों से कोर्ट परिसर में प्रचार सामग्री, स्टिकर, पोस्टर आदि न लगाने की अपील की और कहा है कि प्रत्याशी ऐसा आचरण न करे जिससे न्यायिक कार्य में व्यवधान उत्पन्न हो।
उन्होंने कहा है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और आचार संहिता लागू हो गयी है। प्रत्याशियों से अपेक्षा की गयी है कि न्यायालय परिसर के बाद गेट संख्या पांच से अम्बेडकर चौराहे तक चुनाव सामग्री न लगाये। जिनके पोस्टर बैनर होर्डिंग लगी हैं, वे उसे अविलम्ब हटा ले। अन्यथा वीडियो रिकार्डिंग कराकर पूर्णपीठ के समक्ष पेश किया जायेगा। हालांकि तीस नवम्बर को घनश्याम दूबे की जनहित याचिका की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति तरूण अग्रवाल, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पूर्णपीठ कर रही है।
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दैनिक कर्मियों को नियमित समायोजित होने का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि लोक पद खुली प्रतियोगिता से भरे जाने चाहिए। ऐसे कार्यरत कर्मियों को नियमित कर सीधी भर्ती पर वरीयता नहीं दी जा सकती, जिन्हें बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये नियुक्त किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के खगेश कुमार केस के फैसले के तहत रजिस्टेªशन क्लर्क पद पर कार्यरत दैनिक कर्मियों को नियमित किये जाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी केशरवानी ने अविनाश चन्द्र की याचिका पर दिया है। याची 1988 में दैनिक कर्मी के रूप में नियुक्त हुआ था। अवधि पूरी होने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर उस पर पारित अन्तरिम आदेश से कार्यरत रहा। दैनिक कर्मियों के नियमितीकरण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। आई.जी रजिस्ट्रेशन ने बाद में बनी नियमावली का गलत प्रयोग करते हुए सैकड़ों की सेवा नियमित कर दी थी। ऐसा करते समय नियमों की अनदेखी की गयी।
सुप्रीम कोर्ट ने खगेश कुमार केस में कहा कि जो दैनिक कर्मी 29 जून 91 व 9 जुलाई 98 को कार्यरत नहीं थे, उन्हें नियमित होने का अधिकार नहीं है। इस तिथि के बीच नियुक्त कर्मियों को ही नियमित करने का नियम बना। किन्तु नियमित करने में मनमानी की गयी। कोर्ट ने कहा कि प्रतियोगिता के बगैर नियुक्त कर्मियों को समायोजित या नियमित करने से योग्य व्यक्तियों के अवसर में कमी आयेगी। दैनिक कर्मियों की पद पर बने रहने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। क्योंकि नियुक्ति प्रक्रिया अपनाये बगैर इनकी नियुक्ति की गयी थी। कोर्ट ने कहा कि टर्म समाप्त होने पर भी पद पर कार्य करते रहने से भी किसी को नियमित होने का अधिकार नहीं मिल जाता। उन्हें स्थायी सेवा में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
विचाराधीन वादों की सुनवाई में अधिनियम के उपबंध लागू
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि उ.प्र राजस्व संहिता 2006 लागू होने से पहले विचाराधीन वादों की सुनवाई उ.प्र जमींदारी विनाश अधिनियम के उपबन्ध लागू होंगे।
राजस्व संहिता 11 फरवरी 2016 को लागू हुई है। प्रश्नगत वाद 2010 में दाखिल हुआ था। याची ने आपत्ति की कि नया कानून आने के बाद भूमि बंटवारे को लेकर पुराने कानून के तहत दाखिल मुकदमा पोषणीय नहीं है। इस अर्जी को एसडीएम शामली ने खारिज कर दिया। पुनरीक्षण याचिका भी खारिज हो गयी। जिस पर यह याचिका दाखिल की गयी थी।
न्यायमूर्ति एस.पी केशरवानी ने प्रताप सिंह की याचिका पर दिया है। एसडीएम की अदालत में राज सिंह बनाम पान सिंह केस दाखिल हुआ, जिसमें परिवार में भूमि बंटवारे की प्रार्थना की गयी। कोर्ट ने कहा कि राजस्व संहिता 2006 की धारा 231 के तहत स्पष्ट है कि कोड लागू होने से पहले दाखिल मुकदमे पुराने कानून से तय होंगे। कोर्ट ने कहा कि कोड में ही स्पष्ट है तो आपत्ति कैसे पोषणीय है। कोर्ट ने एसडीएम के आदेश को सही माना है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है।
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