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सजा होने के बाद आरोपी को ''जेजे बोर्ड'' ने किशोर करार देकर रिहा कराया
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक आपराधिक मामले में चल रही सुनवाई के दौरान जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजे बोर्ड) द्वारा दिए गए एक आदेश पर विवाद खड़ा हो गया है। जेजे बोर्ड ने बलात्कार और हत्या में दोषी करार दिए गए और उम्र कैद की सजा भुगत रहे, एक अभियुक्त को जुवेनाइल करार देते हुए, रिहा करने का आदेश दे दिया। अभियुक्त की अपील पर हाईकोर्ट में सुनवाई भी चल रही है। कोर्ट ने मामले को गम्भीर पाते हुए, सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने सम्बंधित एडीजे, प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट, जेजे बोर्ड लखनऊ और जेल सुपरिंटेंडेंट, लखनऊ को शपथ पत्र दाखिल कर ने का आदेश दिया है। मामले की अग्रिम सुनवाई 5 जुलाई को होगी।
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यह आदेश जस्टिस अनिल कुमार और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने अभियुक्त की ओर से दाखिल अपील पर पारित किया। अपील पर सुनवाई के दौरान सामने आया कि सत्र न्यायालय में सुनवाई के दौरान ही 31 जुलाई 2013 को अभियुक्त की ओर से खुद किशोर होने का दावा करते हुए, प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया था। जिस पर 17 जनवरी 2018 को आदेश देते हुए, जेजे बोर्ड ने अभियुक्त को किशोर करार दिया, साथ ही उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश भी जारी कर दिया। जबकि अभियुक्त को सत्र न्यायालय द्वारा 19 मार्च 2014 को दोषसिद्ध करार देते हुए, आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी। इस पर कोर्ट ने जिला व सत्र न्यायाधीश, लखनऊ को जांच कर पता लगाने को कहा कि पत्र पर किस एडीजे के हस्ताक्षर हैं।
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कोर्ट के आदेश के अनुपालन में एडीजे अनुपमा गोपाल निगम सोमवार को कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुईं। उन्होंने बताया कि उनके समक्ष ऐसा कोई प्रार्थना पत्र नहीं प्रस्तुत किया गया था और न ही आदेश पर उनके हस्ताक्षर हैं। वहीं जेजे बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट अचल प्रताप सिंह ने कहा कि उन्हें सत्र न्यायालय में ट्रायल पूरा होने की जानकारी नहीं थी। जेल सुपरिंटेंडेंट रुद्रेश नारायण पांडेय ने सफाई दी कि उन्होंने मजिस्ट्रेट के आदेश पर अभियुक्त को रिहा किया। कोर्ट ने उनसे पूछा कि सत्र न्यायालय का आदेश बड़ा होता है अथवा मजिस्ट्रेट का, उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। कोर्ट ने प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट और जेल सुपरिंटेंडेंट के आचरण को न्यायालय के कार्यसीमा में हस्तक्षेप करार दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है। कार्रवाई से पहले सम्बंधित अधिकारी व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर, अपना पक्ष स्पष्ट करें। कोर्ट ने प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट और जेल सुपरिंटेंडेंट को अग्रिम सुनवाई पर पुनः उपस्थित रहने का आदेश दिया है। वहीं एडीजे को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्रदान की है, हालांकि उन्हें भी शपथ पत्र दाखिल करना है।
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मोहनलालगंज के देहवा गांव में रहने वाली 12 वर्षीय बच्ची 4 सितंबर 2012 को लापता हो गई थी। 5 सितंबर को उसका शव एक खेत में पड़ा मिला था। पुलिस ने छानबीन कर पुतई और वर्तमान में किशोर करार दिए गए अभियुक्त को इस मामले में आरोपित बनाते हुए चार्जशीट दाखिल की। अपर सत्र न्यायालय, लखनऊ ने दोनों को दोषी करार देते हुए 19 मार्च2014 को एक अभियुक्त को उम्रकैद और पुतई को फांसी की सजा सुनाई थी।
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