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HC: चर्चित सीओ एनकाउंटर में सीबीआई अदालत का फैसला पलटा, दोषी अपीलार्थी बाइज्जत बरी
डिप्टी एसपी की पत्नी विभा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी और कहा था कि उनके पति को षडयंत्र के तहत फर्जी एनकाउंटर दिखा कर मार दिया गया है।
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गोंडा के चर्चित डिप्टी एसपी केपी सिंह एनकाउंटर केस में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा मृत्यु दंड की सजा पाये तीन पुलिस अफसरों सहित उम्र कैद की सजा पाये अन्य पुलिसवालों को बुधवार को बाइज्जत बरी कर दिया। कोर्ट ने अभियुक्त प्रेम सिंह को बरी करने के खिलाफ दायर सीबीआई की अपील भी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तगण जेल में हैं और यदि वे किसी अन्य केस में वांछित न हों तो उन्हें तत्काल रिहा कर दिया जाय।
सही था एनकाउंटर
कोर्ट ने 13 मार्च 1982 को गोंडा के कटरा बाजार थानांतर्गत स्थित मदनापुर गांव में हुए पुलिस एनकांउटर को सही ठहराया जिसमें डिप्टी एसपी केपी सिंह सहित तेरह लोग मारे गये थे। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन के पास एनकाउंटर को फर्जी साबित करने के लिए कोई गवाह व सबूत नही थे इसलिए निचली अदालत ने 29 मार्च 2103 को अपीलार्थियों को दोषी करार देकर गलती की थी।
जस्टिस प्रशांत कुमार व जस्टिस महेंद्र दयाल की बेंच ने अपीलार्थियों की ओर से अलग अलग दायर सात अपीलों को मंजूर करते हुए सभी अपीलार्थियों को रिहा करने का आदेश दे दिया है। ये सभी अपीलार्थी सजा के बाद से ही जेल में हैं। कोर्ट ने निचली अदालत की ओर से मृत्यु दंड की सजा पर मुहर लगाने के लिए भेजे गये संदर्भ को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने सीबीआई की उस अपील को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने निचली अदालत द्वारा अभियुक्त प्रेम सिंह को रिहा करने के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
13 मार्च 1982 को हुए इस एनकांउटर में केपी सिंह सहित तेरह लोग मारे गये थे और कुछ पुलिस वालों व गांववालों को भी चोटें आयी थीं। इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की गयी थी जिस पर जांच के बाद पुलिस ने 24 फरवरी 1984 को फाइनल रिपोर्ट लगाते हुए कहा था कि गांव में डकैतों से मुठभेड़ के दौरान केपी सिह की मौत हुई और एनकाउंटर में 12 डकैत भी मारे गये थे।
सीबीआई जांच की मांग
बाद में एनकाउंटर में मारे गये डिप्टी एसपी की पत्नी विभा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी और कहा था कि उनके पति को षडयंत्र के तहत फर्जी एनकाउंटर दिखा कर मार दिया गया है। विभा सिंह का आरोप था कि गोंडा के एसपी को शक था कि पत्नी का केपी सिंह से गलत संबंध था अतः केपी सिंह को षडयंत्र के तहत एनकाउंटर में मारा गया। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून 1984 को इस प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंप दी थी।
सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि उक्त एनकांउटर फर्जी था और पाया कि केपी सिंह ने गोंडा के कौडि़या थाने के एसओ राज बहादुर सरोज व कटरा बाजार के एसआई टीआर पाल के खिलाफ केस डायरियों में बैड इंट्री की थी जिसकी वजह से वे अपने सीओ केपी सिंह से नाराज चल रहे थे। वहीं मदनापुर गांव के प्रधान ननकउ का स्वर्गीय माता प्रसाद के घरवालों से दुश्मनी चल रही थी। 13 मार्च 1982 को सूचना पर कि माता प्रसाद की तेरहवीं में सशस्त्र अपराधी भी शामिल हो रहे हैं एसपी के निर्देश पर सीओ केपी सिंह के नेतृत्व में पुलिस पार्टी ने गांव में छापा मारा व वहां फर्जी एनकाउंटर में उन्हें मार दिया गया और साथी स्वर्गीय माता प्रसाद के 12 सगे व घरवालों को भी मार दिया गया।
पलट गया फैसला
सीबीआई ने अपना आरोप पत्र सौंप दिया जिस पर निचली अदालत ने 1 अप्रैल 1990 को संज्ञान ले लिया और फिर केस का विचारण प्रारम्भ हो गया। सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में कौडि़या थाने के एसओ व कटरा बाजार के एसआई टीआर पाल सहित 19 पुलिसवालों के खिलाफ आरोपपत्र सौंपा था। विचारण के दौरान ही 9 अभियुक्तों की मौत हो गयी थी।
लंबे विचारण के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 मार्च 2013 को आरबी सरोज, राम नायक पांडे व राम करन सिंह को फांसी की सजा सुनायी थी जबकि अन्य को उम्र कैद की सजा से दंडित किया था। फांसी की सजा पाये तीनों के अलावा केवल नसीम अहमद, परवेज हुसैन और राजेंद्र प्रसाद सिंह ने अपील की थी। शेष दोषियों की ओर से कोई अपील दाखिल नही की गयी थी। कोर्ट ने सभी अपीलार्थियों को बाइज्जत बरी कर दिया।
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