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हाईकोर्ट:खर्च का इस्टीमेट बनवाने का बोझ मरीज और तीमारदार पर न डालें
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कैंसर के एक मरीज की इलाज के आभाव में मौत के मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि गरीबों के इलाज के लिए आर्थिक मदद देने की व्यवस्था को सरल और बाधा रहित बनाया जाए। कोर्ट ने कहा है कि इलाज में आने वाले खर्च का इस्टीमेट बनवाने की जिम्मेदारी मरीज या तीमारदार पर न डाली जाए और यदि
इलाहाबाद:इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कैंसर के एक मरीज की इलाज के आभाव में मौत के मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि गरीबों के इलाज के लिए आर्थिक मदद देने की व्यवस्था को सरल और बाधा रहित बनाया जाए। कोर्ट ने कहा है कि इलाज में आने वाले खर्च का इस्टीमेट बनवाने की जिम्मेदारी मरीज या तीमारदार पर न डाली जाए और यदि जरूरत पड़े तो सम्बंधित नियमों में इसके लिए संशोधन किया जाए।
कोर्ट ने पूरे प्रकरण केा सुनने के बाद इसे दुर्भाग्यपूर्ण मामला करार दिया।कोर्ट ने कहा कि निरक्षर और गरीब लोगों की ऐसे मामलों में मदद के लिए उचित तंत्र का आभाव है।गरीब और निरक्षर लोगों में जटिल औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक जानकारी और कुशलता नहीं होती, जैसा कि इस मामले में हुआ।
यह आदेश जस्टिस राजन रॉय व जस्टिस आरएस चैहान की बेंच ने कांती देवी की याचिका पर दिया। याचिका में कांती देवी ने कैंसर पीड़ित अपने बेटे की मौत का कारण सरकारी सहायता न मिल पाने को बताते हुए, मुआवजे की मांग की थी।
राज्य सरकार ने मामले की सुनवाई के दौरान यह बात तो स्वीकार कि याची ने मदद के लिए प्रार्थना पत्र दिया था व उसकी प्रार्थना को आंशिक तौर पर निस्तारित करते हुए, उसके बेटे को पीजीआई रेफर कर दिया गया था। लेकिन पीजीआई से खर्च का इस्टीमेट लाने की जिम्मेदारी याची की थी जिसे न ला पाने के कारण याची के बेटे के इलाज में मदद नहीं हो सकी। इस पर याची की ओर से कहा गया कि उसने इस्टीमेट देने का अनुरोध पीजीआई में किया था लेकिन वहां उसके बेटे को मात्र ओपीडी में देखा गया। कहा गया कि एक कैंसर के मरीज को मात्र ओपीडी में देखकर बिना जांच और बिना भर्ती के इस्टीमेट बनाया भी नहीं जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि आश्चर्य की बात है संचार और तकनीकी के इस युग में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं है कि जिम्मेदार अधिकारी ऑनलाइन आदि माध्यम से उस अस्पताल से इलाज के खर्च का इस्टीमेट मंगवा सके जहां मरीज को रेफर किया गया है। इससे मरीज और तीमारदार नौकरशाही झमेलों से बच जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी जिला चिकित्सालयों, मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सीय संस्थानों में यह प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में हम देख रहे हैं कि असाध्य रोगों से उपचार हेतू नियमावली- 2013 में रेफर और इस्टीमेट बनवाने के बीच एक वैक्यूम है। जिसे भरने की आवश्यकता है। हमारी टिप्पणियों की रोशनी में नियमावली- 2013 पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
कोर्ट ने राज्य सरकार व खास तौर पर मुख्यमंत्री सचिवालय को आदेश दिया कि उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में छह माह के भीतर ऐसे सभी आवश्यक उपाय किए जाएं जिनसे मरीजों के आर्थिक सहायता के लिए सरल व बाधा रहित तंत्र विकसित हो सके।कोर्ट ने निर्णय के अनुपालन के लिए सभी सम्बंधित अधिकारियों को सूचित करने का निर्देश सरकारी वकील को दिया।
याची को आर्थिक सहायता देने की मांग पर कोर्ट ने कहा कि एक नौजवान आवश्यक इलाज के आभाव में मर गया। उसकी मां हमारे सामने आंखों में आंसू भरे खड़ी है। हम समय को पीछे नहीं ले जा सकते और न ही उसके बेटे को वापिस ला सकते हैं लेकिन हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि ऐसी घटना दुबारा न हो। उचित चिकित्सीय सुविधा एक सभ्य समाज की आधारभूत आवश्यकता है। कोर्ट ने याची के आर्थिक सहायता के अनुरोध पर दो माह में निर्णय लेने का आदेश राज्य सरकार को दिया है।
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